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कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में विलुप्ति के कगार पर यह प्रजाति, 2016 से नहीं दिया दिखाई

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में लकड़बग्घा 2016 से नहीं दिख रहा है, ऐसे में माना जा रहा है यह प्रजाति कॉर्बेट पार्क में विलुप्ति के कगार पर है। हालांकि, कॉर्बेट लैंडस्केप में भी इसकी उपस्थिति ना के बराबर है। लकड़बग्घा को लेकर सीटीआर में शोध चल रहा है और जंगल में लगे कैमरा ट्रैप खंगाले जा रहे हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में भाबर और तराई क्षेत्र में लकड़बग्घे आम थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या लगातार कम होती गई। लकड़बग्घे मरचूला के जंगल, ढेला, मोरघट्टी, पाखरो आदि क्षेत्रों में 2016 तक दिखाई दिया। 2015 में कॉर्बेट लैंडस्केप के रामनगर वन प्रभाग के देचौरी रेंज के पवलगढ़ में दिखाई दिया था। इसके बाद से लकड़बग्घा नहीं दिख रहा है। सीटीआर प्रशासन हर वर्ष बाघों की गणना के लिए जंगलों में कैमरा ट्रैप लगाता है, लेकिन 2016 से उनके कैमरा ट्रैप में लकड़बग्घा नहीं दिखा है। ऐसे में माना जा रहा है कि कॉर्बेट पार्क में लकड़बग्घा विलुप्त हो चुका है।

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सूर्यास्त के बाद सक्रिय होता है लकड़बग्घा

वन्यजीव विशेषज्ञ एजी अंसारी ने बताया कि लकड़बग्घा जंगल में बाघ, तेंदुए के मारे गए वन्यजीवों के बचे शव को खाता है। इनके पास हड्डियों को कुचलने के लिए मजबूत जबड़े होते हैं। लकड़बग्घा छोटे जानवरों और मवेशियों को भी मार सकता है। वह भोजन के लिए सूर्यास्त के बाद सक्रिय हो जाता है। 2015 के बाद वह लकड़बग्घा कॉर्बेट लैंडस्कैप में नहीं दिख रहा है।
 

ऐसा होता है लकड़बग्घा

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यह आम भारतीय लावारिस कुत्तों के आकार से करीब डेढ़ गुना बड़ा होता है। इसके शरीर पर काली धारियां हैं और लंबे बालों की एक पंक्ति इसके कंधे से पीठ तक चलती है। इसका सिर विशाल है और इसके अगले पैर मजबूत होते हैं। पिछले पैरों की तुलना में अधिक लंबे होते हैं। इसका वजन लगभग 34-38 किलोग्राम होता है। लकड़बग्घे का जीवनकाल लगभग 25 वर्ष होता है।

कॉर्बेट में दुर्लभ हैं लकड़बग्घा

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. धीरज पांडेय ने बताया कि लकड़बग्घा कॉर्बेट में अत्यंत दुर्लभ है। 2016 से पहले कॉर्बेट पार्क के जंगलों में लगे कैमरा ट्रैप के रिकॉर्ड को खंगाला जा रहा है। इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए कार्य किए जाएंगे।