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जीव को जानबूझकर संकट में डालते हैं भगवान-आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं


जखोली-जब उसे अहसास होता है कि शरीर पर अभिमान व्यर्थ है यह तो रोगों का घर है कई बार भीषण दुखों के आघात से मानव दुखों से मुक्त हो जाता है विपत्ति में भी भगवान की कृपा का दर्शन करना ही सच्ची भक्ति है
उक्त विचार ज्योतिष्पीठ ब्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं जी ने कोट बांगर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में व्यक्त करते हुए कहा कि निष्ठा और श्रद्धा के साथ संकल्प लिए बिना किसी भी लक्ष्य की पूर्ति नही की जा सकती यह दुःखद स्थिति है कि आज श्रद्धा और निष्ठा पर आघात किया जा रहा है कुछ लोग यग्योपवित चोटी आदि को त्यागने में ही धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशीलता समझते हैं यदि यग्योपवित को केवल धागा मान लिया जाए तो कल को राष्ट्रध्वज को भी कुछ लोग केवल कपड़े का टुकड़ा समझने लगेंगे जबकि राष्ट्रध्वज किसी भी राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक होता है तीर्थों मन्दिरो और गौ माता के प्रति श्रद्धा भावना रखनी चाहिए संसार की दौड़ स्वाभाविक है किंतु एक दौड़ लौकिक पदार्थों की प्राप्ति के लिए है दूसरी दौड़ भगवान भक्ति तथा संतोष पाने के लिए है विषयों के पीछे दौड़ने से कभी शान्ति संतोष नही मिलता है यह दौड़ राजस्थान में पानी के लिए मृग की दौड़ के समान है वह रेत को पानी समझकर दौड़ता रहता है किंतु उसका अंत नही होता मा बाप की अवहेलना कर भक्ति का ढोंग रचने वाले पाखंडी है श्रीराम की पूजा भक्ति का अधिकारी वही है जो माता पिता की आज्ञा का पालन करता है भगवान श्री राम ने स्वयं माता पिता की आज्ञा मात्र से न्याय अन्याय का विचार किये बिना राज पाठ त्यागकर वन गमन किया अतः उनसे मातृ पितृ भक्ति भाइयों के प्रति उत्कृष्ट प्रेम की प्रेरणा लेकर ही उनकी भक्ति की जा सकती है
आचार्य श्री ने कहा कि गौ माता ब्राह्मण देव मंदिर साधु का कोई स्वामी नही होता देव मंदिर निर्माण करने के बाद उसे प्रभु को समर्पित कर देने वाला ही धर्मात्मा है जो उसे अपनी संपत्ति मानकर उसकी किसी भी वस्तु का उपभोग करता है वह घोर पाप करता है इसी प्रकार साधु संतों को किसी के अधीन नही रहना चाहिए भगवान तो नित्य सिद्ध हैं वे हमारे अंदर है किंतु जब तक हम अपने को शारिरिक मानसिक तथा अन्य दृष्टियों से शुद्ध नही करेंगे वे हमें दर्शन नही देंगे शुद्ध व्यक्ति शुद्ध से ही मिलता है हम जैसे शारिरिक व्यसनों से पतित बने व्यक्तियों को भगवान दर्शन क्यों देंगे
उपवास एकादशी व्रत अन्नमय कोष को परम् शुद्ध करने का प्रमुख साधन है ईश के ध्यान से मन कोष सिद्ध होता है शरणागति से आनंदमय कोष शुद्ध होता है अतः भक्ति के लिए सबसे पहले अपने शरीर और मन को पवित्र करना चाहिए तभी भक्ति की ओर प्रवर्त होने में सार्थकता है
इस अवसर पर विशेष रूप से जगतम्बा सेमवाल गुनानन्द सेमवाल भावना खुशी कृष्णा आचार्य रत्नमणी सेमल्टी मनोज थपलियाल क्षेत्र पंचायत सदस्य पुनिता सेमवाल भानु सेमवाल जगतराम सेमवाल जगन्नाथ सेमवाल देवी प्रसाद तुलसीराम सेमवाल चिरंजिप्रसाद महादेव सेमवाल आदि भक्त गण भारी संख्या में उपस्थित थे !!

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