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विशेष अनुष्ठानों का साक्षी बना रघुनाथ कीर्ति परिसर, अग्निहोत्र, इष्टि और उपनयन संस्कार का हुआ आयोजन

देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर तीन दिन तक विशेष अनुष्ठानों का साक्षी रहा। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज वेदशास्त्रानुसंधान केंद्र की ओर से 29 से 31 जनवरी तक अग्निहोत्र, इष्टि और उपनयन संस्कार का आयोजन किया गया। तीनों कार्यक्रम पहली बार आयोजित किए गए। सामूहिक रूप से 31 छात्रों को यज्ञोपवीत धारण कराए गए।

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वेद विभाग के प्राध्यापक डॉ.अंकुर वत्स के संयोजकत्व में हुए अनुष्ठान के लिए पहले यज्ञशाला का निर्माण किया गया। छात्रों ने मिट्टी और ईंटों से हवन कुंड बनाए। 29 जनवरी प्रातः काल में अनुष्ठान आरंभ हुआ। अग्निहोत्र और इष्टि का यजमानत्व आहिताग्नि सोमयाजी डॉ.ओंकार यशवंत सेलुकर ने सपत्नीक किया। पहले दिन श्रौतसूत्रोक्त विधान से अग्नि प्रकट की गयी। दूसरे दिन इष्टि का अनुष्ठान हुआ। इसमें ऋत्विज रूप में डॉ.अंकुर वत्स ने अध्वर्यु,अनमोल उपाध्याय ने होता, अभिषेक तिवारी ने ब्रह्मा, विकास शर्मा ने अग्नीत का कर्म किया। डॉ.अंकुर वत्स ने बताया कि इस इष्टि का नाम आग्नेयकाम्येष्टि है, जिसमें प्रधान देवता अग्नि अष्टाकपाल पुरोडाश होता है।


इसके बाद 31 छात्रों का उपनयन संस्कार कराया गया। इस दौरान कूष्मांड होम नामक प्रायश्चित अनुष्ठान तथा हवन किया गया। इस कार्यक्रम के मार्गदर्शक वेद विभाग संयोजक शैलेन्द्र प्रसाद उनियाल तथा व्याकरण प्राध्यापक डॉ.सूर्यमणि भंडारी थे। सहसंयोजक डॉ.अमंद मिश्र थे। छात्रों के अभिभावकों के प्रतिनिधि के रूप में यजमान की भूमिका में डॉ.अंकुर वत्स रहे। उपनयन संस्कार के लिए यह तिथि इसलिए चुनी गयी कि माघ के पुण्य मास में पञ्चमी तिथि पूर्णा होती है और बुधवार होने के कारण यह शुभ मुहूर्त था। इससे एक मुख्य लाभ यह कि इस मुहूर्त में उपनयन करने से आने वाले वसन्त पंचमी को वेद आरम्भ संस्कार का मुहूर्त होता है और वेद से पहले संध्या वन्दन आना चाहिए। जो कि इनको तब तक सिखाया जा चुका होगा।


इन कार्यक्रमों में सभी छात्रों ने उत्साह के साथ बढ़-चढ़कर भाग लिया। अनुष्ठान कार्यक्रम में प्रो.चंद्रकला आर.कोंडी, डॉ.शैलेंद्रनारायण कोटियाल, डॉ.सुशील प्रसाद बडोनी, डॉ.ब्रह्मानंद मिश्र, डॉ.आशुतोष तिवारी, जनार्दन सुवेदी आदि उपस्थित रहे। परिसर निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने बताया कि इस प्रकार के अनुष्ठान पहली बार आयोजित किए गए हैं। इनसे छात्रों को यज्ञ और यज्ञोपवीत संबंधी विभिन्न जानकारियां प्राप्त हुई हैं। उन्होंने कहा कि परिसर में कुछ महीने पहले ही शुरू हुआ स्वामी करपात्री जी महाराज वेदशास्त्रानुसंधान केंद्र अपना महत्त्व साबित करने लगा है।

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