- प्रयोग के तौर पर केसर उगाया तो निकला कश्मीर की टक्कर वाला केसर, अब गांव वालों के मदद से पूरे क्लस्टर में केसर उगाने के प्रयास में
– पूणे से जापानी फ्रूट के पौधे लाकर अपने बाग में कर रहे हैं तैयार
विजेन्द्र रावत- वरिष्ठ पत्रकार और लेखक की फेसबुक वाल
बागेश्वर जिले के कपकोट से 12 किलोमीटर दूर सेलिंग गांव के कृष्ण कोमाल्टा ने गांव वालों से करीब पांच एकड़ के बंजर खेतों को किराए पर लेकर उस पर बागवानी शुरू की हैं।
पहले तो गांववासी, इसके बंजर खेतों को किराए में लेने के निर्णय को उसका मूर्खतापूर्ण कदम मान रहे थे पर जब कोमाल्टा ने अपनी कड़ी मेहनत से बंजर खेतों को सेब व कीवी के फलों से लकधक किया तो पहले आलोचना करने वाले ही उनके प्रशंसक बन गये।
अब उनके बाग में पांच सौ पेड़ सेब व आठ सौ पौधे कीवी के लग चुके हैं। पर अभी भी 80 प्रतिशत जमीन खाली है।
सभी पौधे अब फल देने लगे हैं। कृष्ण ने अपने खेतों में कश्मीरी केसर उगाने का प्रयास किया जिसमें वे सफल रहे और अब वे गांव वालों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर केसर की खेती की योजना बना रहे हैं।
प्रयोग के तौर पर उन्होंने पुणे से जापानी फ्रूट के पौधे मंगवाए हैं, जो सफलता पूर्वक विकसित हो रहे हैं।
उन्होंने अपने बाग में पैशेन फ्रूट भी लगाए हैं जो आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों का लोकप्रिय फल है।
वे मधुमक्खी पालन भी कर रहे हैं, जो शहद के साथ-साथ फसलों व फलों के परागण से उत्पादन में वृद्धि करते हैं।
उन्हें बागवानी विभाग की योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है तथा विभाग के विशेषज्ञ उन्हें समय-समय पर तकनीकी मदद भी पहुंचा रहे हैं।
उन्होंने अपने बाग को सड़क से चार किलोमीटर पैदल चलकर तैयार किया है, लेकिन अब वे खुश हैं कि उनके बाग तक अब सड़क पहुंच गई है जिससे उनके बागवानी की रफ्तार और तेज हो जाएगी।
कृष्ण के बाग में उनकी प्रगति को देखने हजारों ग्रामीण आ चुके हैं और वे बागवानी की ओर प्रेरित हो रहे हैं।
उनका मानना है, मेहनत ठीक-ठाक रही तो कुछ ही वर्षों में उनके बाग में करोड़ रूपए से ज्यादा सालाना आय की क्षमता है।
वे चाहते हैं कि लोग परम्परागत खेती के बजाय जैविक सब्जियों की खेती व बागवानी करें।
पहाड़ में जड़ी बूटियों के उत्पादन की भी काफी संभावनाएं हैं।
बस, इसके लिए मेहनत और तकनीकी ज्ञान की जरूरत है, वह भी समय के साथ-साथ आसानी से उपलब्ध होने लगी है।
प्रगतिशील किसान कृष्ण कोमाल्टा