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आज ही के दिन 2020 में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण में रचा था इतिहास

रैबार पहाड़ का स्पेशल डेस्क

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4 मार्च की तारीख उत्तराखंड के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि राज्य में लंबे समय से चल रहे संघर्ष का आज ही के दिन यानि पिछले वर्ष 4 मार्च 2020 में अंत हुआ था। प्रदेश के तत्तकालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भराड़ीसैंण (गैरसैंण) को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा दिया था। इसके साथ ही उत्तराखंड दो राजधानियों वाला देश का पांचवां राज्य बना था।
जब सीएम त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो उन्होंने भावुक होकर कहा था कि ये फैसला काफी सोच-समझकर लिया गया है। गैरसैंण के राजधानी बन जाने से दूरस्थ क्षेत्रों के अंतिम व्यक्ति तक विकास के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगा। और पर्वतीय क्षेत्रों का विकास तेजी से होगा।

गैरसैंण को राजधानी दर्जा दिलाने के लिए लड़ी लंबी लड़ाई
गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग साठ के दशक से शुरू हो गई थी, जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तब भी गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उठी। इस मांग को उठाने वाले पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली थे। उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन करने वालों ने भी गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उठाई थी। वर्ष 2000 में उत्तराखंड तो राज्य बना लेकिन इसकी राजधानी देहरादून बनी। राज्य की कई सरकारों ने गैरसैंण को राजधानी बनाने का सपना दिखाया और इसे राजनैतिक मुद्दा बनाए रखा। कांग्रेस सराकार में सीएम रहे विजय बहुगुणा ने यहां कई अहम भवनों का शिलान्यास भी किया। हरीश रावत की सरकार में ये बनकर भी तैयार हो गए, लेकिन गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने का काम त्रिवेंद्र सरकार ने ही किया।
गैरसैंण को गीष्मकालीन राजधानी बनाने के बाद राज्य सरकार लगातार इसके विकास के लिए प्रयासरत है। निश्चित गैरसैंण का विकास कई मायनों में इस राज्य और इसके पहाडी क्षेत्रों की कई अभिलाषाओं को पूरा करेगा। लगैरसैंण उत्तराखंडियों के लिए एक भावुक मसला रहा है। जनभावनाओं का आदर करने के लिए ही गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के बाद भी इसे स्थाई राजधानी बनाने की लड़ाई अभी भी जारी है।

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