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समस्त भक्तों हृदय को लालायित करती हैं कृष्ण लीला आचार्य मंमगाईं


जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीहरि ने सदा अपने भक्तों की रक्षा हेतु अनेक अवतार लिए और प्राणी मात्र का उद्धार किया। सभी अवतारों के पृथक रूप, गुण, हेतु, कथा आदि हैं परंतु श्री कृष्णावतार को श्रीहरि विष्णु का पूर्णावतार कहा जाता है क्योंकि वो 64 कलाओं से युक्त थे। उनकी लीलाएं सम्पूर्ण संसार में फैली हैं अथवा समस्त भक्तों के मन को लालायित करती हैं। कृष्णावतार में केवल श्रीकृष्ण ही दुर्लभ नहीं थे अपितु सभी देवी–देवताओं ने कन्हैया के साथ अवतार लेकर श्रीकृष्ण लीला को सफल बनाया ।यस बात एजछटलें दिन देवाचंल विहार राजीव नगर लोअर देहरादून में प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगाँई ने कही
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान ने देवताओं को पृथ्वी पर जन्म लेने का आदेश दिया तो उन्होंने भगवान से विनती की कि उन्हें किसी ऐसे रूप में अवतरित किया जाए, जिससे भगवान का साथ एवं उनके श्री अंगों को स्पर्श करने की उनकी जो मनोकामना है, वह पूर्ण हो सके, तभी वे धरती पर जन्म लेंगे। . भगवान समुद्र हैं तो संत मेघ हैं, भगवान चंदन हैं तो संत समीर (पवन) हैं, इस हेतु से मेरे मन में ऐसा विश्वास । समुद्र जल से परिपूर्ण है, परन्तु बादल जब उसी समुद्र से जल को उठाकर यथा योग्य बरसाते हैं तो केवल मोर, पपीहा, और किसान ही नहीं-सारे जगत में आनंद की लहर बह जाती है । उसी प्रकार परमात्मा सच्चिदानन्दनघन सब जगह विद्यमान है, परन्तु जब तक परमात्मा के तत्वोंको जाननेवाले भक्तजन, संत उनके प्रभाव का सब जगह विस्तार नहीं करते तब तक जगत के लोग परमात्मा को नहीं जान सकते। जब महात्मा संत पुरुष सर्वसद्गुणसागर परमात्मासे समता, शान्ति, प्रेम, ज्ञान और आनन्द आदि गुण लेकर बादलों की भाती संसार में उन्हे बरसाते हैं तब जिज्ञासु साधकरुप मोर, पपीहा, किसान ही नहीं किन्तु सारे जगत के लोग उससे लाभ उठाते हैं ।
इस अवसर पर आनन्दमणि मैठाणी हिमांशु रवि मोहित संजीत परमानन्द मैठाणी शांति प्रसाद नौटियाल हरीश डिमरी सूर्यप्रकाश नौटियाल ब्रह्मचारी केशव स्वरूप महाराज दंडी बाड़ा माया कुंड ऋषिकेश स्वामी अच्युतानंद महाराज हरिद्वार श्री राजेन्द्र चमोली सनातन धर्म प्रचार समिति टिहरी शैलेंद्र मिश्र शंकराचार्य माधवाश्रम ट्रस्ट ऋषिकेश संगीता थपलियाल पूजा नवानि बृहस्पति भट्ट जगदीश पंत पंकज सती सरोज पंत बीना पूजा नौटियाल वर्षा राजेश्वरी इंदु रेखा सुरुचि नेहा पूर्णिमा चतुर्वेदी विजयलक्ष्मी सुनीता रत्ना कैंथोला विनीता कैंथोला आदि भक्त गन उपस्थित थे।।

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