दीपक कैन्तुरा, रैबार पहाड़ का
देहरादून:मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के विकास के साथ यहां की विलुप्त होती संस्कृति बोली भाषा रीति रिवाज बार त्योहारों को पुनर्जीवित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं, आपको मालूम हो की उत्तराखंड राज्य बनने के 23 साल बाद इगास पर्व की यदि किसी ने सरकारी अवकाश घोषित किया वह हैं सीएम सिंह धामी वहीं इसके बाद एक जीता जागता उदाहरण भराड़ीसैंण विधानसभा में दिखा जब पूरी सरकार ने लोकपर्व को बच्चों के साथ गैरसैंण में धूम धाम से मनाया है,और सीएम धामी ने इस पर्व को बाल पर्व के रूप में मनाने की घोषणा की थी सीएम की घोषणा के बाद शिक्षा विभाग अपनी कार्ययोजना बनाने में जुट गया है,और आने वाले दिनों बच्चे फूलदेई की कविता हिंदी अंग्रेजी और संस्कृत में भी पढ़ेंगे,सीएम धामी की इस पहल चारों तरफ तारीफ हो रही है।
जानें क्यों खास है फूलदेई का पर्व
पर्वतीय अंचलों में ऋतुओं के अनुसार पर्व मनाए जाते हैं। इन्हीं में शामिल है उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा से जुड़ा पर्व फूलदेई, जिसका आगाज हो गया है। फूलेदई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, पूजैं द्वार बारंबार, फूले द्वार…. (आपकी देहरी (दहलीज) फूलों से भरी और सबकी रक्षा करने वाली (क्षमाशील) हो, घर व समय सफल रहे, भंडार भरे रहें, इस देहरी को बार-बार नमस्कार, द्वार खूब फूले-फले…) गीत की पंक्तियों के साथ गढ़वाल व कुमाऊं में विशेष रूप से मनाया जाने वाले इस पर्व पर सुबह फुलारी यानी छोटे बच्चों ने देहरी पूजन कर फूलों से सजाया जाता है। अष्टमी के दिन इन फुलारी को लोग मिष्ठान भेंट किया जाता है।