– इस वर्ष अपने गांव में बागवानी के विकास पर खर्च करेंगे दस लाख रुपये।
– तीन साल में ही विक्रम की मदद से गांव में लग गये हैं सेब के बाग।
– अब गांव की बंजर जमीन पर सहकारिता के आधार पर अत्याधुनिक बाग लगायेंगे और एक हाईटेक ट्रेनिंग सेंटर भी खोलेंगे।
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विजेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार
पौड़ी मुख्यालय से करीब 18 किमी दूर कलून गांव की तस्वीर दो तीन वर्षों में ही बदलने लगी है। जहां गांव के कुछ खेतों में ही परम्परागत फसलें तथा अधिकतर खेत पलायन के कारण बंजर थे, अब गांव के खेतों में विदेशी प्रजाति के सेब के रूट स्टाक तथा हाई डेंसिटी के पौधे सेब से लकधक दिखने लगे हैं। गांव के लोगों के खेत मिलाकर अब इनमें सेब के अत्याधुनिक बाग लगाने की योजना पर काम चल रहा है, साथ ही गांव में एक राज्य स्तरीय बागवानी प्रशिक्षण केन्द्र की भी योजना है।
इसका श्रेय इसी गांव के परिवार में जन्मे विक्रम रावत व उनकी कलासन नर्सरी को जाता है। विक्रम रावत के कलासन एप्पल गार्डन एवं नर्सरी, हिमाचल प्रदेश के करसौग में स्थित है, जिसकी पहिचान राज्य के अग्रणी बाग तथा बागवानों में है। इनके सेब एवं नर्सरी का टर्नओवर करोड़ तक छू रहा है। इनके पास तकनिकी विशेषज्ञों की एक शानदार टीम है जो बागवानों को फलदार पौधों के साथ साथ उनकी तकनीकी सलाह संबंधी मदद भी करते हैं।
विक्रम के पिता हिमाचल प्रदेश विद्युत विभाग में नौकरी करते थे। विक्रम का जन्म भी यहीं हुआ, पढ़ाई लिखाई के बाद हिमाचल प्रदेश ग्रामीण बैंक की नौकरी करने लगे। इसी दौरान बैंक की ओर से बागवानों को प्रशिक्षण का जिम्मा विक्रम को दिया गया, बस, यहीं से उनका रुझान बागवानी की ओर बढ़ गया। चूंकि विक्रम की शादी भी हिमाचल से ही है, इसलिए उन्होंने 2002 में करसौग में सेब का एक बाग लगाया जिसके लिए उन्होंने अमेरिका से सेब का रुट स्टाक पौधे मंगवाए जो सालभर में ही सेब देने लगे।
परम्परागत सेब के पेड़ पांच छः साल में फल देते थे पर एक साल में ही फल देने वाले इन पौधों ने हिमाचल में एक नई क्रांति लाई।
उन्होने यहीं कलासन नर्सरी की स्थापना की जिससे उन्नत किस्म के पौधे बागवानों को मुहैया किए जाने लगे। वे दुनिया भर के देशों उन्नत किस्म के सेब के पौध मंगवाकर उन्हें अपनी नर्सरी में विकसित करने लगे तथा इन्हें हिमाचल व जम्मू-कश्मीर भेजने लगे।
नर्सरी में बागवानों का एक दिन का प्रशिक्षण भी दिया जाने लगा जिसमें बागवानों को प्रशिक्षण व भोजन व नास्ते की निःशुल्क व्यवस्था थी। इस प्रकार हजारों बागवानों को प्रशिक्षण व समय समय पर उन्हे तकनिकी सलाह भी दी जाती है।
2016 में विक्रम एक शादी के सिलसिले में पौड़ी के अपने गांव कलून आये तो गांव के बंजर खेत देखकर उन्हें काफी दुःख हुआ। उन्होने गांव वालों को रूट स्टाक के कुछ पौधे निःशुल्क दिए पर अगले वर्ष जब वे गांव पहुंचे तो उनमें से देखरेख के अभाव में अधिकतर पौधे सूख चुके थे, शायद लोग मुफ्त में मिले पौधों का महत्व नहीं समझ सके।
उन्होने मन ही मन निश्चय किया कि हिमाचल की कर्मभूमि के बाद अब वे अपने जन्म भूमि के लिए काम करेंगे। चाहे कुछ हो। उन्होंने हिमाचल से अपने बाग से दो साल के विकसित पेड़ उखाड़ कर अपने गांव में लगाये, इन पर उसी साल फल देखकर गांव वाले बागवानी की ओर आकर्षित होने लगे।
उन्होंने गांव के दो मेहनतकश युवकों को बाग लगाने में मदद की एक ने हजार पेड़ तथा दूसरे ने पांच सौ पौधे लगाए। जो अब काफी सफल हैं।
साथ ही क्षेत्र में कुछ अन्य प्रगतिशील किसानों ने अपने बाग लगाये जिन्हें वे समय समय पर तकनीकी मदद देते हैं।
इस वर्ष उन्होने अपने गांव के लिए अपनी कमाई से दस लाख रुपए का बजट रखा है। जिससे वे ग्रामीणों की एक सोसाइटी बनाकर उनके खेतों का क्लस्टर बनाकर उसमें बाग विकसित करेंगें। वे ग्रामीणों के सहयोग से बाग की देखरेख करेंगें और बाद में बाग से होने वाली आय को खेत व मेहनत के अनुसार उनमें बांट दिया जाएगा। बाग में सेब के अलावा अखरोट, पुलम, खुमानी व नासपाती जैसे फलदार पौधे भी लगाए जाएंगे।
वे गांव में एक बागवानी प्रशिक्षण केंद्र भी खोलेंगे, जहां बागवानी का रुझान रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
पौड़ी के जिलाधिकारी धीरज गर्ब्याल ने 2020 में धूमाकोट में बागवानी विभाग के बंजर पड़े बगीचे में बाग लगाने को कहा, विक्रम की टीम ने यहां 2100 सेब के पौधों का एक अत्याधुनिक बाग लगा दिया। यहां हाल्टी टूरिज्म के लिए चार पांच काटेज, डेयरी, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन तथा ट्रेनिंग सेंटर की व्यवस्था रखी गई है। पहले ही साल इस बाग में ढाई लाख के सेब पैदा हुए हैं।
पहाड़ के प्रति पीड़ा रखने वाले श्री गर्ब्याल अब नैनीताल के जिला अधिकारी हैं तो इन्होने विक्रम की टीम से पटेलिया, रामगढ़ के बंजर पड़े सरकारी फार्म को भी सेब फार्म की रूप में विकसित कर लिया ताकि पहाड़ के युवाओं को यहां आकर बागवानी से स्वावलंबन की प्रेरणा मिल सके।
विक्रम रावत ने डोईवाला के पास लालतप्पड़ के पास उत्तराखंड कलासन नर्सरी की स्थापना की है जहां वे हर साल 80 से एक लाख तक उन्नत किस्म के सेब के पौध तैयार कर रहे हैं।
विक्रम कहते हैं, हम भले ही कुछ हजार की नौकरी के लिए शहरों में दस- बारह घंटे कड़ी मेहनत कर लेंगे पर अपने काम के लिए जी चुराएंगे। जिस दिन हम हिमाचलियों की तरह अपने खेतों से प्यार करने लगेंगे, हम भी हिमाचल की तरह बागवानी प्रदेश बन जाएंगे और हमारा पलायन भी कम हो जाएगा।
अफ्रीका से मंगाए एक लाख ब्लेक बेरी की पौध—–
विक्रम पहली बार अपने देश में अफ्रीकी फल ब्लेक बेरी की खेती करना चाह रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने एक लाख पौधे अफ्रीका से तथा इसके लिए खाद डेनमार्क से मंगाई है।
इस फल का बाजार भाव दो से तीन हजार रुपए प्रति किलो है और इसका तीन चार साल का एक पौधा भी तीन चार किलो फल दे देता है।
विक्रम ने बताया कि इसकी खेती करना थोड़ी कठिन है क्योंकि इसको पैदा होने के लिए तीन से चार पी. एच. वाली मिट्टी की जरूर होती है जबकि हमारे पहाड़ की मिट्टी 7 पीएच तक है। इसलिए वे पहाड़ के अलग-अलग क्षेत्रों की मिट्टी का टेस्ट करवा रहे हैं और यदि किसी क्षेत्र में चार पी.एच. तब की मिट्टी मिल गई तो ब्लूबेरी की बागवानी वहां का कायाकल्प कर देगी।
उत्तराखंड सरकार के बागवानी को कृषि में समाहित करने के फैसले को वे तेजी से बढ़ती बागवानी के लिए आत्मघाती मानते हैं। उनका कहना है उत्तराखंड के साढ़े दस जिले का विकास सिर्फ बागवानी पर निर्भर करेगा। इस फैसले से बागवानी के विकास की गति बहुत धीमी हो जाएगी। बल्कि उल्टे बागवानी विभाग का और विस्तार होना चाहिए।