देवभूमि उत्तराखंड में बढ़ती मजारों …पर – राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ . राजेश्वर उनियाल का चिंतन


बंधुओ एक सरकारी रिपोर्ट आई है, जिससे पता चला है कि देवभूमि उत्तराखंड में लगभग 1000 अवैध मजारें हैं। अब जब सरकार ही एक हजार की संख्या बता रही है, तो स्वाभाविक है कि कम से कम इस प्रकार की तो दो-तीन हजार अवैध मजारें अवश्य होंगी । अब जरा सोचिए कि जहां 200 वर्ष पहले तक भारत में औसतन हर 3 गांव पर एक वैदिक विद्यालय होते थे अर्थात इस हिसाब से देखा जाए, तो उत्तराखंड की समस्त 6000 ग्राम पंचायतों में लगभग 2000 वैदिक विद्यालय रहते रहे होंगे ।परंतु अब वैदिक विद्यालय तो गिनती भर के हैं, लेकिन मजारें 2,000 से अधिक बन चुकी हैं । यदि ये मजारें देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम विश्वविद्यालय के (जो हो ना सके) कुलपति के कार्यकाल में बनी होती, तो हम कह सकते थे कि इसके पीछे तुष्टिकरण की राजनीति हो सकती है। परंतु इन मजारों का निर्माण तो राष्ट्रवादी सरकार के समय में हो रहा है, तो इससे स्पष्ट है कि इन अवैध मजारों का निर्माण किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश का परिणाम है।
जबकि हम अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे पहाड़ों में वनों की रक्षा कितनी कड़ी पहरेदारी में की जाती है । हमारे पहाड़ों में हमारे गांव वनों पर आधारित होते हैं। हम वन को देवता मानकर उसकी पूजा भी करते हैं । परंतु क्या मजाल कि हमारी घस्यारी किसी जंगल में जाकर लकड़ी या घास काटने का दुस्साहस कर दे । यदि ऐसा करें, तो तुरंत पतरौल आकर उसकी दाथुड़ी को छीन लेता है तथा उन्हें दुबारा ना आने की कड़ी चेतावनी दी जाती है अर्थात अपने ही वनों से अपने जानवरों के लिए घास काटना भी एक अपराध है । इतना ही नहीं तो जब हम छोटे थे, तो उस समय पौड़ी में हमारे घर में एक गाय होती थी। हम उसे चरने के लिए घर के आसपास छोड़ देते थे । लेकिन यदि वह गाय यदि चरते-चरते वन क्षेत्र में पहुंच जाए, तो उसे तुरंत कठघरे में कैद कर दिया जाता था। फिर हमें ₹2 की रसीद काटकर अपनी गाय को छुड़ाना पड़ता था । क्योंकि उस बेचारी गाय ने सरकारी जंगल में जाकर घास चरने का भयंकर अपराध किया है, तो उसे सजा भुगतना ही होगा । लेकिन आश्चर्य की बात है कि आज के समय में भी यदि हमारे जंगलों में या सड़कों के किनारे इस प्रकार से अवैध मजारें धड़ल्ले से बन रहे हैं, तो निश्चित रूप से इसके पीछे वन विभाग के अधिकारियों और गली मोहल्ला छाप के सेकुलर नेताओं का ही हाथ होगा । भले ही वहां की भोली-भाली जनता इतनी सरल हैं कि वह इन अवैध मजारों को बनते हुए देखकर भी चुप है, लेकिन हमें सोचना होगा कि उत्तराखंड देवभूमि ही नहीं बल्कि एक सीमांत राज्य भी है । जिस प्रकार से वहां एक ओर माओवादी तत्व सक्रिय हैं, तो दूसरी ओर से चीन हमें कमजोर करने के लिए षड्यंत्र रचता रहता है । इसलिए सरकार और उत्तराखंड की जागरूक व देशभक्त जनता को चाहिए कि इस विषय को केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि देवभूमि की पवित्रता एवं भारत माता की सुरक्षा को भी ध्यान में रखते हुए भी देखे तथा सरकार को चाहिए कि वन विभाग के उन जिम्मेदार अधिकारियों को चिन्हित करके उन्हें दंडित करें, जिनके कार्यकाल में यह सब हो रहा है । अन्यथा सौ-पचास साल बाद देवभूमि उत्तराखंड को कश्मीर बनने में देरी नहीं लगेगी । फिर हमारी भावी पीढ़ी को भी बद्री-केदार की यात्रा भी अमरनाथ यात्रा की तरह सेना के संरक्षण में करना पड़ेगा ।

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-डॉ . राजेश्वर उनियाल

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