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भक्ति सम्पति नहीं प्रसन्नता देती है:आचार्य शिवप्रसाद ममगाईं


हमारा सुख इस बात पर निर्भर नही करता कि हमारे पास कितनी सम्पत्ति है अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे पास कितनी सन्मति है। स्वर्ग का अर्थ वह स्थान नही जहाँ सब सुख हों अपितु वह स्थान है जहाँ सभी खुश रहते हों।
भक्ति हमें सम्पत्ति तो नहीं देती पर प्रसन्नता जरुर देती है।यह बात नेशविलारोड में स्वर्गीय लोकमणी जखवाल की पुण्य स्मृति में सुशीला जखवाल व जखवाल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण चतुर्थ दिवस की कथा में ज्योतिष्पीठ व्यास पदाल॔कृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई जी नें व्यक्त करते हुए कहा कि प्रसन्नता से बढकर कोई स्वर्ग नही और निराशा से बढकर दूसरा कोई नरक भी नही है।आत्मा की* चर्चा करते हुए आचार्य नें कहा
आत्मा का स्वरूप ब्रह्म के समान है। जैसे सूर्य और दीपक में जो फर्क है उसी तरह आत्मा और परमात्मा में फर्क है। आत्मा के शरीर में होने के कारण ही यह शरीर संचालित हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि संपूर्ण धरती, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे भी उस एक परमपिता की उपस्थिति से ही संचालित हो रहे हैं।
आत्मा का न जन्म होता है और न ही उसकी कोई मृत्यु है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है। यह आत्मा अजर और अमर है। *आत्मा को प्रकृति द्वारा तीन शरीर मिलते हैं एक वह जो स्थूल आंखों से दिखाई देता है। दूसरा वह जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं जो कि ध्यानी को ही दिखाई देता है और तीसरा वह शरीर जिसे कारण शरीर कहते हैं उसे देखना अत्यंत ही मुश्किल है। बस उसे वही आत्मा महसूस करती है जो कि उसमें रहती है। आप और हम दोनों ही आत्मा है हमारे नाम और शरीर अलग अलग हैं लेकिन भीतरी स्वरूप एक ही है। आज कथा के चतुर्थ दिवस पर आचार्य श्री के द्वारा भगवान कृष्ण जन्म के प्राकटय का प्रसंग श्रवण कराते हुए उन्होंने कहा कि शुद्ध सत्व से परिपूर्ण व्यक्ति ही वासुदेव देवमयी पवित्र बुद्धि का नाम देवकी है इन दोनों का संयोग होने पर ही परब्रह्म का प्राकट्य होता है दूसरे को आनंद देने की भावना ही नंद और यश मान सम्मान देने की भावना का नाम ही यशोदा है इस अवसर पर भगवान कृष्ण की दिव्य झांकी के दर्शनों से *युक्त माखन मिश्री के प्रसाद से ओत प्रोत वातावरण गोकुल जैसा प्रतीत हुआ !!*
आज विशेष रूप से सुशीला जखवाल अंकुर नितिन रमेश मीनाक्षी ताहन त्रिज्ञा कृष्णा अनामिका प्रिया शिखा निकुंज गति निपुण रीना सुधीर आकृति प्रखर पूर्व सदसय बदरी केदार समिति के हरीश डिमरी जी सुशीला बलूनी राजेन्द्र केस्टवाल शांता नैथानी राजेन्द्र डबराल विमला डबराल चंद्रमोहन विन्जोला प्रसन्ना विन्जोला आचार्य दामोदर सेमवाल आचार्य दिवाकर भट्ट आचार्य शिव प्रसाद सेमवाल आचार्य सन्दीप बहुगुणा आचार्य हिमांशु मैठाणी आचार्य शुभम भट्ट सुरेश जोशी आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित रहे!!

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