शिक्षा के पलायन पर ‘दीपक कैन्तुरा’ की कविता
पढै-लिखै का खातिर जू बस्या छन देहरादून की आड़ मा..
हम उंदा उंद रेगीन टॉपर निकलणा पाड़ मा।
डोखरी-फुगड़ी छोडिक जांया देहरादून की आड मा…
खोलिया रेगी मेंगा सी मेंगा स्कूल टॉपर निकलणा पाड़ मा।।तीन- तीन जागा टयूशन लगायों फिर भी ना होणा पास…
गोंउमा स्या नोनी टॉपर निकली जू करदी घर कू काम धाम काटदी घास।
लाखों रुपया खर्च करिक भी सेरु मा नी होणा पास…
पहाड़ की बेटियों ने रचि इतिहास।।जब टॉपर बणी पाड़ की बेटी उंदू वाला आँखा कंदूण खुलीगीन…
न पास ह्वै अर अपणी बोली भाषा सब कुछ भुलिगिन।
पढै लिखै का नोंउ पर बानी- बानी का स्कूल खुलगिन…
नोन्यालों का भविष्य का चक्कर मा गौं मुल्क भुलीगिन।।धन्य हो पाड़ की बेटी जैन पहाड़ मा रैक इतिहास रचाई…
जू पाड़ छोडिक प्रदेशों मा पडया च तोंकी भई निंद चचलाई।आज तेरी सफलता देखिक तोंते भी मातृ भूमि की याद आई…
पाड़ मा रैक तें पाड़ जनि छलांग लगाई।।
देहरादूण दिल्ली वालों ते भी होणु च अफसोस…
पहाड़ मा टाँपर देहरादूण मा पित्र दोष।
लाखों रुपया फीस देकी भी पेण लेखण मा जीरो च…
बाईक कार मा घुमणा बणिया हिरो च।।
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