विजय पर्व – दशहरा पर प्रसिद्ध ओज कवि : हलधर की कविता

संसाधन शब्द स्वरूपा के ।
आराधन शक्ति स्वरूपा के ।।
अब भेद विभीषण खोल दिया ।
हरि के कानों में बोल दिया ।।1

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वो बाण शक्ति का नारायण ।
वो ही वध का होगा कारण ।।
जो बाण आपके पास रखा ।
दुर्गा ने छूकर खास रखा ।।2

दसवें दिन भीषण युद्ध हुआ ।
अब लक्ष्य राम का शुद्ध हुआ ।।
कौदण्ड राम ने तान दिया ।
दुर्गा का शर संधान किया ।।3

ज्यों नाभि केंद्र में बाण लगा ।
लंकेश देह से प्राण भगा ।।
रावण बोला हे राम मरा ।
काया मेरी मत और जरा ।।4

मेरा भाई दे गया दगा ।
है तेरा वो ही मीत सगा ।।
मैं जान गया तू नारायण ।
पहचान गया तू नारायण ।।5

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शरणागत कर दे नारायण ।
मुझको अवसर दे नारायण ।।
लंका में शोक तमाम हुआ ।
अब पूरा युद्ध विराम हुआ ।।6

रावण का यश नीलाम हुआ ।
नारायण को आराम हुआ ।।
मंदोदरि बिलख बिलख रोयी ।
पति की जिद में कुनवा खोयी ।।7

रावण के शव का दाह हुआ ।
नारायण स्वयं गवाह हुआ ।।
मुख आग विभीषण दिखलाई ।
भाई तो आखिर है भाई ।।8

ऐसे रावण का अंत हुआ ।
साक्षी आकाश अनंत हुआ ।।
इतिहास सुनहरा हम सबका ।
त्योहार दशहरा हम सबका ।।9

आशीष राम से पोषित है ।
सम्राट विभीषण घोषित है ।।
जब भी जांचों सच्ची पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।।10

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हलधर-9897346173