डॉ.वीरेंद्र बर्त्वाल,देवप्रयाग वरिष्ठ पत्रकार
दिल जीतना राजनीति में बहुत बडी़ बात है। चुनाव में ऐसे नेताओं का हारना कोई बडी़ बात नहीं होती है। हार के अनेक कारण हो सकते हैं,इसलिए किसी नेता की हार उसकी राजनीतिक विफलता ही नहीं मानी जा सकती। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी चुनाव भले ही हार गए थे,परंतु उनकी लोकप्रियता का ग्राफ किसी जीते हुए विधायक से कहीं ऊंचे शिखर पर था। आम जनता और यहाँ तक कि कतिपय प्रतिद्वंद्वियों का भी उनकी पराजय पर पश्चाताप करना इस बात द्योतक है कि धामी यहाँ अधिसंख्य लोगों की चाहत बन गए थे। हाईकमान द्वारा लंबी माथापच्ची के बाद सीएम के लिए धामी पर पुनः ठप्पा लगाने के पीछे भी यही कारण है। पिछली सरकार में आखिरी छह महीनों में उन्होंने जिस प्रकार ताबड़तोड़ फैसले लिए, उनकी सराहना भी हुई और आलोचना भी नहीं हुई है। यद्यपि उनकी बडी़ परीक्षा अब है। अब उनके पास ‘कम समय’ का भी बहाना नहीं होगा।
पलायन, रोजगार, भू कानून,राजधानी गैरसैंण आदि मसले उत्तराखंड में महत्त्वपूर्ण हैं। इन पर जनअपेक्षा के आधार पर निर्णय लेना धामी की लोकप्रियता के ग्राफ को और ऊंचाई पर ले जा सकते हैं। कमीशनखोरी,भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगानी होगी। देहरादून से विकास के लिए रवाना होने वाला एक रुपया गांव तक पहुंचते-पहुंचते 60 पैसे रह जाता है।
ऐसे में कमीशनखोर तो डकार ले लेता है,परंतु विकास बीमार हो जाता है। इस सडी़-गली परंपरा के कुरूप चेहरे की सर्जरी आवश्यक है। राज्य बनने के 22 साल बाद भी कुछ गांवों का सड़क से न जुड़ पाना सिस्टम पर सवाल खडे़ करता है। ऐसे क्षेत्रों को विकास के लिहाज से तवज्जो दी जानी चाहिए। हावी होती अफसरशाही के आगे लकीर खींचना जरूरी है। रिटायर होने के बाद भी ‘सेवा’ देने को लालायित कुर्सीतोडू अफसरों से छुटकारा पाना बहुत जरूरी है,ताकि कुछ बेरोजगारों के चूल्हे जलने लगें। अधिक खाने की प्रवृत्ति वाले मोटे पेट के कर्मचारियों पर अंकुश न लगा तो राज्य की हालत बदतर हो जाएगी। विकास में रोडा़ अटकाने वालों पर भी लगाम लगे।
इस बार विपक्ष कमजोर है,इसलिए सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। हां,एकाध विघ्नसंतोषी नेता से सरकार को मुक्ति अवश्य मिली है। धामी जी से एक आग्रह यह है कि वे प्रति माह हर विधायक से अपने क्षेत्र की प्रगति की रिपोर्ट अवश्य लें। असीम अपेक्षाओं के राज्य उत्तराखंड का दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर बधाई और शुभकामनाएं धामी जी