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Panch Kedar: द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट खुले, जानिए इस शिव मंदिर से जुड़ी खास बातें

पंचकेदारों में शामिल द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर धाम के कपाट सोमवार को वैदिक मंत्रोच्चार एवं पौराणिक विधि विधान के साथ भक्तों के दर्शनार्थ खोल दिए गए। भगवान मद्महेश्वर आगामी छह माह के लिए भक्तों को यहीं दर्शन देंगे। मद्महेश्वर धाम को पुष्प सेवा समिति ऋषिकेश द्वारा आठ क्विंटल फूलों से सजाया गया है।

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बता दें कि द्वितीय भगवान मद्महेश्वर मंदिर के कपाट आज शुभ लग्न में साढ़े 11 बजे भक्तों के दर्शनार्थ खोल दिए गए। बाबा मद्महेश्वर की चल उत्सव विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर से मंदिर के लिए प्रस्थान करते हुए देर शाम अंतिम पड़ाव गौंडार पहुंच गई थी।

पंचकेदार यात्रा में मद्महेश्वर की पूजा का क्या है महत्व

  • पंचकेदार में से एक मद्महेश्वर या फिर कहें मध्य महेश्वर की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। पंच केदार में इसे दूसरे केदार के रूप में पूजा जाता है। देवों के देव महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है, जिसकी हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा मान्यता है क्योंकि यहां पर भगवान शिव के बैल स्वरूप की नाभि की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस मंदिर को महाभारतकाल में पांडवों द्वारा बनवया गया था। आइए मद्महेश्वर मंदिर से जुड़ी 7 बड़ी बातों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

 

  • मद्महेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर स्थित है। जहां पर जाने के लिए ऊखीमठ से कालीमठ और फिर वहां से मनसुना गाँव होते हुए 26 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।

 

  • उत्तराखंड के पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। भोले के भक्त केदारनाथ में बैलरूपी शिव के कूबड़ की, तुंगनाथ में भुजाओं की, रुद्रनाथ में मस्तक की, मद्महेश्वर में नाभि की और कल्पेश्वर में जटाओं की पूजा करके पुण्यफल प्राप्त करते हैं।

 

  • हिंदू मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति मद्महेश्वर मंदिर में जाकर भगवान शिव की नाभि का दर्शन और पूजन करता है, उस पर महादेव की असीम कृपा बरसती है, जिसके पुण्य प्रभाव से वह सुखी जीवन जीता हुआ अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है।

 

  • हिंदू मान्यता के अनुसार प्रकृति की गोद में बसे इसी मंदिर कभी महादेव और माता पार्वती ने रात्रि बिताई थी। मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा के लिए दक्षिण भारत के लिंगायत ब्राह्मण पुजारी के रूप में नियुक्त होते हैं।