डॉ.वीरेंद्रसिंह बर्त्वाल
देवप्रयाग। समाज की धारणाओं को बदलना आसान काम नहीं। मिथकों को मिथ्या साबित करने के लिए सत्य को आगे करना होता है। उदाहरणों के स्थान पर कभी स्वयं को रखना होता है। मधु, माधुरी और श्रेष्ठा की त्रिवेणी ऐसा ही कर रही है।
संस्कृत को लेकर हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा भ्रम और संदेह में है। मसलन-संस्कृत केवल ब्राह्मणों की भाषा है, इसका उपयोग केवल पूजा-पाठ के लिए ही होता है, महिलाएं संस्कृत नहीं पढ़ती हैं, संस्कृत का कोई भविष्य नहीं है…..इत्यादि। परंतु अलीगढ़, उत्तर प्रदेश की रहने वाली इन तीन सगी बहनों ने साबित कर दिया है कि शिक्षा जहां इच्छा होती है, वहां राह बन जाती है। मधु, माधुरी और श्रेष्ठा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग में पढ़ती हैं। तीनों सगी बहनें मेधावी हैं। जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में तक विजेता बनती हैं। केवल अध्ययन में ही गहन रुचि नहीं, नृत्य, गायन, वक्तृत्व, अभिनय में भी आगे हैं। मधु शास्त्री (बीए) तृतीय वर्ष में पढ़ती है, दूसरी बहन शास्त्री प्रथम वर्ष और तीसरी बहन श्रेष्ठा प्राक्शास्त्री (बारहवीं) द्वितीय वर्ष में है। तीनों गुरुकुलों में रहकर आयी हैं, इसलिए संस्कृत के संस्कार वहीं पड़ गये थे। माधुरी और श्रेष्ठा हाल ही में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की राज्य स्तरीय वाद-विवाद स्पर्धा में प्रथम आयी हैं। श्रेष्ठा गत वर्ष केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय प्रतियोागिताओं के अंतर्गत अमर कोष कंठ पाठ में प्रथम स्थान हासिल कर चुकी है, जबकि मधु ने 2018 में उत्तर प्रदेश की सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया था।
संस्कृत के क्षेत्र में आने की राह कैसे बनी? इस प्रश्न के उत्तर में मधु कहती हैं-हमारे चाचा संेंट्रल यूनिवर्सिटी में पांडिचेरी में संस्कृत के अध्यापक हैं, उनसे ही प्रेरणा मिली। मधु कहती हैं-भाषा किसी धर्म, वर्ग और जाति की नहीं होती। भाषा अतीत की संवाहक, ज्ञान की प्रस्तोता और अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। संस्कृत में भी दुनिया की अन्य सभी भाषाओं के समान गुण हैं, लेकिन अनेक विशेषताओं में वह विश्वभाषाओं की सिरमौर है। संस्कृत जगत में हमारे आने का प्रमुख कारण यही है।
माधुरी का मानना है-मेधावियों की मांग हर क्षेत्र में है। संस्कृत भी इससे अलग नहीं है। संस्कृत में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, इसलिए सभी वर्गों के लड़के-लड़कियां संस्कृत की दुनिया में आ रहे हैं।
श्रेष्ठा कहती है कि संस्कृत के प्रति हमारा अधिकांश समाज आज भी संकुचित विचार रखता है, जबकि दुनियाभर के देश जो आज अपने ज्ञान पर इतरा रहे हैं, वह सब भारत की देन है और वह संस्कृत के माध्यम से ही संरक्षित और सुरक्षित रह सका है।
इन तीनों बहनों का सपना संस्कृत का अध्ययन कर शिक्षण के क्षेत्र में जाना है। तीनों बताती हैं कि वे अपना अधिक से अधिक समय अध्ययन को देती हैं। इस परिसर के शैक्षिक वातावरण से तीनों खुश और संतुष्ट हैं। उनकी प्रेरणा से लड़कियों में अधिक संख्या में संस्कृत पढ़ने की ललक जग रही है।
क्या कहते हैं निदेशक
श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के निदेशक प्रो0पीवीबी सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि संस्कृत अध्ययन का क्षेत्र अन्य सभी भाषाओं की तरह वर्ग, जाति और लिंगभेद रहित है। श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में सभी जाति, धर्म, वर्ग और क्षेत्र के विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहां लड़कियों की संख्या 35 है। जो पिछले आठ सालों की तुलना में काफी अधिक है। परिसर में लड़कियों का सुरक्षा और सुविधायुक्त अलग छात्रावास है। सामान्य खर्चे में भी छात्राएं यहां शिक्षा ग्रहण कर सकती हैं। संस्कृत के विषय चयन की स्वतंत्रता है। संस्कृत के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं तथा संस्कारयुक्त शिक्षा के दृष्टिगत लड़कियों का रुझान इस ओर बढ़ रहा है। यह संस्कृत और शिक्षा दोनों के हित में भी है।