सनातनी परंपरा में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। इस दौरान लाखों हिंदू धर्मावलंबी अपने पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। पुराणों में पितृ तर्पण के लिए जो माहात्म्य बिहार स्थित गया तीर्थ का बताया गया है, लेकिन इसके अलावा भी एक और स्थान है जिसे पितरों की मोक्ष प्राप्ति का महातीर्थ का जाता है।
‘ब्रहमकपाल’ में पिण्डदान का है विशेष महत्व
उत्तराखंड के चमोली जिले में समुद्रतल से 10,480 फीट की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम से दो सौ मीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी से सटे ब्रहमपाल तीर्थ है। यह कपाल मोचन तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि विश्व में एकमात्र श्री बदरीनाथ धाम ही ऐसा स्थान है, जहां ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान व तर्पण करने से पितर दोबारा जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। साथ ही परिजनों को भी पितृदोष व पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिए ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ यानि महातीर्थ कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं होती। यही वजह है कि इन दिनों ब्रह्मकपाल में श्राद्धकर्म के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है।
भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मिली मुक्ति
मान्यता है कि ब्रह्माजी जब स्वयं के द्वारा उत्पन्न शतरूपा (सरस्वती) के सौंदर्य पर रीझ गए तो शिव ने त्रिशूल से उनका पांचवां सिर धड़ से अलग कर दिया। ब्रह्मा का यह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप भी लगा। इसके निवारण को शिव आर्यावर्त के अनेक तीर्थ स्थलों पर गए, लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिली। सो, वह अपने धाम कैलास लौटने लगे। इसी दौरान बद्रिकाश्रम के पास अलकनंदा नदी में स्नान करने के बाद जब वह बदरीनाथ धाम की ओर बढ़ रहे थे तो धाम से दो सौ मीटर पहले अचानक एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं गिर गया। जिस स्थान पर वह सिर गिरा, वही स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और इसी स्थान पर शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।
पांडवों को गोत्र हत्या के पाप से मिली मुक्ति
‘श्रीमद् भागवत महापुराण’ में उल्लेख है कि महाभारत के युद्ध अपने ही बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था।