बीजेपी द्वारा लोकसभा चुनाव मा डाळयाँ गोदा माछा लखपत चूँडी ल्हीग्यूँ: बलवीर सिंह राणा अडिग का विश्लेषण

बीजेपी द्वारा लोकसभा चुनाव मा डाळयाँ गोदा माछा लखपत चूँडी ल्हीग्यूँ

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बद्रीनाथ उपचुनाव पर बलबीर राणा ‘अडिग’ का विश्लेषण :-

बद्रीनाथ उपचुनाव में भाजपा ने हारना ही था, जब गलत स्ट्रेजी बनाओगे तो ऐसा ही परिणाम आएगा, सब जानते हैं कि राजेंद्र भंडारी जी का ट्रेक रिकॉर्ड क्या रहा है। खुद और ब्वारी के भ्रष्टाचार से धुलने के लिए बीजेपी ज्वाइन की। उपर से बीजेपी अध्यक्ष और राज्य सभा सांसद महेंद्र भट्ट जी का हमेशा का प्रतिद्वन्दी रहे। एक और अहम बात थी कि यह जनता पर थोपा गया उपचुनाव था।
मल्ला नागपुर पहले ही से रजनी जी द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष कार्यकाल में विकास के नाम पर गाँव गाँव के मुहाने पर अपने नाम का गेट बनाने से और भंडारी जी की अपनो के लिए *”भकार और दूसरों के लिए छार”* की नीति से खार खा चुका था। उपर से पार्टी द्वारा दलबदलू को टिकट देकर जमीनी कार्यकर्ताओं की आशा पर तुषारपात किया गया।
पेनखण्डा वाले जोशीमठ की वजह से बामपंथियों के जाल में फंसे पड़े हैं, जोशीमठ भू धसाव पीड़ित जनता ने अपने भविष्य एवं अस्तित्व हेतु सरकार के उपायों में लेटलतीफ व ना काफी के चलते संशय में हैं, जिससे बामपंथी अपना एंटी बीजेपी नरेटिव सैट करने में कामयाब रही और माहौल INDIA गठबंधन की तरफ बना।

इसके अलावा जड़सत्य है कि आज भी भारत में चुनाव पैसों के बल पर ही लड़ा और जीता जाता है। विकास का तो स्लोगन होता है चुनाव में बाकि धनबल बलशाली रहता है।
दो वोट जो फेंकेगा नोट।
यहाँ भी जीतने वाले महोदय कितना विकास करेंगे यह आने वाला भविष्य बताएगा। कोई व्यक्ति कैसे इमोशनल ब्लैकमेल करके अपने फौजियों व मास्टरों भाईयों, रिश्तेदारों को ठगकर बिना किसी विशेष जतन या कारोबार के इतनी संम्पति अर्जित कर लेता है यह आगे जानने का विषय होगा।

दोनों बड़ी पार्टियों ने पैंसे वाले उम्मीदवार को टिकट दिया, क्षेत्रीय पार्टीयाँ व नेता बेदम दिखे। नवल खाली जी ने भी अंधेरे में फाळ मारी कि चलो पत्रिकारिता और *भरतु की ब्वारी* सीरीज से आगे कुछ और फेम में आने के लिए चुनाव मैदान में कूदकर फेम की टाइम लाईन बढाई जाए। चौथे उम्मीदवार साहब भी ज़मानत जब्ती के लिए ही मात्र वर्चस्व स्थापित करने हेतु मैदान में उतरे।
पार्टियों के लिए उम्मीदवार काबिल नहीं दुधारु चाहिए। जिस उम्मीदवार के पास पैंसा होगा वो टिकट पाएगा। आज भी भारत का आम मतदाता (मध्यम और गरीब वर्ग) कुछ पैसों के लालच में वोट देता है। बिक जाता है। अपने व्यक्तिगत हित से बाहर राष्ट्र प्रथमम की भावना आजतक आम मतदाता में नहीं जगी, ना ही इन राजनीतिज्ञ चाणक्यों ने जगने दी ।
आज एक और पहलु भारतीय लोकतंत्र में सबसे बिडंबना का है, और वह है वोट ना देना। और यह वोट ना देने वाला वर्ग वो है खुद को आर्थिक स्वतंत्र मानते हैं या हैं। साथ में खुद को शिक्षित या बौद्धिक मानते हैं। हम सक्षम हैं हमें राजनीती से कोई इंट्रेस्ट नहीं ! लेकिन इन्हीं का ये नज़रिया राष्ट्र को कमजोर करने में भूमिका निभाता है। लोकतंत्र की इस मूल भावना को ये लोग समझते हुए भी इग्नोर करते हैं।
51% वोटिंग हुई बाकी के 49% लोग कहाँ हैं भाई? मान लेते हैं 30% अर्ध पलायित लोग हैं जो घर के ना घाट के हैं, ना मैत ना सोरास। यानि जो मूल वोटर तो उत्तराखंड का है लेकिन शहरों में अभी भी अर्धनिवास में रह रहा है। नीति नियंताओं को ऐसे वोटरों के लिए भी ऑनलइन जैसे कुछ विकल्प खोलने होंगे। लेकिन फिर भी 20% लोग कौन हैं जिन्होंने वोट नहीं किया?
मेरा मानना है कि लोकतंत्र में वोट ना देना सबसे बड़ा राष्ट्रद्रोह है। और नीति नियंताओं से अनुरोध है कि कि वे ऐसा क़ानून बनाए कि जो वोट नहीं करेगा उसको कोई भी सरकारी लाभ नहीं दिया जाय, अगर सरकारी लाभ पर है तो उसे वापिस लिया जाय। जब तक कड़े कदम ना उठाये जाए तब तक सुधार नहीं आता।
मैं अच्छा कमाता हूँ, मेरी अच्छी नौकरी है मुझे राजनीती से क्या लेना? राजनीती से नहीं लेना लेकिन प्रदेश और देश से तो लेना है, और जो ले रहे हो वह जर्मनी से ले रहे हो क्या ? ,देश से कमा रहे हो, देश का खा रहे हो, देश में पल रहे हो और देश हित में अहित? मानना पड़ेगा इस बुद्धिमत्ता को! अरे भाई आपका जीवन कुछ कट चुका है और कुछ कट जायेगा लेकिन उन पौधों का सोचो जिनको आप आज सींच रहे हो और कल पेड़ बनकर उनको कोई कश्मीर या बंगाल की तर्ज पर ना काटे।
लेकिन इनको नहीं पता कि एक अशक्षम व्यक्ति अगर चुनकर कुर्सी पा गया वह आपका क्या अहित नहीं कर सकता है? एक अशक्षम सरकार क्या कुछ गलत फैसले नहीं ले सकती है यह भारत के प्रोड़ हो चले लोकतंत्र में जगजाहिर है । देवभूमि उत्तराखंड की डेमोग्राफ़ी बहुत कुछ बदल चुकी है और आगे बहुत कुछ बदलेगी, इस वोट बैंक की राजनीती से। आगे विधर्मियों को सपोर्ट करने वाली सरकार सत्ता में आई नहीं तो बद्रीनाथ पर बदरूद्दीन वाले दावे को पुख्ता होते देखोगे।
बीजेपी बद्रीनाथ सीट पर इस गलत फहमी में रही कि हवा बह रही है। हवा तो बही होगी लेकिन उपर ही उपर, नीचे जमीन पर लत्तर-पत्तर जनता का पसीना तो सुखा नहीं पाई। किसी एक रूप में कार्यकर्त्ता हतोत्साहित रहे पार्टी आलाकमान के फैसले पर, वो जोश और नरेटिव नहीं देखा गया जो लोकसभा चुनाव के दौरान था। प्रादेशिक और राष्ट्रीय मुद्दे को एक ताराजू से तौलने की भूल कर गई सायद बीजेपी। दूसरा केवल नेशनल लीडरशिप पर आप क्षेत्रीय चुनाव नहीं जीत सकते। क्षेत्र के अपने क्षेत्रीय इस्सू होते हैं जिन्हें इग्नोर करना भारी पढ़ता है, और इम्हें पढ़ा।
चलो अडिग कड़कड़ी-खड़खड़ी ही सुनाता है, जो आम स्वीकार्य नहीं होता, आगे हारने वाले मंथन करो, जितने वाले विश्व विजेता का जश्न मनाओ। बस, मेरे बींगने में तो इतना आया कि बीजेपी द्वारा लोकसभा चुनाव मा डाळयाँ गोदा का माछा लखपत चूँडी ल्हीग्यूँ।

स्वतंत्र विचार
*@ बलबीर राणा ‘अडिग’*
मटई वैरासकुंड