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चैंपियन के गुरूर, अहंकार ने चैंपियन को पनपने नहीं दिया,

साभार वरिष्ठ पत्रकार की फेसबुक से

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देहरादून। खानपुर विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन का विवादों से पुराना नाता रहा है। अपने आप को आईएफएस क्वालिफाइड, पहलवान, विभिन्न भाषाओं में समझ रखने वाले चैंपियन का बड़बोला पन्न चैंपियन को कई बार ले डूबा है। कांग्रेस में रहते हुये उनको सरकार ने वन विभाग छींनकर उनको झटका तो दिया ही है। लेकिन भाजपा में आने के बाद भी वो लंबे समय तक निष्कासित रहे हैं। भाजपा में वापसी करने के लिये उनको काफी माथापच्ची करनी पड़ी। जब भाजपा ने उनको पार्टी में बहाल किया, तो उन्होंने भाजपा को एक बार भी आड़े हाथ ले लिया है। उन्होंने हाल ही में मीडिया को बयान जारी कर कहा कि उनकी पहचान भाजपा से नहीं बल्कि गुज्जर समाज से है।

चैंपियन यही ही नहीं ठहरते हैं, एक पत्रकार के सवाल पूछने पर चैंपियन पत्रकार को ही आड़े हाथ लेते हैं। उनसे उनकी शैक्षिक योग्यता तक पूछते हैं। पत्रकार को उन्होंने पहलवानी में मात देने की बात कही। चैंपियन यही नहीं रुकते पत्रकार को कहते वह आईएफएस क्वालिफाइड होने के साथ ही फिजिक्स, कैमेस्ट्री जैसे विषय पर भी अच्छी समझ रखते हैं। चाहे तो मुझसे डिबेट कर सकते हैं। हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, पंजाबी भाषा की समझ रखने का प्रमाण पत्र भी वह मीडिया के सामने रखते है। इन तमाम धमकियों के बाद भी पत्रकार उनकी धमकी आसानी से सहते हैं। जिसके बाद पहलवानी का दम भरने वाले चैंपियन वहां से चले जाते और मीडिया मुंह की खाकर लौट जाती। खैर सवाल पूछने वाला पत्रकार करे भी क्या। मीडिया कॉर्पोरेट घरानों की दामाद और सरकार के हाथों की कठपुतली बन गयी है। बचे कुचे ईमानदार पत्रकार जो सरकार और अपराधियों के खिलाफ बोलने की हिम्मत करते हैं। उनको सरकार और बदमाश समय- समय पर अलग –अलग तरह की यातना दे रहे हैं। अगर एक शब्द कहें तो पत्रकारिता वर्तमान समय में रास्ते में पड़ी कुतिया के समान है, जिसे कोई भी लात मार सकता है।
विवादों से पुराना नाता
राज्य बनने के बाद चैंपियन खानपुर विधानसभा से विधायक हैं। उनको मात देने वाला प्रतिनिधि इन बीस सालों में चैंपियन का बाल भी बांका नहीं कर पाया। इस लिये भी भाई साहब के चेहरे पर गुरूर और अहंकार साफ झलकता है। साल 2013 की बात है केदारनाथ आपदा के दौरान हरक सिंह रावत ने एक पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें चैंपियन को भी आमंत्रित किया था। वह अपनी लाइसेंस धारी पिस्टल लहराते हुये पार्टी में पहुंचे। फायरिंग करते वक्त उनकी गोली राज्य आंदोलनकारी विवेकानंद खंडूड़ी के पैर में लगती है, इस दौरान एक अन्य व्यक्ति भी घायल हो जाता है । हरीश रावत सरकार में वन मंत्री रहते हुये बाग की खाल से बनी जैंकेट का एक मामला सामने आया, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उनसे वन विभाग मंत्री पद वापस ले लिया था। खांटी नेता हरीश रावत ने उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया था। जिसके बाद कांग्रेस सरकार में बगावत हुई, नो विधायक भाजपा में शामिल हो गये। वर्ष 2017 का चुनाव आया, भाजपा में शामिल हुये विधायक को टिकट मिला। जिससे कुछ विधायक अपनी विधानसभा सीट से हार गये। लेकिन जो विधायक जीत दर्ज कर आये। उनमें से सुबोध उनियाल, सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य को मंत्री बनाया गया। लेकिन चैंपियन के बड़बोले पन्न की वजह से उनको भाजपा सरकार ने तवज्जो नही दिया। कुंठित चैंपियन फिर भाजपा पर निशाना साधने लगे। पार्टी में अनियमित्ता का माहौल खड़ा न हो भाजपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया । इतना ही नहीं राजघरने से तालुकात रखने वाले चैंपियन कभी तमंचे पर डिस्को करते हुये नजर आये, तो कभी झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल से भीड़ते नजर आये।

अब चैंपियन को घेरने के लिये आम आदमी पार्टी ने उनकी घेराबंदी करनी शुरू कर दी है। आम आदमी के प्रदेश प्रवक्ता रविन्द्र आनंद ने आरोप लगाया कि भाजपा में उनकी बहाली करोड़ों रुपये देकर हुई है।

हकीकत यह है, वह जिस भी पार्टी में रहे उनका घमंड, अहंकार ने उनको पनपने नहीं दिया। जिस भी पार्टी में रहे, उसी पार्टी ने उन्हें समय आने पर मुंह के बल गिराया।

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