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उत्तराखंड में क्यों मनाया जाता है हरेला, इस बार कब मनाया जाएगा हरेला, क्या खास है इस बार का हरेला, जाने प्रसिद्ध आचार्य शिवप्रसाद मंमगाईं से

हरेला विशेष कर आर्शीवाद लेने का दिवस
सावन लगने से कुछ दिन पहले 7 या 9 प्रकार के अनाज को टोकरी में मिट्टी भरकर बोया जाता है जिसको सूर्य की रोशनी से दूर रख अंधेरे कोने में रखा जाता है और हर दिन तक हल्का हल्का पानी का छिड़काव करके देखरेख की जाती है, कुमाऊं में कई जगह पर उपवास रखकर हरेला बोया जाता है और जिस दिन हरेले की गुड़ाई की जाती है उस दिन टोकरी को कलावे से बांधा जाता हैllइस वर्ष हरैला 17 जुलाई संक्राति के दिन मनाया जायेगा ।।
उत्तराखंड में हरियाली सुख शांति समृद्धि और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के त्योहार के रूप में मनाया जाता है और कई जगह पर इस दिन वृक्षारोपण भी किया जाता है घर परिवार व समाज में सुख शांति हो सब जगह हरा भरा हो परिवार खुश रहे इसी कामना के साथ हरेले के दिन प्रातः पंडित जी को शुभ मुहूर्त पर बुलाकर हरेला कटवाया जाता है, उसके बाद अपने कुलदेवता को हरेला व पकवान चढ़ाकर बड़े बुजुर्ग अपने घर के बच्चों को हरेला पहनाकर (हरेला के पेड़ को कान या सिर पर रखकर) आशीर्वाद देते हैं इस दिन ससुराल की बहन बेटियां मायके आती हैं और उनके माता-पिता या बड़े भाई भाभी के द्वारा बेटी दामाद को हरेला पहनाया जाता है खूब पकवान के साथ उन्हें रुपया पैसा वस्त्र आदि आशीर्वाद रूप में दिया जाता है यदि ससुराल से आई बेटी छोटी है तो वह अपने छोटे भाई बहनों,व बहु को हरेला पहनाकर आशीर्वाद देती है लेकिन फिर भी ससुराल की बेटी होने के नाते छोटा भाई भी उन्हें उपहार स्वरूप पैसे और वस्त्र आदि प्रदान करते हैं- और कुमाऊं में इस दिन विवाहित बेटियों के लिए यह दिन बहुत खास माना जाता है यदि बेटी का ससुराल -मायका नजदीक है तो वह सुबेरे अपने ससुराल पर अपने सास-ससुर के हाथ से हरेला पहनती है उसके बाद वह अपने मायकेवालों का आशीर्वाद लेने जाती है जहां पर उसका खूब आदर सत्कार कर हरेला पहनाया जाता हैll
सास ससुर अपनी बहू बेटे को एक साथ बैठा कर हरेला पहना कर उन्हें भी आशीर्वाद रूप में श्रद्धा अनुसार दक्षिणा देते हैं।।
आचार्य शिवप्रसाद ममगांई ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत। ।

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