जहां पवन बहे संकल्प
लिए, जहां पर्वत गर्व
सिखाते हैं
जहां ऊंचे नीचे सब
रास्ते, बस भक्ति के सुर में
गाते हैं.
उस देवभूमि के ध्यान
से ही मैं सदा धन्यवाद हो जाता हूं
है सौभाग्य मेरा,
मैं तुमको शीश नवाता हूं
है बाद में मेरा
सौभाग्य मेरा मैं तुमको शीश नवाता हूं और धन्य धन्य हो जाता हूँ
मंडवे की रोटी,
हड़के की थाप,
हर एक मन करता शिवजी
का झाप
ऋषि मुनियों की है ये
तपोभूमि
कितने वीरों की ये
जन्मभूमि
मैं तुमको शीश नवाता
हूं….