, देहरादूनः सनातन धर्म में जिस प्रकार अलग-अलग माह देवी-देवताओं को समर्पित हैं, उसी प्रकार आश्विन माह का कृष्ण पक्ष पितरों को श्राद्ध पक्ष यानी पितृपक्ष श्रद्धा का पर्व है। इसे पितरों की आराधना का पुण्य काल माना जाता है। इस दौरान पितरों का अपने वंशजों के बीच पृथ्वी लोक पर आने का आह्वान किया जाता है। इससे पूर्वजों का आशीर्वाद उनके वंश पर बना रहता है। लेकिन, कई लोग भ्रांतिवश श्राद्ध पक्ष में दैनिक खरीदारी और पूजा-पाठ करने को लेकर संशय में रहते हैं। जबकि, इसमें किसी प्रकार का निषेध नहीं है। पितर तो हमारी समृद्धि देखकर प्रसन्न होते हैं। यह कहना है कथा व्यास एवं ज्योतिषार्य शिव प्रसाद ममगाईं का।
वास्तव में पितरों को देव कोटि का माना गया है। उन्हें विवाह समेत विभिन्न शुभ कार्यों में आमंत्रित किया जाता है। पितृ पक्ष उनके स्मरण और श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध का काल है। ऐसे में सिर्फ एक अनजानी परंपरा के नाम पर बाजार सन्नाटे के आगोश में समा जाता है, जिसका असर देश की वित्तीय व्यवस्था के साथ इससे जुड़े व्यक्तियों पर भी पड़ता है। आचार्य
आचार्य शिव प्रसाद ममगाई के अनुसार पितृपक्ष में खरीदारी निषेध नहीं, हमारी समृद्धि देख प्रसन्न होते पितृ
शिव प्रसाद ममगाईं के अनुसार, श्राद्ध का मतलब पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पितर किसी न किसी रूप में स्वजन से मिलने के लिए धरती पर आते हैं। और स्वजन के बनाए भोजन व भाव को ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण को भोजन कराने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों का आशीर्वाद विशेष रूप से बना रहता है। इस दौरान पितरों का स्मरण कर खरीदारी की जा सकती है।