नमिता बिष्ट, देहरादून


भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री और अशोक चक्र से सम्मानित भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा का आज जन्मदिन है। 80 के दशक में जब राकेश शर्मा बादलों को चीरते हुए अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने तो ये हर भारतीय के लिए गर्व का पल था। यूं तो राकेश शर्मा के अंतरिक्ष अभियान को आज 38 साल बीत चुके हैं, लेकिन उस दौर को देखने वालों के जहन में उनका चेहरा आज भी पहले की ही तरह है। तो चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातों के बारे में……….

बचपन से ही विज्ञान में थी रूचि

अंतरिक्ष में जाने वाले राकेश शर्मा 128वें इंसान थे और पहले भारतीय थे। उनका जन्म पंजाब के पटियाला में 13 जनवरी 1949 को हुआ था। उन्होंने हैदराबाद स्थित उस्मानिया विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। शर्मा को बचपन से ही विज्ञान में रूचि थी। बिगड़ी चीजों को बनाना उन्हें काफी पसंद था। हैदराबाद से पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका चयन एनडीए में हो गया। जिसके बाद 1970 में पहली बार IAF में बतौर पायलट कमीशन किए गए।
1971 के युद्ध में पायलट की भूमिका
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में राकेश शर्मा ने पायलट के रूप में भाग लिया था। इसके बाद 1982 में जब यह तय हुआ कि एक भारतीय रूसी अभियान के साथ अंतरिक्ष में जाएगा, तब तक वे वायुसेना में स्क्वाडर्न लीडर बन चुके थे। उन्होंने खुद ही इस चुनौतीपूर्ण मिशन में शामिल होने का फैसला किया था।
दो ही उम्मीदवारों का चयन
अंतरिक्ष यात्री की चयन प्रक्रिया में अधिकांश चिकित्सकीय परीक्षण थे और राकेश भारतीय वायुसेना के 150 बहुत ही अनुभवी और योग्य पायलटों में से दो चुने गए उम्मीदवारों में एक बनने में सफल रहे थे। दूसरे का उम्मीदवार के रूप में रवीश मल्होत्रा का नाम था। बाद में राकेश शर्मा पहले यात्री के तौर पर और रवीश को बैकअप यात्री के तौर पर चुना गया। अपने चयन के बाद राकेश शर्मा ने USSR में यूरी गगारिन सेंटर में एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में प्रशिक्षण लिया। जहां उन्होंने पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ खुद को साबित किया और सोवियत अंतरिक्ष विशेषज्ञों से प्रशंसा भी पाई।
कड़ी ट्रेनिंग के साथ भावनात्मक परीक्षा भी
इस बात की जानकारी बेहद कम ही लोगों को पता है कि जब राकेश शर्मा मास्को में यूरी गागरिन स्पेस सेंटर में अपनी ट्रेनिंग ले रहे थे तभी उनकी 6 साल की बेटी का निधन हो गया। ये वक्त उनके लिए काफी भारी था और वो पीछे नहीं लौट सकते थे। उनके ऊपर करोड़ों भारतीयों की उम्मीदें टिकी थीं। उन्होंने हिम्मत से इस पल का सामना किया और अपने दुख को झेलते हुए वही किया जो देश का सिपाही करता है। फिर दो साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद वो पल आया जब सोवियत यान सुयोज टी-11, रूसी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उन्हें लेकर बादलों को चीरता हुआ अंतरिक्ष के लिए उड़ा।
सकुशल अंतरिक्ष में पहुंचने पर झूम उठा था देश
बता दें कि उस वक्त टीवी की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं थी। इसके बाद भी सभी देशवासी उस पल को महसूस कर सकते थे। सभी की सांसें रुकी हुई थीं। सभी समाचारों के जरिए जानना चाहते थे कि आखिर क्या हुआ। फिर ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के जरिए जब लोगों को इस बारे में पता चला कि वो सकुशल अंतरिक्ष में पहुंच गए हैं तो देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
अंतरिक्ष में परिक्रमा करने वाले पहले भारतीय बने
3 अप्रैल 1984 को स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा रूस के सोयुज टी-11 स्पेरसक्राफ्ट से अंतरिक्ष में परिक्रमा करने वाले पहले भारतीय बने। उन्होंने दो सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों, यूरी मालिशेव और गेनाडी स्ट्रेकालोव के साथ अंतरिक्ष में 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए । इस दौरान उन्होंने कुल 43 प्रयोगात्मक सत्रों में काम किया।
भारतीय व्यंजन को अंतरिक्ष में ले गए थे
बता दें कि राकेश शर्मा मैसूर स्थित डिफेंस फूड रिसर्च लैब की मदद से भारतीय भोजन को अंतरिक्ष में ले गए थे। उन्होंने अंतरिक्ष में जाने से पहले सूजी का हलवा, आलू छोले और वेज पुलाव पैक किया था जिसे उन्होंने अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ शेयर भी किया। इसके अलावा वो अंतरिक्ष में हर रोज 10 मिनट योगा भी किया करते थे।
राजघाट की मिट्टी भी ले गए थे साथ
राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष से भारत की बहुत सी तस्वीरें लीं थीं और उन्होंने जो तस्वीरें लीं, उन तस्वीरों से भारत की आकाश से तस्वीरें लेकर नक्शा बनाने में लगने वाला दो साल का समय बच गया। इसके अलावा राकेश शर्मा अपने साथ अंतरिक्ष में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट की मिट्टी भी साथ ले गए थे।
अंतरिक्ष से भारत दिखता है- सारे जहां से अच्छा
जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष में थे, तब उनसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फोन पर सोवियत केंद्र के जरिए उनसे बातचीत की। उन्होंने जब राकेश से पूछा कि आपको अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तब उन्होंने जवाब दिया- “सारे जहां से अच्छा”। इस वार्तालाप को पूरे देश ने टीवी पर देखा और इसे सुन कर सभी देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था।
‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ पुरस्कार
इस ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा के बाद उन्हें भारत सरकार ने अशोक चक्र से सम्मानित किया। बता दें कि अंतरिक्ष जाने वाले पहले भारतीय होने के अलावा राकेश शर्मा पहले ऐसे भारतीय भी हैं जिन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ के पुरस्कार से नवाजा गया है।
टेस्ट फ्लाइंग के दौरान बाल-बाल बचे थे
भारतीय वायुसेना से 1987 में बतौर विंग कमांडर रिटायर होने के बाद वो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स में चीफ टेस्ट पायलट बने। एक बार टेस्ट फ्लाइंग के दौरान उनका विमान क्रैश हो गया था, जिसमें वो बाल-बाल बचे थे। वहीं साल 2006 में राकेश शर्मा ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक समिति में भाग लिया, जिसने देश में नए अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को मंजूरी दी।
वर्तमान में कैडिला लैब्स कंपनी में दे रहे सेवाएं
वर्तमान में राकेश शर्मा अपने परिवार के साथ तमिलनाडु के कुनूर शहर में रहते हैं और वह बेंगलुरु की कंपनी कैडिला लैब्स में नान एग्जीक्यूटिव चेयरमैन के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।