उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में रेस्क्यू ऑपरेशन के आखिरी चरण में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी को प्रयोग में लाया जा रहा है। सिलक्यारा टनल में चल रही ऑपरेशन जिंदगी की राह में आ रही रुकावटों को दूर करने में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन की टीम जुट गई है। बीआरओ ने बेंगलुरु से दो एडवांस ड्रोन मंगाए हैं। इन ड्रोन ने लास्ट स्टेज में सुरंग के भीतर मलबों में राह दिखाई है। ये ड्रोन सेंसर रेडार हैं। पहली बार देश में इसका प्रयोग किसी आपदा प्रबंधन के मामलों में हो रहा है।
आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस ने बताए सुंरगे के हालात
ड्रोन सेंसर रेडार के साथ आए एक्सपर्ट एक्सपर्ट सिरियाक जोसेफ ने बताया कि पहली बार देश में इस प्रकार के ड्रोन का प्रयोग रेस्क्यू मिशन या फिर डिजास्टर मैनेजमेंट के मामलों में किया जा रहा है। ड्रोन टीम रेस्क्यू ऑपरेशन में जुड़े लोगों को जरूरी सूचनाएं उपलब्ध करा रही है। बेंगलुरु की स्क्वाड्रन इंफ्रा के छह टनलिंग-माइनिंग विशेषज्ञ इंजीनियरों की टीम ने सिलक्यारा सुरंग पहुंचकर आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के जरिए भीतर के हालात बताए। इससे अभियान को आगे बढ़ाने में मदद मिली है। बीआरओ के डीडीजी ब्रिगेडियर विशाल वर्मा ने मलबे के भीतर ड्रिल में आ रही दुश्वारियों के बीच बंगलूरू की स्क्वाड्रोन इंफ्रा एंड माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की मदद ली। वहीं, एक्सपर्ट सिरयाक जोसेफ ने बताया कि हमारी टीम ने ड्रोन सेंसर के जरिए मलबे में आयरन रॉड की स्थिति की जानकारी ली है। इसके आधार पर टीम को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
कैसे काम करता हैं ड्रोन सेंसर रेडार?
ड्रोन सेंसर रेडार को लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है। इसको लेकर एक्सपर्ट का कहना है कि इसके जरिए दिखाई न देने वाले इलाके में किसी प्रकार के अवरोध का पूरा स्कैन सेंसिंग रेडार से किया जा सकता है। 14 मीटर पहले रुकी ड्रिल के दौरान सामने आने वाले सरियों के बारे में जानकारी स्क्वाड्रन ने रेस्क्यू टीम को दी। ड्रोन सेंसिंग रेडार सिमुलटेनियस लोकेलाइजेशन एंड मैपिंग (स्लैम) और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक के आधार पर काम करते हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल केवल अंडरग्राउंड और जियोटेक्निकल एप्लीकेशन में ही किया जाता है। इंडियन एयरफोर्स की मदद से इससे संबंधित उपकरण सिलक्यारा तक पहुंचाए गए हैं।