प्रचाधारी मां दोंणी की कांलिका कु इतिहास-देखा लिंक खोलिक तैं पूरु इतिहास

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प्रचाधारी  देवी दौंणी कालिका कु मंदिर

फोटो पवन राणा

 भगवान सिंह &प्रेमसिंह राणा

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टिहरी।  दोणी. देवभूमि उत्तराखंड में देवी देवताओं की स्थली है और यहां अनेक स्थानों में अनेक देवी देवता विराजमान हैं. उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के घनसाली तहसील के दोणी ग्यारहगांव में निवास करती हैं मां कालिंका. दोणी ग्यारहगाँव टिहरी जनपद का प्रमुख गांव हैं. क्योंकि यहां की मां कालिंका कुमाऊं से आई बताई जाती हैं.

दोणी गाँव की सबसे बड़ी पहचान यहां दोणी की माँ कालिंका ही हैं. दोणी गाँव में माँ कालिंका की उत्पति को लगभग 400 साल पुराना माना जाता है. पुराने अवशेषों व पत्थरों की नकासी से पता प्रतीत होता है कि यह 15वीं 16वीं ई. पूर्व के हैं. कहते हैं माता के इस प्रिय स्थान का पता यहां के भी बाजगी बेडा जाति के लोगों को ही चला. क्योंकि वे गाँव के तत्कालीन मुख्या (सयाणा) के सेवादार के रूप में भी कार्य करते थे. जैसे हल लगाना, माल गुजारी एकत्र करना आदि कार्य यह लोग करते थे.

खेत में हल जोतते समय मिली थी मूर्ति

उसी क्रम में वहां एक दिन एक व्यक्ति खेत में हल जोत रहा था जहां उसे अचानक अष्ठधातु की मूर्ति एक शीला (पत्थर) में चमकती दिखी. वह मूर्ति को अपने घर ले गया, जिसका परिणाम उसे भुगतने पड़े और बाद में माँ कालिंका उसी पर अवतारित हो गई. तब से अपनी मां कालिंका विख्यात दोणी की कालिंका कहलाने लगी.

राज दरबार को भी कराया शक्ति का अहसास
माँ कालिंका ने अपने परचम से दोणी को खुब प्रसिद्धि दिलाई तथा राज दरबार में शक्ति प्रदर्शन कर राजा को अपनी शक्तियों से आकर्षित किया. कालिंका में शदियों से अनेका प्रथायें थी, जिसमें पुराने लोग बताते हैं पहली बलि की प्रथा दी. परन्तु वर्ष 1975/76 में दोणी कालिंका में बलि प्रथा बन्द कर सात्विक पूजा को स्थान दिया गया. दंतकथाओं में माँ दोणी कालिंका के कई किसे सुनने को मिलते हैं, जिसमें एक बार थाती थोकदार ने माँ का ढोल जब्त कर दिया था, तो जहां उन्होंने ढोल रखा वहां तुरन्त आग लग गई.
धियाणियों की मददगार व पुत्र विहीनों की मददगार हैं माँ कालिंका
काफी नुकसान होने के ढोल वापस दिया, धियाणियों की मददगार दीन-दुखियों, पुत्र विहीनों की मददगार माँ कालिंका आज भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं जितनी शदियों से हैं. कोई भी भक्त माता के दरबार से आज तक निराश नहीं लौटा. माँ कालिंका आज भी अपने पसुवा पर अवतरित होकर सही और गलत का फैसला देती हैं. कहते हैं एक बार पूरे ग्यारहगांव हिन्दाव और भिलंग में बाघ लग गया, जिसने खूब तबाही मचाई, लेकिन दोणी पर आँच तक नहीं आई.

बिष्ट हैं दोणी कालिंका भगवती के मुख्य सेवक
पडोस के गाँव दुबड़ी, समणगांव पर भी बाघ का साया छाया रहा, लेकिन दोणी. दोणी कालिंका भगवती के मुख्य सेवक बिष्ट जाति के हैं, जिन्हें जगपति होने का सौभाग्य मिला है. नेगी जाति पर माता अवतरित होती है और माता के प्रमुख पुजारी पैन्यूली हैं. परन्तु बेड़ा जाति के लोगों पर भी माँ कालिंका अवतरित होती है, क्योंकि सही अवतारि बेड़ा थे.
अब होता है माँ कालिंका में विशाल कौथिग मिलन समारोह का आयोजन

बताते हैं कि घुमंतु प्रवृत्ति के कारण उन्होंने माता के पंचायती धागुले एक बार वापस कर दिये थे, तब माता ने नेगी कुल में आना शुरू किया. वर्ष भर माँ के दरबार दर्शनार्थियों का जमावड़ा लगा रहता है तथा धियाणियों की रछपाल माँ कालिंका याद दिलाती रहती है. पहाड़ से पलायन के कारण धियाणियों का मिलन नहीं हो पा रहा था, जिसके फलस्वरूप यहां की ग्राम सभा दोणी एक नई सोच समिति के बैनर तले यहां की युवा पीड़ी अब सामूहिक मिलन के लिए वर्ष में माँ कालिंका में विशाल कौथिग मिलन समारोह आयोजित करती है. मेले में आई गांव की धियाणियों को न्यूता देकर बुलाया जाता है और सामूहिक कलेऊ दिया जाता है. काफी धियाणियों ने माँ भगवती दोणी कांलिंका के लिए सप्रेम भेंट प्रदान की थी, किसी कारण वह उस समय गाँव नही जा सकी उनको मां का प्रसाद मुंबई में सप्रेम भेंट किया. दो इस आयोजन को सफल बनाने उत्तरांचल मित्र मंडल भांईंदर का का भी सहयोग रहा है.


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