- ऋषिकेश के उड़ान स्कूल में बच्चों ने मनाया फूलदेई त्योहार
- आज से शुरू हो गया चैत का महिना
- शहरों मैं भी फूलदेई का जश्न
फूलेदई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, पूजैं द्वार बारंबार, फूले द्वार…. (आपकी देहरी (दहलीज) फूलों से भरी और सबकी रक्षा करने वाली (क्षमाशील) हो, घर व समय सफल रहे, भंडार भरे रहें, इस देहरी को बार-बार नमस्कार, द्वार खूब फूले-फले…) गीत की पंक्तियों के साथ उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व फूलदेई त्योहार आज से मनाया जाना शुरू हो गया।लोकपर्व फूलदेई संक्रांति का पर्व तीर्थनगरी में पारंपरिक ढंग से मनाया गया। तीर्थनगरी के ग्रामीण क्षेत्रों में फूलदेई संक्रांति से पूरे माह तक दहलीज पर रंग-विरंगे फूल बिखेरने की परंपरा भी है, जो शनिवार को फूलदेयी संक्रांति से शुरू हो गयी।
ऋषिकेश उड़ान स्कूल में फूलदेई मनाते बच्चे |
ऋषिकेश शहर आज नगरीय रूप लेने के कारण यहां भी जीवनशैली महानगरों की तरह बदलने लगी है। मगर, ऋषिकेश में रहने वाले पर्वतीय मूल के अधिकांश लोग आज भी अपनी परंपराओं को पूरी शिद्धत के साथ निभा रहे हैं। ऋषिकेश के ग्रामीण क्षेत्र हरिपुर कलां, श्यामपुर, गुमानीवाला, छिद्दरवाला सहित ऋषिकेश, मुनिकीरेती व ढालवाला क्षेत्र में भी कई जगह फूलदेयी संक्रांति के साथ पूरे चैत्र माह छोटे बच्चे इस परंपरा को निभाते हैं। शनिवार को फूलदेई संक्रांति पर कई क्षेत्रों में नन्हें बच्चों ने समूहों के साथ फूलदेयी पर्व पर अपने व आसपास के घरों की दहलीज पर परंपरानुसार बसंत में खिलने वाले रंग बिरंगे फूल बिखेरे। इसके साथ ही बच्चों की टोली ने परंपराओं में रचे-बसे गीत भी गाये।गढ़वाल महासभा के प्रदेशाध्यक्ष नेत्र चिकित्सक डॉ. राजे नेगी ने बताया कि फूलदेयी संक्रांति हमारी परंपरा से जुड़ा लोक त्योहार है। पहाड़ से पलायन के साथ हम अपनी संस्कृति व विरासत को भी भुला रहे हैं, जो हमारी समृद्ध संस्कृति के लिये नुकसानदेह है। उन्होंने सभी लोगों से अपने तीज-त्योहार और परंपराओं का निर्वहन करने की अपील की।