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जसिलु हूणु नीच: युवा उभरती कवित्री अर्चना गौड़ की कविता



जो बीज बूति छौ वु जमणु नीच
निरभगि हथ जसिलु हूणु नीच।

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खैड़ कट्यार सि भमकणी जिंदगि
सुखिलु बीज पनपुणू नी च।

आस-उमीद मा दिन पुरेणा
जोग-भागा तालु खुलणु नी च।

खींचाताडियौं मा दिन सरकणा
भाग्य दगड़म हिटुणु नीच।

छैंदिक भि छौं निछौंदा हूंणा
करमौं मा लिख्यूं मिटुणु नीच।

सुखिला दिनौं आस, आस हि रैग्या
खैरि का दिन विधाता कटणु नीच।

घनघोर दुखौं बादल कब तक फटाला
सुखिलु सरग अर्चना बरखणू नी च।

@अर्चना गौड़