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‘न्याय लक्षण संग्रह’ पर सात दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ, पहले दिन पांडुलिपियों के संरक्षण पर दिया गया जोर

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सौजन्य से नरोत्तम भट्ट द्वारा रचित ग्रंथ ‘न्याय लक्षण संग्रह’ पर सात दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ हो गया। पहले दिन पांडुलिपियों के संरक्षण पर जोर दिया गया। कहा गया कि पांडुलिपियां हमारे ज्ञान का संवहन करने में अहम हैं। मुख्य अतिथि के रूप में श्रुत भवन अनुसंधान केंद्र पुणे के वरीय संपादक अमोघ प्रभुदेसाई जी ने कहा कि श्रुत भवन भारत में 20 लाख पांडुलिपियों के प्रकाशन एवं शोध के संकल्प के साथ कार्य कर रहा है।
भारतीय ज्ञान परंपरा की पांडुलिपियों के प्रकाशन के लिए यह संस्थान प्रतिबद्ध है। इस संस्था के द्वारा अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों का संपादन एवं प्रकाशन किया जा रहा है। प्रो.विजय पाल शास्त्री जी ने सारस्वत अतिथि के रूप में कहा कि श्रुत भवन पांडुलिपि संपादन पर बेहतरीन कार्य कर रहा है।विशिष्ट वक्ता हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सह आचार्य आशुतोष गुप्ता ने कहा कि न्याय दर्शन की परंपरा में तर्क संग्रह, तर्क भाषा आदि में बताए गए लक्षणों की अपेक्षा ‘न्याय लक्षण संग्रह में 400 से अधिक न्याय के लक्षण संग्रहित करके व्यवस्थित किया गया है। इसके अलावा तर्कसंग्रह के लक्षणों को भी परिशिष्ट में स्थान दिया गया है ।न्याय परंपरा में पढ़ने के लिए यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी है। कार्यक्रम के अध्यक्षता प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने की। उन्होंने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि कार्यशाला का पूरा लाभ उठाएं। अतिथियों का स्वागत कार्यशाला के संयोजक डॉ.सच्चिदानंद स्नेही ने किया। इस कार्यशाला में देशभर से आये 40 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। धन्यवाद ज्ञापन व्याकरण विभाग के आचार्य श्री ओम शर्मा ने किया।

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