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खास:अपने जन्मदिन पर पीएम मोदी ने भारत को दिया अनोखा तोहफा, 75 साल बाद 8 चीतों की भारत वापसी,जानें क्या खास है इन चीतों में: विदेश से भारत तक कैसे आए चीते देखें वीडियो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में आजाद कर दिया। इन्हें आज सुबह भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टरों से ग्वालियर एयर फ़ोर्स स्टेशन से कुनो नेशनल पार्क ले जाया गया था। जहां पीएम मोदी ने चीतों को बाड़े में छोड़कर एक बार फिर देश में चीता युग की शुरुआत कर दी है। कभी चीतों का घर रहे हिन्दुस्तान में आजादी के वक्त ही चीते पूरी तरह विलुप्त हो गए थे। साल 1952 में भारत सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया था। इसके बाद आज देश में फिर से चीतों की वापसी हुई है। तो आइए जानते है भारत लाए गए आठों चीतों की क्या खासियत है?

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आजादी के वक्त हुआ था आखिरी तीन चीतों का शिकार


75 साल पहले साल 1947 में देश में आखिरी बार चीता देखा गया था। 1947 में देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश (अब छत्तसीगढ़ में) के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। कहा जाता है कि उस दौरान गांव के लोगों ने राजा से शिकायत की कि कोई जंगली जानवर उनके मवेशियों का शिकार कर रहा है। तब राजा जंगल में गए और उन्होंने तीन चीतों को मार गिराया। यही तीनों चीते देश के आखिरी बताए जाते हैं। इसकी फोटो भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में है। उस दिन के बाद से भारत में कभी भी चीते नहीं दिखे। साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से देश से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी। अब 75 साल बाद 8 चीतों को नामीबिया से लाया गया है।

नामीबिया से आए ये आठ चीते

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दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया से आए चीतों में पांच मादा और तीन नर हैं। चीतों की उम्र ढाई से साढ़े पांच साल के बीच है। वहीं ये जानकारी भी सामने आई है कि आठ चीतों में दो सगे भाई भी शामिल हैं। चीता प्रोजेक्ट में शामिल एक एजेंसी चीता संरक्षण कोष से मिली जानकारी के अनुसार इन चीतों में तीन पुरुष हैं जबकि पांच मादा हैं। इनकी उम्र साढ़े चार साल, एक की उम्र दो साल, एक की ढाई साल और एक की उम्र तीन से चार साल के बीच बतायी गई है। वहीं एक चीते की उम्र 12 साल भी बताई गई है।

ये है चीते की खासियत


चीते की खासियत ये है कि ये 120 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ सकते हैं और हर सेकेंड में चार छलांग लगाते है। सबसे तेज रफ्तार के दौरान चीता 23 फीट यानी करीब सात मीटर लंबी छलांग लगा सकता है। चीते की रिकॉर्ड रफ्तार अधिकतम एक मिनट के लिए रह सकती है। यह अपनी फुल स्पीड से सिर्फ 450 मीटर दूर तक ही दौड़ सकता है। 1973 में हावर्ड में हुई एक रिसर्च के मुताबिक आमतौर पर चीते के शरीर का तामपमान 38 डिग्री सेल्सियस होता है, लेकिन रफ्तार पकड़ते ही उसके शरीर का तापमान 40.5 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। चीते का दिमाग इस गर्मी को नहीं झेल पाता और वो अचानक से दौड़ना बंद कर देता है।

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शारीरिक बनावट भी होती है खास


चीते का सिर बाघ, शेर, तेंदुए और जगुआर की तुलना में काफी छोटा होता है। इससे तेज रफ्तार के दौरान उसके सिर से टकराने वाली हवा का प्रतिरोध काफी कम हो जाता है। चीते की खोपड़ी पतली हड्डियों से बनी होता है। इससे उसके सिर का वजन भी कम हो जाता है। वहीं हवा के रेजिस्टेंस को कम करने के लिए चीते के कान बहुत छोटे होते हैं। चीते के पंजे घुमावदार और ग्रिप वाले होते हैं। दौड़ते वक्त चीता पंजे की मदद से जमीन पर ग्रिप बनाता है और आगे की ओर आसानी से जंप कर पाता है। इतना ही नहीं अपने पंजे की वजह से ही वो शिकार को कसकर जकड़े रख पाता है। चीते की पूंछ 31 इंच यानी 80 सेंटीमीटर तक लंबी होती है। यह चीते के लिए रडार का काम करती है। अचानक मुड़ने पर बैलेंस बनाने के काम आती है।

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तेज रफ्तार में भी शिकार पर रहता है फोकस


चीते की आंख सीधी दिशा में होती है। इसकी वजह से वह कई मील दूर तक आसानी से देख सकता है। इससे चीते को अंदाजा हो जाता है कि उसका शिकार कितनी दूरी पर है। इसकी आंखों में इमेज स्टेबिलाइजेशन सिस्टम होता है। इसकी वजह से वह तेज रफ्तार में दौड़ते वक्त भी अपने शिकार पर फोकस बनाए रखता है। चीता अपने शिकार का पीछा अक्सर 200-230 फीट यानी 60-70 मीटर के दायरे में ही करता है। एक मिनट तक ही वह अपने शिकार का पीछा करता है। अगर इस दौरान वो उसे नहीं मार पाता तो उसका पीछा करना छोड़ देता है। वो अपने पंजे का इस्तेमाल कर शिकार की पूंछ पकड़कर लटक जाता है। या तो पंजे के जरिए शिकार की हडि्डया तोड़ देता है।

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