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आजकल नेताओं या उनके बेटी बेटों को टिकट ना मिले तो कर देते बगावत, लेकिन युवाओं को मौका देने के लिए टिकट ठुकरा गए थे राजनीति के पुरोधा ठाकुर डॉ. भक्त दर्शन सिंह रावत

गढ़वाल लोकसभा सीट से चार बार सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ भक्त दर्शन सिंह

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देहरादून: वर्तमान राजनीति में सेवा भाव कम दिखता है और स्वार्थ ज्यादा दिखता है और जिसको जहां अपना स्वार्थ दिख रहा है वह उसे दल का दामन थाम रहा है कोई बाप की बदौलत राजनीति में उछल कूद कर रहा है तो कोई अपने बड़े नेता होने का फायदा उठाकर उमर दराज होने पर पुत्र पुत्री या रिश्तेदारों को अपनी विरासत सौंपने की चहा रखते हैं।

ऐसे में इस देवभूमि पर एक ऐसे राजनेता याद आते हैं, जिन्होंने चार बार लोस का चुनाव जीता ‘और जब लगा कि अब युवाओं को मौका देना चाहिए तो पांचवीं बार लोकसभा का टिकट ठुकरा दिया। यह राजनेता थे, पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. भक्त दर्शन सिंह। गढ़वाल की सियासत में 50 से 60 के दशक में भक्त दर्शन का बड़ा नाम था। प्रतिष्ठित संस्थानों के निदेशक, विवि के कुलपति रहे भक्त दर्शन ने आजादी के बाद 1951 में कांग्रेस टिकट पर गढ़वाल सीट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

मुरादाबाद का क्षेत्र भी शामिल था। इसके बाद 1957, 1962, 1967 के लोकसभा चुनाव में लगातार चुनाव जीतते गए। डॉ. भक्त दर्शन राजनीति में उन हस्तियों में थे, जिन्होंने कभी परिवारवाद की राजनीति नहीं की और न ही अपने सिद्धांतों से कभी पीछे हटे। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के शासन में भक्त दर्शन शिक्षा मंत्री

उस समय उनकी आयु 59 वर्ष थी। उनके इस फैसले ने इंदिरा गांधी को हैरान कर दिया था । वर्तमान राजनीति में उम्रदराज नेता भी चुनाव लड़ने को मचल रहे हैं। जब वे खुद असमर्थ हैं तो राजनीति विरासत पत्नी, पुत्र, पुत्रियों व रिश्तेदारों को छोड़ रहे हैं। लेकिन भक्त दर्शन उन नेताओं में जिन्होंने न तो अपने स्वार्थ को सर्वोपरि रखा और न हा राजनीति विरासत परिजनों को दी। ब्यूरो

रह चुके थे। 1971 के लोकसभा चुनाव के समय इंदिरा गांधी ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कहा। लेकिन भक्त दर्शन ने इससे साफ इनकार कर दिया। उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा था कि चुनाव लड़ने में युवाओं को मौका मिलना चाहिए। उस समय राजनीति में स्वर्णिम दौर होने के बाद भी भक्त दर्शन ने नये लोगों को राजनीति में अवसर देने के लिए संन्यास ले लिया।