उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व फूलदेई त्यौहार आज से मनाया जाना शुरु हो गया। फूलदेई सक्रांति का यह पर्व तीर्थ नगरी ऋषिकेश में पारंपरिक ढंग से मनाया गया। मंगलवार को बच्चों ने फूलदेई, छम्मा देई,देणी द्वार,भरी भकार ये देली बारंबार नमस्कार,पुंजे द्वार बारंबार, फुले द्वार का गीत गाकर लोगों की दहलीज पर फूल डालें। तीर्थ नगरी के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में फुलदेई संक्रांति से पूरे माह तक दहलीज पर रंग बिरंगे फूल बिखरने की परंपरा है। ऋषिकेश शहर आज महानगरी रूप लेने के कारण यहां की जीवन शैली में महानगरों की तरह बदलने लगी है लेकिन ऋषिकेश में रहने वाले पर्वतीय मूल के अधिकांश लोग आज भी अपनी परंपराओं को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं। उग्रसैन नगर निवासी अंतरराष्ट्रीय गढ़वाल महासभा के अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी ने बताया कि फूलदेई संक्रांति हमारी परंपरा से जुड़ा लोग त्यौहार है पहाड़ से पलायन के साथ हम अपनी संस्कृति व विरासत को भी भुला रहे हैं जो हमारी समृद्ध संस्कृति के लिए नुकसानदेह है उन्होंने सभी लोगों से अपने तीज त्योहार और परंपराओं का निर्वहन करने की अपील करते हुवे कहा की किसी भी समाज के विकास के लिए वहां के रीति रिवाज एवं लोकपर्वो का विशेष योगदान रहा है इस शुभ पर्व पर हम सबको मिलकर अपने नोनिहालो से घर की देहरी पर पुष्प वर्षा करा उन्हें शुगुन तथा उपहार देकर इस त्यौहार को जीवंत बनाये रखने के प्रयास करने चाहिए। डॉ नेगी ने कहा कि फूलदेई पर्व अब कुमाऊं की वादियों तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि पूरे उत्तराखंड में चैत्र माह के पहले दिन ऋतु परिवर्तन का पर्व फूलदेई धूमधाम से मनाया जाने लगा है यह पर्व एक और उत्तराखंड की संस्कृति को उजागर करता है तो दूसरी और प्रकृति के प्रति पहाड़ के लोगों के सम्मान और प्यार को भी दर्शाता है इसके अलावा भारतीय परंपराओं को कायम रखने के लिए भी यह पर्व त्यौहार खास है इस त्यौहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है इसका सीधा संबंध प्रकृति से है।