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शहीद मेजर विभूति ढौंडियाल की याद में भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं को सुनने के लिए उमड़ा भारी सैलाब

सच्चा सुख तो आत्मज्ञान के बिना नही मिल सकता उसके लिए इन वृतियो का निरोध आवश्यक है जो निरंतर अभ्यास और वैराग्य से ही सम्भव है भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हे महाबाहो निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परंतु हे कौन्तेय अभ्यास और वैराग्य से यह वश में होता है कर्म छोड़ना वैराग्य नही है आशक्ति छोड़ना वैराग्य है

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उक्त विचार ज्योतिष्पीठ व्यास पद से अलंकृत आचार्य श्री शिव प्रसाद ममगाई जी ने 86 डंगवाल मार्ग नेशविला रोड में मेजर स्वर्गीय बिभूति शंकर ढोढियाल की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस में व्यक्त करते हुए कहा कि चित की स्थिरता के लिए बार बार जो प्रयत्न किया जाता है यह अभ्यास है मन बड़ा चंचल है यह एक क्षण भी शांत नही रहता विचारों का प्रवाह ही मन की चंचलता का कारण है यह प्रवाह में भी चलता रहता है स्वप्न भी इसी प्रवाह से आते हैं यह मन सर्वत्र भागता है इसे किसी एक धेय की ओर स्थिर करने की चेष्टा बारम्बार करना अभ्यास है जैसे ध्यान भजन कीर्तन मंत्र जप अपने इष्ट देवता या परमात्मा का ध्यान त्राटक ॐ पर ध्यान गुरु द्वारा दिये मंत्र का जाप शरीर के किसी अंग पर ध्यान केंद्रित करना आदि अनेक विधियां हैं इससे मन किसी एक केंद्र पर केन्द्रित होता है इससे मन की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है जिससे सिद्धि भी प्राप्त होती है साधक को इन सिद्धियों से बचकर आत्मज्ञान करना चाहिए जो संसार की ओर आकर्षित होता है तो वह अविद्या है सांख्य में इस चित को ही प्रकृति कहा गया है यह प्रकृति तीन गुणों सत्व रज तम से युक्त हैं समस्त सृष्टि का विस्तार इन्ही गुणों के आधार पर हुआ है तथा दृष्टा आत्मा इसे मात्र देख रहा है शरीर मे जो चित है वही सृष्टि में महतत्व कहा जाता है वास्तव में इसके भेद दो हैं विद्या और अविद्या महर्षि पातंजलि ने उन चित वृतियों का निरोध अभ्यास और वैराग्य से कहा है ईश्वर अथवा आत्मा कोई उपलब्ध होने वाली वस्तु नही है वह तो नित्य उपलब्ध है चित अपनी वृत्ति के अनुसार ही देखता है क्योंकि सच्चा सुख केवल आत्मज्ञान से ही मिल सकता है


इस अवसर पर मुख्य रूप से सरोज ढोढियाल जगदीश प्रसाद वैष्णवी ढोंढियाल हरीश चंद्र अमित सतीशचन्द्र गिरीश चन्द्र कर्नल विकास नौटियाल राजेश पोखरियाल मुकेश पोखरियाल विवेकानंद खंडूरी संतोष गैरोला दमयंती देवी बसन्ती देवी इंदु देवी हे शंकराचार्य पीठ के पुरोहित आचार्य ऋषि प्रसाद सती मंत सुचिवृता सीमा पोखरियाल वन्दना सोनिया कुकरेती गीता बडोनी रेखा बहुगुणा लक्ष्मी बहुगुणा नंदा तिवारी विमला आचार्य दामोदर सेमवाल आचार्य दिवाकर भट्ट आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य हिमांशु मैठाणी आचार्य अंकित केमनी आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित रहे।।