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कुमांऊ की 150 साल पुरानी ये अनोखी बाखली आज भी आबाद: जाने क्या होता बाखली

नमिता बिष्ट, देहरादून

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देवभूमि उत्तराखंड में पर्वतीय आंचलो का जीवन-संस्कृति और रहन-सहन दोनों अनूठा रहा है। यहां की लोक परंपराएं, संस्कृति और रहन-सहन प्रकृति के करीब और सृष्टि से संतुलन बनाने वाली रही है। इसकी झलक पहाड़ की हाउसिंग कॉलोनियां कही जाने बाखली में साफ देखी जा सकती है। लेकिन आज आधुनिकता की चकाचौंध, अंधाधुंध विकास, गांवों की उपेक्षा और भौगोलिक परिस्थतियों ने बहुत कुछ बदल दिया है। कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे पहाड़ के हरे भरे गांव पलायन की मार झेल रहे हैं। हालांकि कुछ जगह ऐसी भी है जो आज भी पहाड़ की संस्कृति को संरक्षित रखने में हमेशा अग्रणी है। जिनमें से एक गांव है कुमाटी गांव। यहां 150 बरस पुरानी बाखली आज भी आबाद है। इस बाखली को कुमाऊं की सबसे बड़ी बाखली का दर्जा मिला है। तो चलिए जानते है इसके बारे में…..

नैनीताल-अल्मोड़ा की सीमा पर बसा कुमाटी गांव
नैनीताल से लगभग 26 नथुवाखान से सात और रामगढ़ से पांच किलोमीटर दूर स्थित कुमाटी गांव नैनीताल और अल्मोड़ा जिले की सीमा पर बसा है। यहां 150 बरस पुरानी बाखली आज भी मौजूद है। पारंपरिक रूप से मिट्टी और पत्थरों से बने इस बाखली को दूर से देखने पर रेलगाड़ी का प्रतिबिंब बनता है। खूबसूरत खिड़की-दरवाजे और नक्काशी वाले इन मकानों को देखने से पहाड़ के समाज और सामूहिकता को समझा जा सकता है।

क्या है बाखली

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बाखली होम स्टे को पहाड़ी शैली में तैयार किया गया है। बाखली यानि पहाड़ के कतारबद्ध घर जो एक दूसरे से जुड़े हों। वहीं सामाजिक सामूहिकता दिखाती कुमाटी गांव की इस बाखली की छ्त तीन सौ फीट लम्बी है। आज भी इस बाखली में दस से बारह परिवार एक ही छत के नीचे रह रहे हैं।

एक तरह होती थी सभी अपार्टमेंट की संरचना


बाखली में बने सभी अपार्टमेंट एक समान होते थे। मतलब हर परिवार को मिलने वाला मकान की संरचना एक जैसी होती थी। निचले हिस्से मवेशियों के लिए जबकि आगे का हिस्सा चारे के भंडारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। वहीं कुमाटी की बाखली में सभी घरों को समान रूप से डिज़ाइन किया गया है। जिसमें एक परिवार के लिए रसोई और एक बेडरूम और तहखाने हैं। ‘बाखली’ को इस तरह से डिजाइन किया था ताकि पूरा समुदाय संकट के समय एक साथ हो सके।

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कुमाऊं की सबसे बड़ी बाखली


कुमाटी की बाखली शीतला-मुक्तेश्वर मार्ग पर कफुरा और पोरा गांव के पास स्थित है। यह बाखली करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है। दूर से ही नजर आने वाली कुमाटी गांव की बाखली के विषय में दावा किया जाता है कि यह कुमाऊं की सबसे लम्बी बाखली है। मिट्टी और पत्थर से बनी इस बाखली की तस्वीरें पहले भी सोशल मीडिया में पहले भी खूब पसंद की जा चुकी हैं।

कुमाऊं में दुपरा शैली हैं निर्मित


कुमाऊं में बाखली दुपरा शैली में निर्मित है। दुपरा शैली में ज्यादातर थोकदारों या गढ़पतियों के किले बनाए गए हैं। इनमें ज्यादात्तर आयताकार हुए। चीला या गेहूं की भूसी से दीवारों पर प्लास्टर, दो पटालों के जोड़ पर भी गारा डालकर तोक बिछाई जाती है। गोबर व लाल मिट्टी के फर्श की लिपाई की जाती है। बता दें कि दुपरा शैली के भवन विकसित करने का श्रेय कत्यूर और चंद राजाओं को जाता है। इन भवनों में असीन, उत्तीस, खरसू, तून आदि की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है।

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बाखली को संवारने के लिए नई पहल


बाखली देखने के लिए आसपास के क्षेत्रों के लोगों के अलावा बड़ी संख्या में सैलानी भी पहुंचते हैं। इसे देखते हुए जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल ने पिछले दिनों बाखली को संवारने के लिए एक नई पहल की थी। उन्होंने इसके लिए शासन को एक प्रस्ताव भेजा था। इस प्रस्ताव को पर्यटन विभाग ने सराहते हुए पहले चरण में 50 लाख रूपये जारी किये थे। अब इस बाखली की मरम्मत और सौंदर्यीकरण के साथ ही क्राफ्ट म्यूजियम, ओपन थियेटर भी बनाए जाएंगे।

पलायन रोकने के लिए रोजगार के अवसर


पिछले चार-पांच सालों से सोशल मीडिया में चर्चा का विषय रही कुमाटी की बाखली को पर्यटन से जोड़ने और एक नई पहचान दिलाने के लिये नैनीताल जिला प्रशासन की खूब तारीफ़ की जा रही है। इससे पर्यटन को तो बढावा मिलेगा ही साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और गांव से पलायन भी रुकेगा।

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