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ना बेटा रे ना भाई न स्वाग, कारगिल विजय दिवस पर दीपक कैंतुरा की कविता

सबि जाणदा ये कारगिल युद्ध की खैरी
माँ की गोद छिनी बैण्यों की कले कत्यों कू सिन्दूर मिटेगी बैरी।
माटी की खातिर जौन बगे अपणु ल्वे
जोंका बलिदान सी कारगिल विजय ह्वे।

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जब बथैरी दीदी भूल्यों की आँख्यों का आँसू सी सात समुद्र हारी।
ये कारगिल युद्ध मा बथैरी मेहंदी वाळा हातों का मंगल सूत्र उतारी।
घर मा माँ बाप दीदी भूली लगी च फोजी का घर ओंणणा का सास।
ब्याली फोन पर बात ह्वे में म्यरे में दगड़ी बात ह्वे। घर ओंणु छों पर घर आई लांस।

यखूली छे सु घर मा सब्यों की आँख्यों कू तारु।

बेटा कारगिल युद्ध मा शहिद ह्वेगी अब नी क्वीं सारु।
मांगी की ब्वारी भी हमारी छट छूटीगी
आज भूमि कू भूम्याल भी आज रुठीगी ।

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नाक की नथुली उतरी हात की चूड़ी फूटी
जोंकू मांग कू सिन्दूर मिटी आज सी भी जिन्दगी केणी घुटी- घुटी।

जब लुखारा बाबा घर ओंदा सी पुछदा मेरा बाबन कब घर ओंण।
जूकड़ी लगदा चीरा अब छ्वरा कनके समझौंण
राखी ल्याई थे भेजीक अब के पर पैरोण
अब रक्षाबंदन क कै मां मैत ओंण।

नोंउ ल्यणक नी रे अब हमुतें क्वी सारु
तु ही बोल बिधाता क्या कसूर थो हमारु।

धन्य हो तों माँ पिता क जौंन यना सपूतों तें जन्म दिनी
करि नी अपणा प्राणों की फिकर देश काखातिर बलिदान दिनी।
धन्य हो स्यां माँ जोंकी योंन संसरधारी पीनी
तिरंगा की लाज रखणक अपणु बलिदान दिनी ।

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लोग करवा चोथ कू बर्त रखला

चॉद पर स्वामी की मुखडी देखला

में अभागी सदानी रोणी की रोलू

बसपा दिवाळी पर टांकी फोटो देखिक तें ऑसू बगोलू

बैरी मिटोण मा जोंन दिखे अपणु साहस

तुम्हारु कारगिल युद्ध बलिदान कू सदानी अमर रालू इतिहास।

दीपक कैन्तुरा द्वारा रचित, रुद्रप्रयाग जखोली