धरती फट रही है। दरारें पड़ रही हैं। घरों के अंदर, बाहर, आंगन, सड़कें, खेत-खलिहान दीवारें, पुश्ते, सड़कें, रास्ते सब दरक रहे हैं। पुरानी दरारें चौड़ी हो रही हैं, सब कुछ निगलने को हैं दरारें। चार पांच फीट से लेकर दस बारह फीट तक की दरारें। घर दो-फाड़ हो रहे हैं। मकाने एक तरफ झुक रही हैं। घरों पर दरारों का कब्जा है। लोग दहशत में घर खाली कर रहे हैं।
ये किसी हालीवुड की फिल्म का दृश्य नहीं जोशीमठ की हकीकत है। दहशत, बहुत डरावना, खौफनाक मंजर, कल्पना से परे। भविष्य को लेकर संशय, आशंका। न जाने दरारे कितनी चौड़ी होंगी, भू-धंसाव कहां पहुंचायेगा। प्रभावित लोग इस ठण्ड में राहत शिविरो में हैं, आने वाले दिनों में बर्फबारी और बारिश इसको और खतरनाक बनाएंगे।
वैज्ञानिकों कहते हैं कि जोशीमठ शहर भूगर्भीय रूप से अतिसंवेदनशील जोन-5 में है। यहां पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर मौजूद है। यह शहर ग्लेशियर द्वारा लायी गई पत्थर और मिट्टी के ऊपर पर बसा है। शीतकाल में होने वाले हिल वासिंग और जल रिशन को वैज्ञानिक भूधंसाव का प्रमुख कारण बता रहे हैं। इस प्रक्रिया में बर्फ का पानी धरती के अंदर रिसता है जिससे मिट्टी और बोल्डर्स की आपसी पकड़ कमजोर हो जाती है। जिस पहाड़ी पर जोशीमठ बसा है वो मूल रूप से जिनेसिस श्रेणी की चट्टान है। जिसकी एक परत के ऊपर दूसरी परत होती है तथा बेतरतीब निर्माण कार्यों से यह खिसकने लगती है।
वर्ष 1976 में एम.सी. मिश्रा समिति ने भी जोशीमठ भूस्खलन को लेकर एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था। रिपोर्ट में जोशीमठ का अनियोजित विकास, भारी निर्माण कार्यों को मंजूरी, निर्माण कार्यों में विस्फोटकों का प्रयोग, अपशिष्ट जल की निकासी की उचित व्यवस्था न होने से भू धंसाव भू स्खलन की प्रक्रिया तेज हुई बताया गया। रिपोर्ट में बहुत सारे रक्षात्मक सुझाव दिये गए। पर किसी को भी अमल में नहीं लाया गया। बड़े-बड़े बहुमंजिला होटल बने, जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण हुआ। शहर के नीचे से होकर एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना की सुरंग बनाने की मंजूरी मिली जिसे भू-धंसाव के लिए सबसे बडा कारण माना जा रहा है।
बहुत जरूरी है- लोगों की सुरक्षा, पुनर्वास, विस्थापन की ठोस और त्वरित कार्रवाई, भूविज्ञानियों की सलाहें, मिश्रा समिति द्वारा दिये गए सुरक्षात्मक उपायों का कड़ाई से पालन, जोशीमठ के निचले क्षेत्र में वनीकरण तथा हरियाली बढ़ाना, जल, अपशिष्ट जल निकासी, नाली की उचित व्यवस्था, टूटते-उजड़ते घरों और धंस रहे शहर को बचाने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठना, लोगों का जागरूक होना, जीवन मरण के इस संकट की घड़ी में हौंसला, हिम्मत और एकजुटता बनाये रखना, बेबुनियाद बातों और अफवाहों से बचना, विज्ञान सम्मत और तार्किक बातों पर भरोसा करना।
बदलना पड़ेगा खुद को, विकास की सोच को, तरक्की के माडल को। तभी बचेंगे हम, जोशीमठ और हिमालय।