पट्टी बडियारगढ़ के सुपार (बडियारगढ़) में आयोजित घंटाकर्ण की जात (धार्मिक अनुष्ठान) में बड़ी संख्या में धियाणियां (बहू-बेटियां) अपने कुल देवता के दर्शन के लिए अपने मायके पहुँच रही हैं। 24 वर्षों बाद आयोजित हो रही नौ दिवसीय जात का दो फरवरी विधिवत समापन हो जाएगा।
घंटाकर्ण देवता को धियाणियों का भी देवता माना जाता है। श्री घंटाकर्ण की उत्त्पति के बारे में कई लोककथा, पौराणिक प्रमाण एवं जनश्रुतियां हैं। श्री घंटाकर्ण को महादेव शिव के भैरव अवतार में एक माना जाता है और टिहरी, पौड़ी और बद्रीनाथ में श्री घंटाकर्ण को क्षेत्रपाल देवता माना है। बदरीनाथ में घंटाकर्ण का मंदिर है और उसे देवदर्शनी (देव देखनी) कहते हैं। भगवान् बद्रीनाथ की पूजा से पहले श्री घंटाकर्ण की पूजा का विधान है। घंटाकर्ण को बद्रीनाथ धाम का क्षेत्रपाल (रक्षक) माना जाता है। इसलिए बद्रीनाथ के कपाट से पहले घंटाकर्ण मंदिर के कपाट खुलते हैं जो बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद ही बंद किए जाते है।
सुपार में घंटाकर्ण देवता की पूजा-अर्चना जोशी जाति के लोग करते हैं। ढोल वादक, कंडी वाहक, निज्वाला (देवताओं के नेजा- निशान ले जाने वाले) आदि का कार्य करने वाले लोग वंशानुगत अपने-अपने कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं। घंडियाल, मसाण, हीत, नागराजा, काली आदि देवी-देवता अनुष्ठान में अवतरित होते हैं। उनके पश्वा एक निश्चित जाति के ही हैं।
देव पूजन समिति के अध्यक्ष मोहन लाल चमोली का कहना है कि 24 वर्षों बाद हो रहे इस धर्मिक अनुष्ठान में देश ही नहीं विदेश से भी लोग आ रहे हैं। कई ऐसे परिवार भी हैं, जो चालीस साल बाद अपने गांव आए हैं। घंटाकर्ण देवता की कृपा-दृष्टि से गांव में मेला लगा है। वर्षों पूर्व मिले लोगों का पुनर्मिलन हो रहा है। उन्होंने बताया कि सुपार गांव में सुबह, दोपहर और रात के समय भंडारे का आयोजन किया जा रहा है।
इस मौके पर प्रधान सुमन जोशी, पप्पू जोशी, राजेश भट्ट, प्रकाश भट्ट, मुकेश जोशी ने कहा कि इस तरह के धार्मिक अनुष्ठान आपसी सद्भाव और एकता के प्रतीक हैं। ईष्ट-देवता हमें आपस में जोड़े रखते हैं।