
गति का नाम संसार है दूसरे को आगे बढाने का भाव रखकर स्वयं आगे बढ़े उसका नाम संस्कार है परमात्मा केन्द्र में है जहां कोई गति नहीं है सब ठहरा हुआ स्थिर है संसार पाना है तो गति आवश्यक है भागदौड़ संघर्ष भी आवश्यक है यह बात आज नेशविलारोड़ में स्वर्गीय लोकमणी जखवाल कि पुण्य स्मृति में सुशीला जखवाल व जखवाल परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा में कलश यात्रा के बाद ज्योतिष्पीठ व्यास पदाल॔कृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई जी नें सम्बोधित करते हुए कहा किसच्चा सुख आत्म ज्ञान के बिना नही मिल सकता तथा उसके लिए वृत्तियों का निरोध आवश्यक है जो निरन्तर अभ्यास और वैरागय से ही प्राप्त हो सकता है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है हे महाबाहो निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परंतु हे कौन्तेय अभ्यास और वैरागय से मन वश में होता है कर्म छोड़ना वैराग्य नही है आसक्ति छोड़ना ही वैरागय है चित की स्थिरता के लिए बार बार जो प्रयत्न किया जाता है वह अभ्यास से ही सम्भव है मन बड़ा चंचल है वह एक क्षण भी शांत नही रहता विचारों का प्रवाह ही मन की चंचलता के कारण हैं यह प्रवाह में भी चलता रहता है अज्ञानी परुष वास्तव में शरीर से कोई सम्बन्ध न रखने पर भी अज्ञान के कारण शरीर मे ही स्थिर रहता है जैसे स्वप्न देखने वाला पुरुष स्वप्न देखते समय स्वापनिक संसार मे बंध जाता है अतः उद्दव तुम इस प्रकार गुरुदेव की उपासना स्वरूप अनन्य भक्ति के द्वारा अपने ज्ञान की कुल्हाड़ी को तीखी कर लो और उसके द्वारा धैर्य एवम सावधानी से जीव भाव को काट डालो फिर परमात्म स्वरूप होकर उस व्रति रूप अस्त्रों को भी छोड़ दो और अपने अखण्ड स्वरूप में स्थित रहो!!
इस अवसर पर मुख्य रूप से सुशीला जखवाल अंकुर नितिन रमेश मीनाक्षी ताहन त्रिज्ञा कृष्णा अनामिका प्रिया शिखा निकुंज गति निपुण रीना सुधीर आकृति प्रखर सुशीला बलूनी राजेन्द्र केस्टवाल शांता नैथानी राजेन्द्र डबराल विमला डबराल नरेश वर्मा शोभा बर्मा चंडी प्रसाद डबराल चंद्रमोहन विन्जोला प्रसन्ना विन्जोला आचार्य दामोदर सेमवाल आचार्य दिवाकर भट्ट आचार्य शिव प्रसाद सेमवाल आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य हिमांशु मैठाणी आचार्य शुभम भट्ट सुरेश जोशी आदि भक्त गण भारी सँख्या में उपस्थित रहे!!

