कौलागढ़ लक्ष्मी नारायण मंदिर से बैंड बाजों के साथ पीत वस्त्र में मुख्य यजमान शिर पर भागवत भगवान लिए हुए एवं पीत वस्त्र में महिलाऐं शिर पर जलकलश के साथ कथा पाण्डाल में आर्शीवाद लेकर कथा का आनंद प्राप्त किया यह जो कभी मनुष्य आनंद आर्शीवाद से प्राप्त करता है तो ,यदि आर्शीवाद के नजदीक न जानें पर आनंद में आनंद खो लेता है तथा सुख में कटौती होकर लोभ अभिमान बढ़ता है, वहीं मनुष्य पतन की और चला जाता है , जबकि आर्शीवाद लेने वाला युधिष्ठिर अर्जुन भगवान सहित राज्य प्राप्त किया करते हैं वहीं व्यास जी के द्वारा दिया गया आर्शीवाद दुर्योधन तक पद रूप में पहूँचता है फिर आर्शीवाद न लेने में पद अभिमान के कारण पतन हुआ , यह आज भी दिखता है आर्शीवाद का फल कद पद बढ़ता है फिर जब भूल जाते हैं हम तब भटकते लोग दरिद्र होनें के बाद हनुमान जी को मनाने लगते इसलिए बड़ो का गुरूजनों का आर्शीवाद से कद पद बढ़ा तो इनको ना भुलो यह बात कौलागढ़ एक ग्राउण्ड में दीपक नौटियाल व उनके परिजनों के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम दिन की कथा में ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई नें भक्तों को सम्बोधित करते हुए कही सच्चिदानंद की विस्तृत व्याख्या वर्णित करते हुए कहा जैसे प्रकाश पर अन्धकार का अधिकार नहीं हो सकता है उसी प्रकार एक बार आनंद प्राप्त होनें पर पुनः दुःख का अधिकार नहीं हो सकता आनंद प्राप्त्यर्थ विश्व में जितनें भी वादों के विवाद चल रहे हैं, उनको हम दो वादों में विभक्त कर सकते हैं ,एक भौतिकवाद, एवं दूसरा आध्यात्मवाद यदि इन दों वादों को हम भलीभाँति समझ लें तो यह वाद विवाद निर्विवाद रूप से हल हो जाय प्रथम भौतिकवाद का कहना है कि विश्व की उत्पति स्थिति एवं प्रलयादि सब कुछ प्राकृतिक नियमानुसार ही स्वयं होते रहते हैं ,उनका कहना है प्रतिक्षण अभिलिषित पदार्थ मिलते रहें हमारे आध्यात्म में आप जितनी छोटी प्रमाणु की कल्पना करते हैं ईश्वर उससे भी छोटा व आकाशादि की जितनी बड़ी कल्पना कर सकते हैं ईश्वर उसमें भी बड़ा है अर्थात ईश्वर धर्म से परे है अधर्म से परे है , कार्य से परे है, एवं कारण से भी परे है जो विश्व रूप हो जिससे विश्व उत्पन्न हुआ है , जिसमें विश्व स्थित है एसा माया व जिवों का स्वामी ईश्वर है सत ब्रह्म ,चिद ब्रह्म, आनन्द ब्रह्म ,सच्चिदानन्द में समाहित चतुर्दश भुवनात्मक शरीर जीव ब्रह्म का अंश है यही हमारा आध्यात्म कहता है आत्मा रही शरीर रथ बुद्धि सारथी है, मन लगाम है इन्द्रियां घोड़े हैं हैं , ऐसे आत्मेन्द्रिय- मन – बुद्धि – युक्त , तत्व को भोक्ता – ब्रह्म कहा जाता है । ।
आज विशेष रूप से दीपक नौटियाल कुसुम नौटियाल दीपांशु नौटियाल रेयान नौटियाल सुरेश नौटियाल रमन नौटियाल राकेश नीरज कुसुम चहक निष्ठा सुषमा पूनम प्रीति नीलम सम्पूर्णा नौटियाल शरद शर्मा बालकृष्ण डोभाल पूनम बहुगुणा शिवम बहुगुणा मूर्तिराम कोठारी सुशीला कोठारी सीमा पांडेय श्री मनधीर कक्कड़ गुरविंदर भगतराम नौटियाल कालिका प्रसाद नौटियाल दामोदर सेमवाल दिवाकर भट्ट संदीप बहुगुणा द्वारिका नौटियाल प्रदीप नौटियाल सुरेश जोशी आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित थे!!