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शिखर पर पहुंचकर जड़ को देखना – कोई गणेश गोदियाल से सीखें

कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल जमीन से जुडे़ नेता हैं सभवतः वे जमीन भी नहीं छोडे़ंगे। खबर मिली है कि आज वे देहरादून के उन गरीब बच्चों के साथ दीपावली मनाने जा रहे हैं,जिनके लिए यह त्योहार तरसाने वाला होता है। इसके लिए गोदियाल को उनकी बचपन की एक घटना प्रेरक है। वर्ष,1977 में जब गोदियाल दस वर्ष के थे तो उनके परिवार में बहुत विपन्नता थी। मां ने दीपावली के दिन कल्पना की-आधा किलो तेल होता तो हम स्वाळे(पूरियां) बना लेते। मां की इच्छा और पैसे का अभाव। बाल हृदय में एक द्वंद्वात्मक दर्द उठा। परिणाम की कुछ उम्मीद के साथ प्रयास किया। तेल का खाली डिब्बा उठाया और दुकान की ओर चल पडे़। दुकानदार से बाद में पैसे देने की गुहार लगा तेल देने को कहा,लेकिन निराशा हाथ लगी। खाली डिब्बे के साथ घर आना दिल पर पत्थर रखकर आना जैसा था। वह दिन यादगार बन गया। तब से दीपावली का दिन चिढ़ाता जैसा है। लगता है कि यह त्योहार हर गरीब को कचोटता होगा। न जाने मुझ जैसे कितने बच्चे अभाव में जीकर आधा किलो तेल और चंद रुपयों के लिए तरसते होंगे। गोदियाल जी को मलाल है कि वे ऐसे बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पाए,लेकिन संकल्पबद्ध हैं कि वे कुछ जरूर करेंगे। गोदियाल कहते हैं-आज मैं प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष हूं और मुझे बहुत सारी मिठाई तोहफे में मिली हैं। इस मिठाई के असली हकदार ऐसे तमाम बच्चों के साथ मैंने दीपावली मनाने का निर्णय लिया है। ऐसे में इन तोहफों का सदुपयोग हो पाएगा और मेरे इस पद पर होने का भी।
गोदियाल हरिद्वार बाइपास स्थित कबाड़ी बाजार के बच्चों के साथ दीपावली मनाएंगे।
ब हर हाल, यदि यह राजनीतिक स्टंट न हो तो मैं गोदियाल जी के इस निर्णय को सौ बार नजदीक से नमस्कार करता हूँ।
-डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल,देहरादून
(तथ्य और चित्र अनिल रावत जी की पोस्ट से)

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