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मन पर नियंत्रण का उपाय और मरण के रहस्यों का समाधान आज की आधुनिकता के पास नहीं है- आचार्य ममगाईं

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यह ज्ञान तो सिर्फ श्रीमद् भागवत व अन्य ग्रंथों में ही प्राप्त किया जा सकता है।


उक्त उद्गार जखोली रुद्रप्रयाग के कोट गांव कार्तिक मास में चल रहि श्रीमद्भागवत की कथा के प्रथम दिन देवभूमि उत्तराखंड के प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिव प्रसाद मंगाई जी ने व्यक्त किए उन्होंने कहा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम नहीं भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार धारण कर अपनी पावन दिलाओ के माध्यम से मानव को तरह-तरह की प्रेरणा दी है भगवान श्रीराम की तरह इसे किसने भी धर्म की रक्षा और अधर्मी यों के विनाश के लिए अवतार लिया है।
आचार्य ममगाई ने कहा लीला अवतार श्री कृष्ण जी का अवतार जहां अपनी लीलाओं के माध्यम से मानव कल्याण करने के लिए वहां वही कंस जैसे राक्षसों का संहार तथा महाभारत युद्ध की माध्यम से न्याय और धर्म की पताका फहराने के लिए हुआ
आचार्य ने कहा धार्मिक जन को बड़े से बड़ा कष्ट सैनी के लिए खुशी-खुशी तत्पर रहना चाहिए जिसने भी कष्ट सहन का अभ्यास कर लिया वह कभी भी दुखी नहीं हो सकता केवल सुखी रहने के लिए अमृत पीते रहने की आत्मा रखने वाला मामूली से दुख या उसे पलक उड़ता है अमृत पीने वाले देव के लाए जबकि विष पीने वाले देवों के देव महादेव के लाए
उन्होंने कहा कि राष्ट्र समाज तथा धर्म की रक्षा के लिए कष्ट सहने वाला सदैव के लिए अमर हो जाता है जबकि सदी सुविधा भोग का इच्छुक कलंकित माना जाता है महाराणा प्रताप स्वाधीनता सेनानी थी राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए भी स्वतंत्र संघर्षशील रहे भले ही उन्होंने जंगलों में भटक कर घास की रोटियां उनको खानी पड़ी बच्चों को भूखा वे लगता है देखना पड़ा आज इतिहास भी महाराणा प्रताप अमर है उन्हें घास की रोटी ओके और सुखा भावों ने ही बनाया है।
आचार्य ममगाईं ने कहा कि हमारे कर्मकांड पूर्णता वैज्ञानिक है विज्ञान शास्त्र की तरह धर्मशास्त्र में स्पष्ट वर्णन है कि अमुक मंत्र के साथ यज्ञ में दी गई आवती से आमुख फल परिणाम प्राप्त हुआ मंत्रों में अपार शक्ति होती है जो काम असंभव है वह मंत्र पल भर में संभव कर देते हैं किंतु अनुष्ठान करतार चरित्रवान संयमी कराने वाला सत्ता साधना को सरल व सफल बनाने का प्रमुख साधन है तामसिक भर्ती के मानव को मंत्रों से कुछ नहीं मिलता।
उन्होंने कहा केवल मंदिर में जान आया घंटा बजाना मात्र भक्ति नहीं है सत्ता विनम्रता जैसे गुणों से गधे को मंडित करना ही भक्ति की प्रथम सीढ़ी है मन और दृश्य की शुद्धि ही भक्ति मार्ग की कसौटी है सच्चा भक्त और वैष्णव तो वही है जो दूसरों के दुखों से द्रवित हो उठता है जो क्योंकि सेवा सहायता के लिए तत्पर हो उठता है स्वयं के अभ्यास को संतुष्टि का साधन शास्त्रों ने कहा भोगी कभी भी संतुष्टि आश्रित नहीं होता संयम और मन मैं संतोष रखने वाला व्यक्ति ही सुखी होता है विवेकी व्यक्ति ही सेमी और संतोषी हो सकता है विवेक सत्संग के माध्यम से भगवान नाम उच्चारण से ही जागृत होता है मन और मृत्यु का समाधान आज तक कहीं नहीं निकला श्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों में ही मिल सकता है।
आज विशेष रूप से श्री जगतम्बा सेमवाल श्रीमती भावना देवी कृष्णा खुशी श्री कामेश्वर सेमवाल जनानंद सेमवाल पूर्णानंद सेमवाल गुणानंद सेमवाल आचार्य दामोदर सेमवाल श्री रत्नमणि सेमल्टी लक्ष्मी प्रसाद सेमवाल संजय सेमवाल आदि भक्त उपस्थित थे

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