उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के जखोली विकासखंड में एक खूबसूरत कस्बा है चिरबटिया.. चिरबटिया प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर क्षेत्र है यहां से उच्च हिमालय की चोटियां बहुत ही खूबसूरत लगती हैं। यह क्षेत्र वन संपदा से भी परिपूर्ण है। पिछली सरकार ने इस क्षेत्र को टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर विकसित करने की बात तो कि थी लेकिन न तो आजतक यह क्षेत्र टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर विकसित हुआ है न ही इसकी शुरूआत की गई है जो बातें सिर्फ सरकार की हवाहवाई साबित हुई। यह चिरबटिया क्षेत्र लुठियाल ग्राम सभा के अंतर्गत आता है। चिरबटिया मूलरूप से लुठियाग गांव का एक तोक है।
लेकिन आज हम बात कर रहे हैं चिरबटिया के मूल ग्रामसभा लुठियाग की… जो कुछ सालों पहले तक एक आबाद खुशहाल गांव था, जहां लोगों की चहल पहल, खिलखिलाते बच्चे, पशु के लिए चारा लाती महिलाएं, खेतों में काम करती हुई महिलाएं लेकिन आज इस गांव में जहां भी नजर दौड़ाओं तो नजर आते हैं सिर्फ टूटे हुए घर.. खंडहर होते पुश्तेनी मकान, बंजर होती खेती, खोती हुई हमारी संस्कृति हमारी परंपरा… कभी चिरबटिया से ज्यादा रौनक मूल गांव लुठियाग में रहती थी पर बदलती परिस्थितियों के साथ चहल पहल वाला गांव आज बिराने के आगोश में खो गया है।
पुराने लोग कहते हैं कि सभी लोग इस गांव में मिलजुल कर रहते थे गांव के सभी परिवारिक कार्य, शादी समारोह, देव कार्य और पंचायती कार्य यहीं होते थे। इस गांव की रौनक अद्धभुत होती थी लेकिन आज इस रौनक की जगह गांव में सन्नाटा पसरा रहता है। 200-250 परिवार वाला यह गांव आज सिर्फ 10-15 परिवारों में सिमट कर रह गया है। जो लोग वहां हैं भी वह अलग अलग रहते हैं। जबकि पूर्व में हमारे पूर्वज बुजुर्ग मिलजुल कर रहते थे। वहीं आज के दौर में मिलजुल कर रहना तो दूर की बात है। लोगों का कहना हैं कि गनिमत है कि कभी कभार मिल भी जाते हैं।
गांव की महिलाएं कहती हैं कि जब वह इस गांव में पहली बार शादी करके पहुंची तो इस गांव की रौनक देखने लायक थी लोगों की चहल पहल, बच्चों का खेलना, सभी महिलाएं एक साथ चारा पत्ती के लिए जाती थी। खेतों में सभी महिलाएं एक साथ काम करती थी। लेकिन जब से लोग सुविधाओं के पीछे भागने शुरू हुए तब से इस गांव में साल दर साल सन्नाटा पसरने लगा और आज इस गांव की स्थिति किसी भूतिया खंडहर की तरह हो गई है। क्योकि कहां जाए तो इस पलायन का दर्द सबसे ज्यादा महिला ही सहती हैं। पुरूष तो रोजगार नौकरी के लिए प्रदेश चले जाते हैं और घर में अकेली रह जाती हैं महिलाएं। इस गांव में भी कुछ बुजुर्ग महिलाएं हैं जो इस गांव में अपने घर में अकेले जीवन यापन कर रही हैं।
सबसे बड़ा कारण रोड़ का न होना
सभी ग्रामीणों का कहना हैं कि इस खूबसूरत गांव की चमक फिकी पड़ने का सबसे बड़ा कारण रोड़ है। जब पूर्व में लुठियाग गांव के तोक चिरबटिया से रोड़ कटी तो लोग चिरबटिया की तरफ बसने लगे लेकिन फिर भी कभी कभी गांव में रहने आते थे फसल और मौसम के हिसाब से लेकिन अब गांव पूर्णरूप से खंडहर है। इस गांव के ग्रामीण काफी सालों से रोड़ की भी मांग कर रहे हैं पर जो भी प्रतिनिधि आते हैं वो भी सिर्फ अश्वासन देकर चले जाते हैं। जिस कारण गांव के लोग चिरबटिया में बसने शुरू हो गए। वहीं कुछ लोग रोजगार नौकरी के लिए शहरों में बस गए और वहीं के रहवासी हो गए और पीछे अपने छोड़ गए अपने पैतृक गांव और घर जो आज खंडहर के स्वरूप में खड़ा है।
वहीं कुछ लोगों का कहना हैं कि अगर गांव में रोड़, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा हो तो वह लोग अपने घरों को दुबारा मरम्मत करवाकर रहने लायक कर सकते हैं। साथ ही गांव की बंजर होती खेती भी लहलहाने लगेगी। क्योकि आज की सबसे बड़ी जरूरत है गांव में रोड़, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का होना है, अगर ये सुविधाएं लोगों को अपने गांव में मिल जाए तो कोई भी पलायन करने की नहीं सोचता लेकिन इन सुविधाओं के आभाव में लोग पलायन करने पर मजबूर हो जाते हैं। यह दर्द सिर्फ लुठियाग गांव का ही नहीं है यह हमारे पहाड़ के हर उस गांव का दर्द है जहां आज भी लोग रोड़, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से बंचित हैं और पलायन की रहा देख रहे हैं।