उत्तराखण्ड/ देहरादून, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े बता रहे हैं, देहरादून की आबोहवा में तेजी से जहर घुल रहा है। ये आंकड़े अभी आधा- अधूरे हैं, लेकिन भयानक और डरावने हैं। सरकार प्रदूषण कंट्रोल करने के लिये लाख जतन कर रही है। बावजूद पॉल्यूशन कंट्रोल नहीं हो पा रहा है। पॉल्यूशन में बढ़ोत्तरी की बात की जाये, तो त्योहारी सीजन दीपावली, दशहरा जैसे खास मौके पर इजाफा देखने को मिलता है।
ऐसे में दून की संस्था हिमवंत फाउंडेशन सोसाइटी की ओर से हरित दून बनाने के लिये अहम कदम उठाये जा रहे हैं। संस्था की ओर से दशहरा, दिवाली जैसे खास त्योहार पर गाय के गोबर से देवी, देवताओं की आकृति बनाई जा रही है। जो प्रदूषण मुक्त है। इन आकृतियों को खरीदनें की डिमांड अन्य राज्यों से भी आ रही है। संस्था की ओर से इन आकृति को बनाने और उनको अच्छा स्वरूप देने लिये जरूरतमंद महिलाओं को काम पर रखा गया है।
संस्था की चेयर पर्सन एवं तीलू रौंतेली पुरस्कार से सम्मानित संगीता थपलियाल बताती है। गाय के गोबर से बनाये जा रहे वस्तुओं से कारोबार करने का उद्देश्य नहीं है। बल्कि त्योहारी सीजन पर प्रयोग में लाये जा रहे प्रदूषण युक्त सामान के दुष्परिणाम से लोगों को जागरुक करना है। दून में करीब 15 लाख लोग वास करते हैं। बताया हरित दून को बनाने के लिये संस्था की ओर से समय-समय पर वृक्षारोपण भी किया जाता है। लेकिन पेड़- पौधे लगाने के साथ ही, प्रदूषण युक्त वस्तुओं का भी बहिष्कार करना जरूरी है। दिल्ली, एनसीआर जैसे महानगरों की तर्ज पर दून शहर भी अब बढ़ते पॉल्यूशन से अछूता नहीं रहा है।
पॉल्यूशन के लिये जिम्मेदार
सरकार प्रदूषण कंट्रोल करने के लिये लाख जतन कर रही है, लेकिन देहरादून में बढ़ते परिवहन का लोड, ईधन, धुंआ, गंदगी, सड़को की धूल, अपशिषट जल, जंगल में लगने वाली आग से शहर की आबोहवा में जहर घुल रहा है। शहर की जिंदगी धूल- धूसरित हो रही है। आम आदमी का जहरीली हवा से दम घुट रहा है।
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े (एक अखबार के मुताबिक)
वर्ष २०२० में दून शहर में एक्यूआई 238 (चिंताजनक)
कनॉट प्लेस, क्लेमेंटटाउन , रायपुर 315 रहा स्वास्थ्य के लिये बेहद खतरनाक
पटाखों की वजह से 62.94 तक बढ़ता प्रदूषण जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक
– घंटाघर 171.59
– रायपुर 117
आईएसबीटी 212
हकीकत यह है कि पॉल्यूशन तब तक कंट्रोल नहीं होगा, जब तक आम नगरिक पर्यावरण को बचाने में अपनी अहम भूमिका नहीं निभायेगा। इसके लिये पेड़ पौधों पर आरी चलाने वाले तस्कर भी उतनी ही जिम्मेदार है, जितनी सरकार ।