डी .एस. के का विश्लेषण 22 साल की एक हकीकत
देहरादून। उत्तराखंड में घोटालों की बाढ़ सी आ गई है। यहां जिस तरह से रोजाना घोटाला-घपलों के नए नए एपिसोड लांच हो रहे हैं, उससे तो यही प्रतित हो रहा है कि प्रदेश में 22 सालों में विकास कम और घोटाले ज्यादा हुए हैं। बहुचर्चित अधीनस्थ चयन सेवा आयोग पेपर लीक मामले में एसटीएफ लगातार नए-नए खुलासे कर रही है। साथ ही नकल माफियाओं को पकड़ रही है। इसके साथ ही आरोपियों की संपति का भी खुलासा हो रहा, जिससे सभी के पैरों तले जमीन खिसकना लाजमी है।
यूकेएसएसएससी पेपेर लीक मामले का बड़ा आरोपी हाकम सिंह जैसे लोग उत्तराखण्ड को बर्बाद कर रहे हैं और युवाओं का भविष्य के साथ खिलवाड़ कर नौकरी को आलू प्याज की तरह बेच रहे हैं। जरा उन मां –बाप से पूछो जो अपने बेटे को पढ़ाने के लिए अपनी जमीन और गहने तक बेच देते हैं और गरीबी के चलते अपने बच्चों की फीस देने के लिए खुद भूखे रहते हैं। मां-बाप सपने देखते हैं की मेरा बेटा पढ़ लिखकर कामयाब होगा, जिसके लिए कर्ज निकालकर बेटे को देहरादून शहर में कोचिंग करवाते हैं और बेटा दिन रात पढ़ाई कर करता है, लगातार नौकरी के लि फॉर्म भरता है। लेकिन अंत में परीक्षाओं में धांधली निकलती है।
प्रदेश की विडंबना है कि पहले तो यहां परीक्षाएं ही बड़ी मुश्किल से होती हैं और जब होती भी हैं तो वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। परीक्षा अच्छी होने के बावजूद भी मेहनती बच्चा नौकरी नहीं पाता, क्योंकी नौकरी लाला यहां 15-15 लाख रुपये खाता है। जिससे जो पढ़ता नहीं जो लिखता नहीं, वह-रातोंरात अफसर बन जाता है। तो दूसरी ओर मेहनत करने वाला खाक छानता रह जाता है और बेरोजगारों की संख्या में एक नंबर और बढ़ाता है। मां बाप खून के आंसू रोते हैं, लेकिन जिनके पास पैसे हैं, उनकी निकमी-नालायक औलाद विधानसभा, सचिवालय, बीपीडीओ और वीडियो, वन दरोगा भर्ती में पास होकर भ्रष्टाचारी अधिकारी कर्मचारी बन जाते हैं।
वहीं बात करें विधानसभा की जहां प्रदेश की जनता अपने जनप्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है, ताकि वह प्रतिनिधि क्षेत्र का भला करें। वो स्थान विधानसभा ही है जहां जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि संविधान की शपथ लेते हैं कि मैं नियम विरुद्ध कार्य नहीं करुंगा, लेकिन जब से राज्य बना तब से विधानसभा भर्तीयों पर नजर मारे तो इन नेताओं ने जो, शपथ राजभवन में खाई थी, विधानसभा में खाई थी वह भूलकर, सत्ता के नशे में चूर होकर आम जनता को भूलकर अपने नाते रिस्तेदारों को थौक के भाव नौकरी लगाने में व्यस्त रहे। ताजूब तो इस बात का है कि उत्तराखण्ड का युवा सड़कों पर नौकरी मांग रहा है और विधानसभा में माननीयों के रिस्तेदार मौज उड़ा रहे हैं।
वहीं उत्तराखण्ड का एक गरीब गांव से किसी मंत्री विधायकों से मिलने आता है तो उसका पास नहीं बनता। उसको एक पास बनाने के लिए 565 फोन घुमाने पड़ते हैं। सबसे पहले जब गरीब जाता है, तो उससे गेट पर बैठाकर पुलिस वाला उसको रोकता है, यदि उसके पास गाड़ी है और मंत्रीयों तक पहुंच है तो सलाम ठोकते हैं, लेकिन वह बेचारा जरुरत मंद है, गरीब है, तो उससे पचासों सवाल पूछते हैं, और व्यवहार ऐसे करते हैं, कि जैसा वह अपराधी हो और जांच पुछ ऐसी की जैसे अंदर राजा हरीशचंद्र जैसे राजा बैठे होंगे। फिर यदि उस गरीब का पास बन भी जाता है, तो वह दिनभर मंत्री की एक झलक पाने के लिए तरसता है। कभी तो हालत यह होती है कि जनता बाहर के कमरे में बैठी रहती और मंत्री जी पीछे के दरवाजे से निकल जाते हैं। दूर-दूर से आए लोगों को पानी तक नहीं पूछा जाता है, जबकी माननीयों के रिस्तेदार नातेदार नौकरी के नाम पर धूप सेकते हैं और कई तो स्वेटर बुनती हुई नजर आती हैं। विधानसभा में इतने कार्यलय नहीं है जितने कर्माचारियों को बैकडोर से भर्ती दे दी गई है। वहीं जितने कार्यलय भी है तो उनके दरवाजों पर भी ताले लटके हुए हैं।
एक तरफ राज्य पर करोड़ों का कर्जा, दूसरी तरफ सरकारी खजाने का ऐसा दुरुप्रयोग। हम अब एक ऐसे चमत्कार के बारे में बताने जा रहे हैं, जो सिर्फ उत्तराखण्ड के नेता कर सकते हैं ऐसा चमत्कार के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जिसमें एक अधिकारी को एक ही दिन दो अलग अलग पदों पर प्रमोट किया जाता है। 24 फऱवरी 2022 को जारी आदेश के अनुसार विधानसभा सचिवालय में तैनात अपर सचिव मुकेश सिंघल को 31 दिसंबर 2021 को सचिव पद पर प्रमोशन मिलता है। उनका वेतन 1 लाख 31 हजार 100 रुपए होता है। लेकिन इसी आदेश को विस्तार से देखें तो उक्त अधिकारी को सचिव पद पर प्रमोशन देते हुए उसका वेतन एक लाख 44 हजार 200 रुपए कर दिया जाता है। यही नहीं जुलाई 2022 में फिर से इस अधिकारी के लिए वेतन वृद्धि प्रस्तावित है।
यानी दिसंबर में प्रमोशन पाए अधिकारी को दो माह बाद फऱवरी में फिर से पदोन्नति मिल जाती है। 2 महीने में यह अधिकारी लेवल-12 से लेवल-13ए और लेवल-13ए से लेवल-14 तक पहुंच जाता है। ऐसी छलांग भारत में शायद ही किसी अधिकारी ने लगाई हो। भारत सरकार के प्रशासनिक सेवा में आने वाले आईएएस भी लेवल 10 में भर्ती होते हैं। लेवल 14 के वेतनमान तक आने में उन्हें करीब 25 साल का समय लग जाता है। लेकिन उत्तराखंड़ में कुछ भी संभव हो जाता है। यहां एक अधिकारी एक ही तारीख के आदेश से दो दो बार प्रमोशन पा जाता है। दिलचस्प ये है कि ये आदेश मुख्य कोषाधिकारी को भी भेजा गया है, जहां से वेतन निकलना है।
उत्तराखण्ड मेँ इस तरह से अंधेरगर्दी मची हुई है, इसमें ना भाजपा कम है और ना कांग्रेस लेकिन प्रेमचंद अग्रवाल तो चार कदम आगे निकले और उन्होंने गैर उत्तराखण्डियों को भी नौकरी लगा दी, लेकिन नौकरी किसी गरीब और जरुरत मंदों को नहीं बल्कि नाते रिश्तेदारों का विशेष ख्याल रखा। उत्तराखण्ड में इस 22 सालों में क्या खोया क्या पाया इन लिस्टों से आप भलीभांति समझ सकते हैं।