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विद्या वह जिससे स्वयं का ज्ञान दुसरे का हित हो: आचार्य मंमगाईं श्रीराधमाधव की छायाँ हैं


दिन और रात की सन्धि में जैसे संध्या होती है ऐसे ही भोक्ता- भोग्य , प्रेयसी और प्रियतम की सन्धि में – सखियाँ हैं ।
एक शब्द का हमारे वृन्दावनीय सिद्धान्त में बड़ा प्रयोग होता है “हिततत्व”बड़ी गहन व्याख्या होती है इसकी पर मैं आपको सहजता से समझाता हूँ हित” शब्द तो आप समझ ही गए होंगें ?
“हित” करना यानि भला करना अच्छा करना दूसरे को सुख पहुँचाना इसी भावना का नाम है “हित”और यही भावना “हिततत्व” कहलाती है विद्या *विध्या वह जिससे स्वयं का ज्ञान दुसरे का हित हो जहां जिने का दुसरे हितकर ज्ञान दिया जाय मानव जीवन मात्र की रक्षा का ज्ञान दिया जाय जहां हिंसा दुसरे का अनहित बात सिखाई जाय वह विध्या नहीं हिंसा है हिरण्य कशिपु के विध्यालय में केवल दुसरे की हिंसा अनहित का का ज्ञान दिया जाता था इसलिए नरसिंग भगवान नें खम्भे से प्रकट होकर ऐसे हिंसा वातावरण को नष्ट करदिया था यह बात सालावाला देहरादून में समापन दिवस भागवत कथा के माध्यम से ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई जी ने कही उन्होंने कहा प्रेम तो दिन रात का मेल कराने वाली संध्या की तरह है जो भाई चारे मिलाने वाली ज्ञान भावना जैसे श्रीराधमाधव की छायाँ हैं
दिन और रात की सन्धि में जैसे संध्या होती है ऐसे ही भोक्ता- भोग्य , प्रेयसी और प्रियतम की सन्धि में – सखियाँ हैं ।
एक शब्द का हमारे वृन्दावनीय सिद्धान्त में बड़ा प्रयोग होता है “हिततत्व”बड़ी गहन व्याख्या होती है इसकी पर मैं आपको सहजता से समझाता हूँ हित” शब्द तो आप समझ ही गए होंगें ?
“हित” करना यानि भला करना अच्छा करना दूसरे को सुख पहुँचाना इसी भावना का नाम है “हित”और यही भावना “हिततत्व” कहलाती है हमारे रसोपासना में हित का अर्थ प्रेम किया जाता है सही है सच्ची भलाई तो प्रेम ही है विचार करके देख लो ?
सारे धर्म , सारे सम्प्रदाय क्या “हित” करनें की प्रेरणा नही देते ?
सखियाँ हिततत्व हैं ये अद्भुत बात कही जाती है हमारे श्रीधाम वृन्दावन में सबका हित सबसे प्रेम !
सबसे प्रेम ? बात अटपटी है पर सच्चाई यही है कि युगल के सिवा और कोई है ही नही अरे ! युगल जब तक हैं …हमारे अंदर या किसी के भी अंदर तभी तक वो माई बाप लोग लुगाई सब है।
जब “युगल” निकल जाते हैं.तब आप उसे घर में रखना भी पसन्द नही करते छूनें से भी डरते हैं।
इसलिये सच में हम “युगल” से ही प्रेम करते हैं युगल यानि ब्रह्म और उसकी शक्ति यही सर्वत्र व्याप्त हैं सब में है।
हमें इधर उधर न भटकते हुए , इधर उधर से मेरा मतलब शरीर आदि जो मिथ्या है उसमें न अटकते हुये .मूल तत्व को जानते हुये हमें चलना है और मूल को समझकर उससे ही प्रेम करना है यही “हिततत्व” है ।विद्या वह जिसमें स्वयं का हमारे रसोपासना में हित का अर्थ प्रेम किया जाता है सही है सच्ची भलाई तो प्रेम ही है विचार करके देख लो ?
सारे धर्म , सारे सम्प्रदाय क्या “हित” करनें की प्रेरणा नही देते ?
सखियाँ हिततत्व हैं ये अद्भुत बात कही जाती है हमारे श्रीधाम वृन्दावन में सबका हित सबसे प्रेम !
सबसे प्रेम ? बात अटपटी है पर सच्चाई यही है कि युगल के सिवा और कोई है ही नही अरे ! युगल जब तक हैं …हमारे अंदर या किसी के भी अंदर तभी तक वो माई बाप लोग लुगाई सब है।
जब “युगल” निकल जाते हैं.तब आप उसे घर में रखना भी पसन्द नही करते छूनें से भी डरते हैं।
इसलिये सच में हम “युगल” से ही प्रेम करते हैं युगल यानि ब्रह्म और उसकी शक्ति यही सर्वत्र व्याप्त हैं सब में है।
हमें इधर उधर न भटकते हुए , इधर उधर से मेरा मतलब शरीर आदि जो मिथ्या है उसमें न अटकते हुये .मूल तत्व को जानते हुये हमें चलना है और मूल को समझकर उससे ही प्रेम करना है यही “हिततत्व” है आचार्य ममगांई कहते हैं होशियार होना अच्छी बात है लेकिन दूसरों को मूर्ख समझना सबसे बड़ी बेवकूफी है। मूर्खता में ही होशियारी है।होशियारी बरकरार रखने के लिए सीखना जरुरी है। होशियार लोग “सब कुछ और हर किसीसे से सीखते हैं।औसत लोग अपने अनुभवों से सीखते हैं।मूर्ख लोगों के पास पहले से ही सभी उत्तर होते हैं।
।आज आयोजको के द्वारा भण्डारे का आयोजन किया गया सुदूर क्षेत्रो से आकर कथा का आनंद लिया आज विशेष रूप से श्रीमती विमल देवी कपरूवाण ,आशुतोष कपरूवाण,हिमाद्रि कपरूवाण, क्षेत्रीय पार्षद भूपेंद्र कठैत श्रीनगर के पार्षद विनीत पोस्ती श्रीमती माहेश्वरी देवी, अनुसुया प्रसाद कपरूवाण, अलका कपरूवाण, अजय कपरूवाण,ज्योति कपरूवाण, शिवानी कपरूवाण, शेखर गोदियाल,अर्थव गोदियाल,राजाराम गोदियाल,आशा गोदियाल विजय पंत उषा कुकसाल बिना भट्ट देवेश कुमार नौटियाल, कंचन नौटियाल,ऋषभ नौटियाल,राजेंद्र नेगी,रीमा बंधाणि,वीना राणा, सदानंद बलोदी,सतीश बछेती,हरोश बछेती,रजनी बछेती,चंद्र बलभ बछेती, रितु बछेती, नीतू बछेती ,सीमा बछेतीमहेश बगवाड़ी, दीपा बगवाड़ी, विजया लक्ष्मी पंत आचार्य द्वारिका प्रसाद नौटियाल आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य प्रदीप नौटियाल आचार्य दिवाकर भट आचार्य सुनील ममगाईं आदि मौजूद रहे।

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