बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ आचार्य ममगांई
जितने महापुरुष हुए उनके पीछे नारी का हाथ है, इसलिए सृष्टि समाज मानव जीवन की आधारशिला नारी है ,इसलिए बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ बेटी बचाओ जिस घर में बेटी को सम्मान मिलता है वहां लक्ष्मी आती है जहां बहू को सम्मान मिलता है वहां लक्ष्मी टिकती है यह बात आज नेशविला रोड गढ़वाल सभा मंदिर में महिला कल्याण समिति के द्वारा चल रही शिवपुराण की कथा में प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिव प्रसाद मंगाई ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि जितने संबंध जुड़े व सम्बन्ध रखते हैं वह सब नारी से ही जुड़े हुए हैं नारी के बिना नर का अस्तित्व नहीं शक्ति के बिना शिव का अस्तित्व नहीं है बेटी का अपमान करोगे दक्ष जैसे कस्ट संकटों का सामना करना पड़ेगा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ बहुत बड़े किए हैं लेकिन अपने दामाद शंकर भगवान को यज्ञ में नहीं बुलाया और बेटी सती का अपमान किया इसलिएयज्ञ का फल सुख के बजाय दुख मिला कितने अच्छे कर्म कर दो बेटे को सम्मान नहीं दिया तो सारे कर्म निष्फल हो जाते हैं माता पिता को समर्पण की राह पति को स्नेह की राह बच्चों को बात्सल्य की राह दिखाने वाली बेटी होती बेटी के द्वारा दामाद के रूप में बेटा मिलता है और बहु बेटी के रूप में बेटा के कारण मिलती है । आचार्य ममगांई ने कहा जो जितने महत्व का हो उसे उतना ही सुरक्षित रखने के प्रयास करते हैं।
श्रीराम जी ने जनकजी की पुत्री सीता जी सद्गुणों शोभा अर्थात् मर्यादा युक्त सुंदरता को देखा –
सुंदरता मरजाद भवानी की भांति ?
पति के लिए पत्नी के वही सुंदरता उपयोगी है जो मर्यादा युक्त हो।
अभी कन्या हैं तो माता से भय है,
पिता के वश में हैं,
शील, लज्जा, संकोच है,
तो पति के घर भी ऐसी अपेक्षा की जा सकती है।
स्नेह ऐसा कि -लोचन मग रामहि उर आनी.. चली राखि उर स्यामल मूरति।।
तो इसे लिखने के लिए स्याही ऐसा हो जो सूखे नहीं अर्थात् जो सदा सरस हो,
और कागज भी स्थाई होना चाहिए।
न गले,न जले,न फटे और न मिटे।
वो स्याही है प्रेम के परमोत्कर्ष – परम प्रेममय मृदु मसि कीन्ही।
और स्थाई कागज है “चित्त पटल “।
क्योंकि जो मन में रखा वह अल्पकालिक होता है किन्तु जो चित्त में चढ़ जाए वह इस शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा के साथ बने रहता है, जिसे कहते हैं पूर्व जन्मों का संस्कार
अपरिग्रह प्रतिष्ठायां पूर्वजन्मज्ञानम्
जब जीव किसी बात को अपने चित्त पर ले ले तो कई जन्मों तक उसपर छाप छोड़ देता है तो ये राम जी तो अविनाशी अविकारी अनादि ब्रह्म हैं।
राम जी ने सीता जी के अंतःसुख, स्नेह, शोभा और सद्गुणों को अपने चित्त रूपी दीवार पर प्रेम की पराकाष्ठा रूपी सहज सरस स्याही से अंकित कर लिया।
अध्तक्ष लक्ष्मी बहुगुणा सुजाता पाटनी महासचिव, सरस्वती रतूड़ी देवेश्वरी बम्पाल रेखा बडोनी रोशनी सकलानी मंजू बडोनी आशा रावत राजेश्वरी चमोली आचार्य दामोदर सेमवाल आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य दिवाकर भट्ट आचार्य अजय जुयाल सुषमा थपलियाल राज मति सजवाण मीना सेमवाल सुनिता बहुगुणा अनुराधा कोटनाला गिता काला नन्दा तिवारी लक्ष्मी गैरोला चन्दा बडोनी अनिता भट्ट आचार्य वाचस्पति डिमरी दिपक उनियाल