देहरादून’किसी सिद्धपीठ से जल कलश को लेकर कथा स्थल तक पहूँचना का मतलव देवों को नियंत्रित देना फिर गोपाल जी का जल धारा से अभिषेक करनें का मतलब होता है कि धारा का उल्टा करें तो राधा होता है यानी भागवत जी की आराधना देवी राधा रानी को निमंत्रण देना इसलिए कलश यात्रा होती है प्रथम दिन या अंतिम दिन से पहले दिन भी यहां देलभुमि में करते हैं जिसको जलयात्रा कहते हैं यह दिखाएं को मिला प्रेम नगर श्यामपुर देहरादून में राणा परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण से पहले कलशात्रा शिव मन्दिर चाय बगवान से ढोल दमाऊ की थाप और शिर पर कलश लिए पीत वस्त्र में गोविन्द जय जय गोपाल जय जय संकीर्तन करती हुई मुख्य मार्ग से होते हुए कथास्थल तक पहूचें वहां बेद मंत्रोच्चारण के द्वारा विद्वान ब्राह्मणों नें गोपाल जी का जलाभिषेक किया ।।वहीं कथा वाचन करते हुए
श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के प्रथम दिन ज्योतिष पीठ व्यास पद से अलंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई नें कहा मोक्ष क्या है? स्थितप्रज्ञ आत्मा को मोक्ष मिलता है। मोक्ष का भावर्थ यह कि आत्मा शरीर नहीं है इस सत्य को पूर्णत: अनुभव करके ही अशरीरी होकर स्वयं के अस्तित्व को पूख्ता करना ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है
अतिधन्य वेदों, उपनिषदों अथवा गीताजी का पाठ करना या सुनना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उपनिषदों और गीता का स्वयं अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहसकर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना निषेध माना जाता है। प्रतिदिन धर्म ग्रंथों का कुछ पाठ करने से देव शक्तियों की कृपा मिलती है।
धर्म-कर्म और सेवा का अर्थ यह कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हमारे मन और मस्तिष्क को शांति मिले और हम मोक्ष का द्वार खोल पाएं। साथ ही जिससे हमारे सामाजिक तथा राष्ट्रीय हित भी साधे जाते हों। अर्थात ऐसा कार्य जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र और स्वयं को लाभ मिले।
सेवा का अर्थ यह है कि सर्व प्रथम माता-पिता, फिर बहन-बेटी, फिर भाई-बंधु की किसी भी प्रकार से सहायता करना ही धार्मिक सेवा है। इसके बाद अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना पुण्य का कार्य माना गया है। इसके अतिरिक्त सभी प्राणियों, पक्षियों, गाय, कुत्ते, कौए, चींटी आति को अन्न जल देना। यह सभी यज्ञ कर्म में दान की चर्चा करते ममगांई ने कहा कि
दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियां खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है आज विशेष रूप से सुदर्शन राणा अधिराज राणा सरोज राणा संगीता राणा शिवांश पद्मा देवी लक्ष्मण सिंह बड़थ्वाल रेखा भरत बड़थ्वाल रिंकी केसर सिंह भंडारी चन्द्रकला जीतपाल नेगी शशि नेगी ताजबर बासकंडी शांति विष्ट सुमन देवेन्द्र नेगी सौम्या विकाश मेघा जितेंद्र कंडारी डौली प्रभा रावत युद्धबीर नेगी विक्रम नेगी दरवान नेगी जयमल मधु आचार्य दामोदर सेमवाल आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य सुनील ममगाईं आचार्य प्रदीप नौटियाल आचार्य द्वारिका नौटियाल आचार्य अनूप भट्ट हरीश जोशी महेश आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित थे!!