देहरादून। उत्तरकाशी में फंसे 41 मजदूरों के बाहर निकलने की सूरत नहीं बन पा रही है। उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे सभी 40 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाले जाने की कामना हर कोई कर रहा है। ये श्रमिक तीन दिन से सुरंग में फंसे हैं। ऐसे में इनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी एक चुनौती है। गंदी और धूल भरी सिल्कयारा सुरंग के अंदर 150 घंटे से अधिक समय बिताने के बाद मजदूरों में कब्ज, सिरदर्द के अलावा क्लॉस्ट्रोफोबिया और हाइपोक्सिया जैसी कई मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
हालांकि अधिकारी लगातार यह दावा कर रहे हैं कि सुरंग में फंसे मजदूरों को भोजन, पानी और ऑक्सीजन जैसी आवश्यक चीजें सप्लाई की जा रही हैं। वहीं, चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि सूखे मेवे, मुरमुरे और पॉपकॉर्न जैसी चीजें दिन में तीन बार भोजन के आदी मजदूरों के लिए काफी कम पड़ती हैं। यह जाहिर तौर पर उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है।
देहरादून के एक वरिष्ठ सरकारी डॉक्टर ने कहा कि सुरंग में बड़ी मात्रा में सिलिका की मौजूदगी के कारण मजदूरों को सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। एक हफ्ते तक सुरंग में फंसे रहने के बाद संभवतः उन्हें गंभीर श्वसन संबंधी समस्याएं होंगी। इसके अलावा, कुछ व्यक्तियों को हाइपोक्सिया की शिकायत हो सकती है। इसमें सामान्य ऑक्सीजन लेवल, नाड़ी दर और रक्तचाप बनाए रखने में कठिनाई होती है।
उत्तरकाशी के सीएमओ आरसीएस पंवार ने कहा कि वे इन परिस्थितियों में अपनी बेस्ट कोशिश कर रहे हैं। फंसे हुए श्रमिकों की मांग के मुताबिक, उन्हें पहले ही विटामिन सी, कब्ज और सिरदर्द की दवाएं भेजी जा चुकी हैं। शनिवार की सुबह कई मजदूरों के एक समूह ने रेस्क्यू ऑपरेशन बंद होने की शिकायत करते हुए काफी निराशा व्यक्त की। सुरंग में फंसे मजदूरों के एक साथी मजदूर टिंकू कुमार ने कहा, ‘सुरंग में फंसे हमारे भाइयों को दवाओं को पचाने के लिए भी भोजन की जरूरत है। अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि उन्हें एक हफ्तें से ठीक से भोजन नहीं मिला है। सिर्फ पॉपकॉर्न और ड्राई फ्रूट्स से काम नहीं चलेगा।’
इंडियन साइकिएट्रिक सोसाइटी ने भी सुरंग में फंसे श्रमिकों में संभावित मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताई। इंडियन साइकिएट्रिक सोसाइटी के उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत राठी ने कहा कि रेस्क्यू के बाद भी मजदूरों को काफी चिकित्सकीय सहायता की जरूरत पड़ेगी क्योंकि लंबे समय तक सुरंग में फंसे होने की वजह से अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि ‘ऐसी स्थिति में हर दिमाग अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है। इतनी लंबी अवधि तक सुरंग के अंदर फंसे रहने के बाद श्रमिकों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे- एंग्जायटी या डिप्रेशन की आशंका है। रेस्क्यू के बाद भी उन्हें कुछ समय तक निगरानी में रखने की आवश्यकता है।’