लस्या पट्टी जखोली रूद्रप्रयाग मा ईष्टदेवता नगेला दगड़ि जुड़ी समृद्ध लोकपरंपरा
रूद्रप्रयाग जनपद का जखोली ब्लाॅक की लस्या पट्टी, धन-धान्य संपन्न पट्टी च, जख एक तरफ हैर्या-भर्या सेरा, छिन हैकि तरफ बिगरैला बण-जंगल।
ईं पट्टी का ईष्टदेवता छिन नागेन्द्र देवता।
नागेन्द्र देवता नागवंशी विष्णु का अवतार छिन, पैल्या समै जब ल्वौण , मुळयौण लस्या का लोग कुमौ-बागेश्वर जांदा छा, त तख भगवान नागेन्द्र की खूब सेवा कर्दा छा, चौळ, कपड़ा धूप दिवा करदा छा। भगवान नागेन्द्र खुश ह्वेक लस्या का मयाळा मनख्यू दगड़ि पौंछिन लस्या पट्टी का गौं, जख आज भी नागेन्द्र देवता कु मठ्ठ गाद,बिन्नी थर्पी च।
आज भी यख नागेन्द्र देवता का गीत जागर लोककलावंतों का मुख बिटि सुणेंदा,
भौत सारी लोकमान्यता यखा लोक मा सुण्येंदि।
यख लस्या पट्टी मा पर्यावरण का परति एक अद्भुत दृश्य दिखे जांद, लस्या पट्टी का धान्यू गौं का सेरा मा, साटी धान की फसल पकण पर सबसे पैलि अगल्यार स्थानीय लोक देवता नगेला की लगदि,
धान्यू का हैरा-भरा सेरा मा नगेला देवता की डोली कु देवनृत्य पूरी लस्या पट्टी तै सचेत कर्द कि फसल पकी तैयार ह्वेगी, अर तब अठ्ठार गौं लस्या, एकमुठ्ठ ह्वेक स्थानीय भगवान धानेश्वर मंदिर मा जैक देवता का सामणि फसल कटाई तिथि निर्धारित कर्दन।
अर नियत तिथि पर रातब्येण जल्दी उठीक, एकजुट ह्वेक सेरि सार ले क, क्वन्का लगे जंदन।
पैलि त लस्या का अठ्ठार गौं का लोग एकमुठ्ठ ह्वेक सैरि सार लवै-मंड़ै कर जंदन छा, आज जरूर या परंपरा थोडी सीमित ह्वेगी
तीन से पांच रात्यु का यूं साट्युं का क्वनकू तै एक रात मा ही मांड़ि भी देंदन। ईं सारी मा रोपणी बटि लवै-मंड़ै तक अठ्ठार गौं का लोग मौ-मदद कर्दन।
या लोकपरंपरा लस्या का धान्यूं सेरा, का दगड़ि सैरा मुलुक तै मौ-मदद कु भौ अर आश-विश्वास का दगड़ि एकमुठ्ठ भी रखदी।
यनि हैकि तरफ एक लोकमान्यता का अनुसार लस्या पट्टी का इष्टदेव नगेला तै बोलांदु देवता भी बोलदा,
यन मण्ये जांद कि नागेंद्र देवता साक्षात धाद लगैक जनगणना कर्द, अर धै-धाद मारी भटेंदु।
जब भी क्वे असुखि, निर्बल, कमजोर मनख्यूं तै क्वे पिड़ा दुख दर्द देंदु, त नागेंद्र देवता सतौण अर दुखौण वौळा मनख्यू नौ लीक धाद लगै सचेत कर्द।
लोक मा ईं मान्यता से लोग अधर्म कन से डरदन, अर
भला भाव का साथ एक हैके मौ-मदद करदन।
एक जनश्रुति यन भी च कि एक बार धान्यूं का सेरा पुंगण्यूं मा क्वे स्थानीय हळया रोपण्यूं हौळ छो लगौणू, त सुबेर बटि दिन द्वौफरा अर अधरात तक टैम बिजां ह्वेगी छो, पर हळया रोपणी निपटौण का बाना यकरोड्या हळ लांणू रे, बळद जौत्या ही रैन। सेरा मा रोपण्यु दगड़ि ढ़ोल-दमौ भी बजदि रैन।
तड़तड़ा फुकेंदा घाम बटि रुमुक तलक बळदौ पिड़ा देखी, धान्यूं सेरा का ठीक समणि ऐंच धार,कुंड सौड मा नगेला देवता रोष क्रोध मा ऐगी, अर एक ढुंग्गी उठेक
हळया चेतौणो चुळै, या ढुंग्गी धान्यू सेरा मा पौंछी बडु डांग बणी,अर ते रौपड़ा मा बड़ु गढ्ढा बणीं।
बळदू जोड़ि समेत हळया रौप्पा अर ढ़ोळि तखि धरती समेग्या, अर सीधा श्रीनगर का चौरास मा जुंदे भेर निकळया।
तबार बै चौरास का ये सेरा तै आज भी जुंदो सेरा ब्वळदन, किलैकि जूंदे मनखी धान्यू बै ठेठ चौरास निकळिन।
बस तब अगने बिटि क्वे भी द्वौफरा तक या रुमुक तलक यख बळद नि जोतदु।
आज भी ईं लोक किंववदंत्या साक्ष्य धान्यू सेरा का बीच का बडा भारी यकुला डांग का रुप मा दिखोंदन।
आज भी सबसे पैलि तेई पुंगणे लवै-मंड़ै ह्वोदि,जैमा यु डांग पड्यूं च, अर एक कंड़ी पर साटी भरी ते डांग मा तबार तक रखदन जब तलक पूरी सारी मंड़ै नि ह्वे जंदि, कै दिन-रात्यू तलक बि कंड़ि पर रख्यू साटी साबुत जन्यों-तनि रंदु, तब बाद मा येतै घौर लिकरी जंदन।
धान्यू सेरा रोपणि ह्वौण पर चौरास श्रीनगर मा अजु भी जूंदा सेरा मा, साक्षात रोपण्यूं मट्या कोजाळु पांणी दिखेंदु, अर हैर्या लुंगळा दिखेंदन। जेसे चौरास का लोग अनुमान लगौंदा कि लस्या धान्यू सेरा रोपणी शुरु ह्वेगी।
नगेला देवता तै पूजदा यखा हर घर परिवार मा ईष्ट का परति भौत आस्था विश्वास च, सेमळा ह्वोणा बाद भी यख कबि सर्प का काटण की क्वे घटना नि सुंणेणी।
ईं लोग नगेला नाग सर्प की पूजा करदन अर कबि कखि भी केसे गलती मा सर्प हत्या ह्वोण पर, चांदी प्रतीक बणैक नगेला मंदिर मा चढै क्षमा मांगी सर्पहत्या से मुक्त ह्वोंदा।
लोकपरंपरा की समृद्ध ईं लस्या थाति मा भगवान नगेला का पशुवा-नौर का हाथों मा अठ्ठार गौं लस्या का लोग मिलीक म्यळाख करी चांदी का धगुला भेंट करदन।
या भी बड़ी रोचक प्रथा च, नगेला की जात तीन चार साल मा जब भी विर्ये जांदि, त पैलि ही देवता का नौर तै सुपिन्यू ह्वे जांद, अर तब द्वी हाथों का मोटा-मोटा चंदीका धगुला तांबे परात मा अफ्वी खुल जंदन अर लस्या का अठ्ठार गौं का लोग यूं पर गढ़ै करवौंदन।
फिर पूजा पाठ करी शुद्ध करीतै दिन सिर्येक कुंड़ सौड़ मा लिजांदन।
यख अठ्ठार गौं लस्या का लोग चौळ कठ्ठा करीतै हिंडोळा मा एक तरफ धगुला अर हैकि तरफ बरोबरी मा चौळ तोली तै रखदन।
अब चांदि का यि धगुला तांबे परात मा रख्ये जंदन, नगेला का पशुवा का हाथ जनि नजीक औंदन धगुला अफ्वी खुल जंदन अर हाथों मा लगी जंदन।
पर्यावरण बचौण अर जीव संरक्षण का दगड़ आपसी मेलजोल की दिशा मा यन भौत सी लोकपरंपराओं तै हम बिसर्ये नि सकदा जौंन हम माटी-थाति बटि जोड़ी रख्या….
अगली किस्त मा फिर लोकपरंपराओं पर अग्वड़ि…..
…लेख सर्वाधिकार @अश्विनी गौङ ‘दानकोट’ अध्यापक राउमावि पालाकुराली ‘लस्या’ जनपद रूद्रप्रयाग.