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उजड़ रहा जोशीमठ, सिसक रहे लोग, विकास की आड़ में ,संकट पैदा हुआ पहाड़ में, कत्यूरी शासकों की राजधानी थी जोशीमठ ,जाने जोशीमठ का पूरा इतिहास सिर्फ एक क्लिक पर

नमिता बिष्ट, देहरादून

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जोशीमठ का इतिहास
जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने अब विकराल रूप ले लिया है। अब जिस तरह के हालात पैदा हो रहे हैं, उससे शहर के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। दरारें लगातार बढ़ती जा रही हैं और लोग दहशत में हैं। अब ये सवाल उठता है अगर इसी तरह लगातार भू धँसाव और भू स्खलन होता रहा तो क्या इस ऐतिहासिक नगर का अस्तित्व मिट जाएगा। जो हमेशा से वेद, पुराणों व ज्योतिष विद्या का केंद्र रहा है।

धार्मिक आस्था का केंद्र


चमोली जिले के पेनखंडा परगने में स्थित जोशीमठ ऐतिहासिक व धार्मिक महत्त्व का शहर है। यह समुद्र तल से लगभग 1,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । यह शहर कई मंदिरों और आश्रमों का घर है, और तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य भी है।

सनातन धर्म की रक्षा के लिए पहला मठ स्थापित


बता दें कि बद्रीनाथ धाम और भारत के तीन छोरों पर मठों की स्थापना करने से पहले शंकराचार्य ने जोशीमठ में ही पहला मठ स्थापित किया था। यहीं पर शंकराचार्य ने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ शंकर भाष्य की रचना भी की। तभी से जोशीमठ हमेशा ही वेद, पुराणों व ज्योतिष विद्या का केंद्र भी बना रहा। आदि गुरु शंकराचार्य के बाद ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य ट्रोटकाचार्य बने थे।

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बद्रीविशाल का शीतकालीन प्रवास


जोशीमठ में विष्णु भगवान को समर्पित नरसिंह मंदिर है। शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति इसी मंदिर में प्रतिष्ठित कर दी जाती है। मान्यता है कि जोशीमठ के नरसिंह मंदिर की पूजा-अर्चना किये बगैर बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी ही रह जाती है। इसके अतिरिक्त नरसिंह, वासुदेव, नवदुर्गा आदि के मंदिर भी यहाँ पर हैं।

नरसिंह मंदिर को लेकर किवदंती


इस मंदिर में भगवन नरसिंह की काले पत्थर से बनी मूर्ति प्रतिष्ठित है। किवदंती है कि इस मूर्ति का बांया हाथ कोहने के पास से लगतार क्षीण होता जाता है। जब यह गिर जायेगा तो नर और नारायण पर्वतों के आपस में मिल जाने से बद्रीनाथ का रास्ता बंद हो जायेगा। तब भगवान बद्रीनाथ की पूजा भविष्यबद्री में हुआ करेगी।

शंकराचार्य ने की ‘पूर्णागिरी देवी पीठ’ की स्थापना


जोशीमठ से बद्रीनाथ धाम की दूरी 30 किलोमीटर है। नरसिंह मंदिर के निकट ही आदि गुरु शंकराचार्य ने ‘पूर्णागिरी देवी पीठ’ की स्थापना की थी। जोशीमठ के पास क्वारी पास है जिसे कर्ज़न ट्रेल मार्ग भी कहा जाता है यहीं पर शंकराचार्य व टोट्काचार्य की गुफा है। इसके अतिरिक्त जोशीमठ में मणिकर्णिका कुंड है।

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ऐसे पड़ा जोशीमठ का नाम


मान्यता है कि 815 ई. में यहीं पर आदि शंकराचार्य ने एक शहतूत के पेड़ के नीचे साधना कर ज्ञान प्राप्ति की थी। शंकराचार्य के दिव्य ज्ञान ज्योति प्राप्त करने की वजह से ही इसे ज्योतिर्मठ कहा जाने लगा। जो बाद में आम बोलचाल की भाषा में जोशीमठ कहा जाने लगा। बता दें कि प्राचीन काल में इसे योषि कहा जाता था।

आदि शंकराचार्य की साधनास्थली


यहाँ आज भी 36 मीटर की गोलाई वाला 2400 साल पुराना वह शहतूत का पेड़ है ,जिसके नीचे शंकराचार्य ने साधना की थी। इसी पेड़ के पास शंकराचार्य की तपस्थली गुफा भी मौजूद है, जिसे ज्योतिरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

कत्यूरी शासकों की राजधानी थी जोशीमठ


छठीं सदी में जोशीमठ कभी कत्यूरी शासकों की राजधानी रहा करती थी, तब इसे कीर्तिपुर के नाम से जाना जाता था। बता दें कि कत्यूरी वंश के संस्थापक बसंतनदेव थे। जिसका पता पांडुकेश्वर ताम्रलेख से मिलता है। पांडुकेश्वर ताम्रलेख में पाए गए कत्यूरी राजा ललितशूर के अनुसार कत्यूरी शासकों की प्राचीनतम राजधानी जोशीमठ में थी।

जोशीमठ छोड़ कर बैजनाथ बनाई नई राजधानी


बसंतनदेव के बाद जोशीमठ में कत्यूरी वंश की 3 शाखाओं खर्परदेव वंश, निम्बरदेव वंश और सलोणदित्य वंश ने शासन किया था। सलोणदित्य वंश के चतुर्थ राजा नरसिंह देव ने कत्यूरियों की राजधानी जोशीमठ से बैजनाथ (बागेश्वर) में स्थानांतरित की थी। बता दें कि बागेश्वर के शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार जोशीमठ में बसंतनदेव ने भगवान नरसिंह का मंदिर निर्माण करवाया था।

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1803 से 1815 तक गोरखाओं का शासन


11वीं सदी में कत्यूरियों को विस्थापित कर चंदों और परमार वंश के राजाओं ने शासन स्थापित किया। गढ़वाल के अन्य भागों की तरह जोशीमठ 1803 से 1815 तक गोरखाओं शासनादेश रहा और बाद में अंग्रेजों के अधीन रहा। आजादी के बाद 24 फरवरी 1960 को पौड़ी से अलग होकर चमोली जनपद का गठन किया गया। जिसमें जोशीमठ को चमोली जनपद में शामिल किया गया ।

कई लोकप्रिय ट्रेकिंग मार्गों का भी प्रवेश द्वार


जोशीमठ अपने धार्मिक और सांस्कृतिक आकर्षणों के अलावा अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है। यह शहर जंगलों से घिरा हुआ है। इतना ही नहीं जोशीमठ कई लोकप्रिय ट्रेकिंग मार्गों का प्रवेश द्वार भी है। यहाँ से बदरीनाथ, विष्णुप्रयाग, नीति-माणा, हेमकुण्ड साहिब और फूलों की घाटी, औली के अलावा कई अन्य धार्मिक व पर्यटन स्थलों की ओर रास्ता जाता है।

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