रघुनाथ कीर्ति के पुरातन छात्रों ने साझा किये अनुभव
संस्कृत सप्ताह के समापन पर पहली बार पुरातन छात्र संघ गठित, डॉ.पांडेय अध्यक्ष
डॉ.वीरेन्द्र सिंह बर्त्वाल
देवप्रयाग। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर से पास आउट हो चुके विद्यार्थियों ने परिसर के अपने पुराने अनुभव बताते हुए अपने जूनियर छात्रों को कठिन परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने और विषम वातावरण में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि परिसर खुलने के आरंभिक दौर में तीन-चार वर्ष पहले बहुत कम सुविधाएं थीं। इसके बावजूद हमने परिश्रम के साथ पढ़ाई कर सफलता की ओर अग्रसर हुए हैं। आज परिसर में सुविधाएं बढ़ रही हैं,इसलिए यहाँ के विद्यार्थियों को और भी मनोयोग से पढा़ई करनी होगी।
श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में संस्कृत सप्ताह के संपूर्ति कार्यक्रम में आए पासआउट विद्यार्थियों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। यहां से शास्त्री करने के बाद जेएनयू से एमए तथा उसके बाद पीएचडी कर रही प्राची नौटियाल ने कहा कि मेरे संस्कृत के क्षेत्र में कैरियर बनाने में श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर की बहुत बड़ी भूमिका है। यहां के बेहतरीन शैक्षिक वातावरण ने हमें आगे बढ़ने का संबल प्रदान किया है। यहां के शिक्षकों ने उस दौर में बड़े परिश्रम के साथ हमें पढ़ाया है। जेएनयू से ही संस्कृत से एमए कर रही प्रियंका जगूड़ी ने कहा कि उत्तरकाशी के एक गांव के साधारण परिवार से होने के कारण मैंने सोचा भी नहीं था कि जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में कभी पढ़ाई कर पाऊंगी, किंतु श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में मिले बेहतरीन वातावरण के कारण मैं यहां तक पहुंच पाई हूं और अब मेरा सपना संस्कृत के क्षेत्र में बहुत कुछ करने का है। इसी प्रकार के अनुभव उत्तम भट्ट और राहुल कोठारी ने भी व्यक्त किए। संस्कृत सप्ताह के समापन कार्यक्रम में निदेशक प्रो. एम. चंद्रशेखर के मार्गदर्शन में पहली बार परिसर के पुरातन छात्र संघ का गठन किया गया। इसका अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश चंद्र पांडे को बनाया गया। प्रो. एम. चंद्रशेखर ने उम्मीद जताई कि धीरे-धीरे इस संघ में छात्रों की संख्या बढ़ती जाएगी और यह पहल इस परिसर के विकास, शैक्षिक वातावरण बनाने और छात्रों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इससे पहले संपूर्ति कार्यक्रम में मुख्य अतिथि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. कमला चौहान ने कहा कि संस्कृत हमारे पौराणिक ज्ञान का भंडार है। संस्कृत में वैदिक काल में सभी विषयों का अध्ययन-अध्यापन होता था। आज संस्कृत के महत्त्व को देखते हुए ही देश-दुनिया के अधिसंख्य लोग पुनः संस्कृत को अपनाने लगे हैं। यह संस्कृत के ही नहीं, मानव जीवन के लिए भी लाभदायक है। उन्होंने कहा कि पुराने समय में संस्कृत में न केवल भाषा ज्ञान दिया जाता था, अपितु चिकित्सा और अर्थशास्त्र का अध्ययन-अध्यापन भी होता था। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए निदेशक प्रो. एम. चंद्रशेखर ने कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों को समाज को दिशा देने की क्षमता भी विकसित करनी होगी। हमारे भीतर जो ज्ञान है,उसे सही तरीके से व्यक्त करना भी आवश्यक है। किताबीय ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी बहुत आवश्यक है। आज आधुनिक युग में विद्यार्थियों को हर प्रकार के आवश्यक ज्ञान से लैस होना होगा, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य संस्कृत विषयों के क्षेत्र में प्रवीण होना है। देवप्रयाग स्थित इस परिसर से विद्यार्थियों का देश के बड़े विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध के लिए जाना और यहां के छात्रों का अन्य विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों में प्लेसमेंट होना इस बात को सिद्ध करता है कि यह परिसर भविष्य में उत्तराखंड के छात्रों को रोजगार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इस अवसर पर संस्कृत सप्ताह के दौरान हुई विभिन्न स्पर्धाओं के विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया। रंगोली में दिगंबर को प्रथम, श्रेष्ठा को द्वितीय तथा शुभम भट्ट को तृतीय स्थान मिला। निबंध में दीपक नौटियाल ने बाजी मारी। शोध पत्र प्रस्तुतिकरण में भास्कर बर्मन और जीवन जोशी अव्वल रहे। संस्कृत सप्ताह के दौरान कवि सम्मेलन में रचनाएं प्रस्तुत करने वाले कवियों को भी प्रमाण पत्र दिए गए। अंत में डॉ.अनिल कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
संचालन वेदविभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र प्रसाद उनियाल ने किया। इससे पहले परिसर के प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने निदेशक प्रो. एम. चंद्रशेखर के मार्गदर्शन में ‘हर-घर तिरंगा’ अभियान में भाग लेकर अनेक लोगों को घरों और प्रतिष्ठानों में लगाने के लिए तिरंगे झंडे वितरित किए। इस अवसर पर डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, डॉ.अवधेश बिजल्वांण,डॉ. अरविंद सिंह गौर, नवीन डोबरियाल,डॉ.सुरेश शर्मा, डॉ दिनेशचंद्र पांडेय, डॉ. श्रीओम शर्मा, जनार्दन सुवेदी,डॉ.मौनिका बोल्ला, डॉ. अमंद मिश्र, पंकज कोटियाल,रघु बी.राज इत्यादि उपस्थित थे।