माल्टा उत्पादकों चेहरे पर खुशी के लिए दीर्घकालिक योजना जरूरी
-एप्पल मिशन की तरह सिट्रस मिशन को उत्तराखंड में किया जाए लाॅन्च
-हरेला गांव-धाद का 12 जनवरी तक चलने वाला वार्षिक आयोजन माल्टे का महीना शुरू
-अभियान में माल्टे का महीने उत्तराखंड हिमालय के फल उत्पादन और बाजार के सवाल पर हरेला गांव-धाद की होंगी विभिन्न गतिविधि
-उद्यान विशेषज्ञ डा. राजेंद्र कुकसाल, प्रगतिशील किसान बीर भान सिंह और केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के उद्यानिकी विभाग डा. तेजपाल बिष्ट ने रखे विचार
देहरादून: उत्तराखंड हिमालय में फलों के उत्पादन और बाजार के सवाल पर धाद संस्था की ओर से हरेला गांव-धाद का वार्षिक आयोजन माल्टा के महीना शुरू हो गया। विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार को चाहिए कि दीर्घकालिक योजना तैयार करें ताकि माल्टा उत्पादकों चेहरे पर खुशी हो। एप्पल मिशन की तरह सिट्रस मिशन को उत्तराखंड में लाॅन्च किया जाना चाहिए।
एक महीने तक चलने वाले इस अभियान में विभिन्न जिलों में लोगों के साथ चर्चा कर माल्टा की महत्ता और बाजार का सही मूल्य के लिए जागरूक किया जाएगा। विशेषज्ञों की ओर से सुझाव भी दिए जाएंगे।
मंगलवार को लैंसडौन चौक स्थित दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में अभियान की शुरूआत की गई। माल्टा के बहाने: पहाड़ के फल और उनकी आर्थिकी का सवाल विषय पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। बागवानी की आर्थिकी पर भी गहनता से चर्चा हुई। उद्यान विशेषज्ञ डा. राजेंद्र कुकसाल ने कहा कि विगत तीन दशक से नवम्बर-दिसम्बर माह आते ही हर वर्ष विपणन की समस्या को लेकर माल्टा फल चर्चाओं में रहा है। गढ़वाल और कुमाऊं मंडल विकास निगम को स्पेशल रिवाल्विंग फंड देकर माल्टा बेचने, रुद्रप्रयाग के तिलवाड़ा में गढ़वाल मंडल विकास निगम की ओर से माल्टा फल के प्रोसेसिंग करने, अल्मोड़ा के मटैला में कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने, किसानों को कलेक्शन सेंटर पर पहुंचाने पर सात से 10 रुपये प्रतिकिलो समर्थन मूल्य देने की बात समय समय पर हुई। गत वर्ष उत्तराखंड के माल्टा से गोवा में बनेगी वाइन, माल्टा को जीआई टैग आदि इतने सारे सरकारों के प्रयास, दावे के बाद भी इस वर्ष भी माल्टा उत्पादकों के चेहरे अच्छे भाव न मिल पाने के कारण उदास हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि दीर्घकालिक योजना तैयार करें ताकि माल्टा उत्पादकों चेहरे पर खुशी हो। उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में 1000 मीटर से 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों में माल्टा के बाग देखने को मिलते हैं। उद्यान विभाग के फल उत्पादन के वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में नींबू वर्गीय फलों (माल्टा संतरा कागजी नींबू)के अंतर्गत क्षेत्र फल 9992 हेक्टेयर और उत्पादन 36912 मैट्रिक टन दर्शाया गया है जबकि 2019-20 के फल उत्पादन आंकड़ों में राज्य में नींबू वर्गीय फलों के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 21739 हेक्टेयर जबकि उत्पादन 91177 मैट्रिक टन रहा। राज्य सरकार ने विगत वर्ष माल्टा के सी-ग्रेड फलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य नौ रुपया प्रति किलो निर्धारित किया, जो कि बहुत ही कम है। इस दर पर माल्टा फल उत्पादक जनपदों में बनाए गए कलेक्शन सेंटरों तक माल्टा फल लाने को तैयार नहीं है। उन्होंने माल्टा के स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुण के बारे में भी बताया। कहा कि माल्टा में विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। इसमें एंटीसेप्टिक, एंटी आक्सीडेट गुणों के साथ साथ यह शरीर को डी टोक्स करने में भी मदद करता है। इसमें प्रोटीन, आयरन, फाइबर और विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। माल्टा का छिलका सौंदर्य प्रसाधन में उपयोग किया जाता है। माल्टा के फल, छिलके, रस और बीज के तेल से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं।
उद्यमी और प्रगतिशील किसान बीर भान सिंह ने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि माल्टा और माल्टा के उत्पादों को हाउस आफ हिमालया के उत्पादों के साथ अच्छी ब्रांडिंग कर इसका प्रचार-प्रसार हो। राज्य में जैविक और पोषित तत्वों से भरपूर माल्टा को अभी तक राज्य सरकार की ओर से राज्य के बाहर विपणन की व्यवस्था नहीं की गई। ना ही मंडियों से संपर्क किया गया कि उत्तराखंड में यह फल प्रचुर मात्रा में है। जहां विदेशी माल्टा देशभर में 200-250 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है वहीं राज्य का माल्टा 30-35 रुपये तक ही पहुंच पाया है। राज्य सरकार इसे नौ रुपये के दर से क्रय कर रही है। किसान बोरियों में माल्टा को मंडियों में भेजते हैं। राज्य का मार्केटिंग बोर्ड आजतक माल्टा के लिए गत्ते के डिब्बे उपलब्ध नहीं करा पाया है। यदि फल बाेरियों में आएगा तो बिक्री भी उसी हिसाब से होगी। ऐसे में बागवानों और स्वयं सेवी संस्थाओं को साथ मिलकर इसके विपणन पर ध्यान देने की जरूरत है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के उद्यानिकी विभाग डा. तेजपाल बिष्ट ने बताया कि माल्टा के लिए राज्य में वातावरण बेहतर है। ऊंचाई के आधार पर देहरादून से चमोली और उत्तरकाशी में इसकी अधिकता है। आज जरूरत है तो मार्केटिंग और प्रोसेसिंग की। आजकल राज्य में बहुतायात में माल्टा है लेकिन, बाजार में दाम किसानों के लिए ज्यादा संतोषजनक नहीं हैं। ऐसे में एप्पल मिशन की तरह सिट्रस मिशन को उत्तराखंड में लाॅन्च करना चाहिए। माल्टा का जूस को सालभर तक पी सकें इसपर भी कार्य करने की जरूरत है। जूस के अलावा माल्टा का बाहरी छिलका में तेल व दवा बनाई जा सकती है। मध्यभाग में स्थित सफेद छिलके से शुगर कैंडी बन सकती है। उत्तराखंड में हमें एक-दो आइडल लोकेशन चयनित करने होंगे ताकि बेहतर कलेक्शन और लंबे समय तक माल्टा को रखा जा सके। इस मौके पर अवधेश शर्मा, दिनेश भंडारी, दिनेश बौड़ाई, शेर सिंह, वीरेन्द्र सिंह असवाल, लोकेश ओहरी, रितु भारद्वाज, राजेश नेगी, पूजा चमोली, हिमांशु आहूजा, गणेश उनियाल, वीरेन्द्र खंडूरी, बिजू नेगी, बी एस खोलिया, मानवेन्द्र सिंह बर्तवाल, रोशन धस्माना, गजेंद्र भंडारी, महाबीर सिंह रावत, देवेन्द्र कांडपाल आदि उपस्थित थे।
माल्टा को बाजार और सही कीमत न मिलना चिंताजनक
धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा कि एक समय था जब माल्टा को सभी सरकार उसी तर्ज पर आगे बढ़ाया जैसे आजकल कीवी और एपल मिशन पर जोर दिया जा रहा है। माना गया था कि कि माल्टा पहाड़ में फल उत्पादन की आर्थिकी में बदलाव की नई इबारत लिखेगा।. लेकिन, आज जब प्रदेश में हर वर्ष लगभग 90 हजार मैट्रिक टन का उत्पादन हो रहा है तब उसका पहाड़ के आर्थिक तंत्र में योगदान न के बराबर है। बाजार और सही कीमत न मिलना भी चिंताजनक है। फलों की सही कीमत और बाजार के लिए गठित मार्केटिंग बोर्ड की भूमिका पर भी सवाल है। सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में इस मुद्दे को लेकर उदासीनता भी चिंताजनक है। इन सभी सवाल को लेकर हरेला गांव-धाद का वार्षिक आयोजन माल्टे के महीने आयोजित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 12 जनवरी तक चलने वाले इस अभियान में माल्टे का महीने उत्तराखंड हिमालय के फल उत्पादन और बाजार के सवाल पर हरेला गांव-धाद की विभिन्न गतिविधि होगी। जहां भी माल्टा का उत्पादन हो रहा है वहां के किसानों के साथ संवाद किया जाएगा। मोहल्लों में माल्टा कचमोली का भी आयोजन होगा।
2022 में दो कुंतल तो 2023 में बढ़कर 10 कुंतल हुई बिक्री
माल्टे का महीना: हरेला गांव-धाद का वार्षिक आयोजन पहाड़ में सर्दियों में होने वालों फलों के पक्ष पर आधारित है। इसमें फलों के उत्पादन, बाजार और आर्थिकी की बात पर केंद्रित गतिविधि होती है। उन किसानों की परेशानी को भी सामने रखते जो उत्पादन तो कर रहे हैं लेकिन सही कीमत नहीं मिल पा रहा है। अभियान में विशेषज्ञों के संवाद होते हैं। वर्ष 2022 में एक दिन का विमर्श और विक्रय का आयोजन किया गया जिसमें दो कुंतल माल्टा नारंगी की खरीददारी हुई। इसी तरह 2023 में गांधी पार्क में स्टाल लगाए और घर पहुंचाने की व्यवस्था बनाई तो संख्या बढ़कर 10 कुंतल तक पहुंचा। इस वर्ष फंची सहकारिता की मदद से मोबाइल वैन का प्रयोग कर रहे है।
कार्यक्रम में विशेषज्ञों के सुझाव
– उत्पादित माल्टा का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए। वर्तमान में कम दरों पर माल्टा उत्पादक क्लेक्शन सेंटर तक माल्टा पहुंचाने में असमर्थ हैं, माल्टा उत्पादकों को मंडियों तक माल्टा भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट सब्सिडी मिले।
– माल्टा/ अन्य फलों के विपणन के लिए उत्तराखंड औद्यानिक परिषद को सुदृढ़ व सक्रिय किया जाए। सेब की तरह ही माल्टा कीवी आदि फलों की पैकिंग के लिए पेटियां उपलब्ध कराई जाए।
– माल्टा फलों को गर्मियों तक सुरक्षित रखने के लिए माल्टा उत्पादित ऊंचे, ठडें छायादार स्थानों में आसान टैक्नोलॉजी वाले कूल हाउसों का निर्माण कराया जा सकता है।
-उत्तराखंड के माल्टा फल को जीआई टैग भौगोलिक संकेतांक मिलना राज्य सरकार की उपलब्धि है लेकिन इसका लाभ माल्टा उत्पादकों को कैसे मिलें कृषकों को इसकी कोई जानकारी नहीं है। टैग का लाभ किसानों को मिले इस दिशा में प्रयास होने चाहिए।
-जिन क्षेत्रों में उद्यान सड़क से दूर हैं फलों और सब्जियों के ढुलान के लिए रोप वे का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि फल व सब्जी जल्दी बाजार तक पहुंच सके।
हरेला गांव है सामाजिक पहल
धाद संस्था का हरेला गांव गांव के सवाल के पक्ष में यह सामाजिक पहल है। जिसमें खाली हो रहे गांव और खेतों के बंजर होने के सवाल पर सामाजिक सहभागिता के साथ काम किया जाता है। हरेला गांव के साथी पहाड़ के गांव के साथ खड़ा होने के साथ उसकी बेहतरी के लिए अपने सुझाव देते हैं। साथ ही हम इसमें गांव के उत्पादन, उसकी चुनौतियों और उसके बाजार के सवाल पर अलग-अलग गतिविधियों का आयोजन भी करते हैं।